
कोरोना वायरस की महामारी की वजह से आम जनजीवन काफी प्रभावित हुआ है. कोरोना की चपेट में आने से न जाने कितने लोगों की जिंदगी चली गई. कोरोना का फैलाव रोकने के लिए पहले लॉकडाउन फिर कोरोना कर्फ्यू लगाया गया. इस दौरान स्कूल भी बंद कर दिए गए ताकि बच्चों में कोरोना का संक्रमण न फैलने पाए. कोरोना के संक्रमण के बचाव के लिए स्कूल कॉलेज तो बंद हो गए लेकिन बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो, इसके लिए ऑनलाइन क्लासेज शुरू हो गईं.
वीडियो कॉलिंग एप्स का इस्तेमाल करके बच्चों की पढ़ाई शुरू करा दी गई लेकिन लगातार ऑनलाइन पढ़ाई से बच्चों की आंखों पर बुरा असर पड़ना शुरू हो गया .है फोन की स्क्रीन एकटक देखने की वजह से बच्चों में आई स्ट्रेन नाम की बीमारी बढ़नी शुरू हो गई है. इसे डिजिटल आई स्ट्रेन या कम्प्यूटर विजन सिंड्रोम के नाम से भी जाना जाता है. आंख के चिकित्सकों की मानें तो इस बीमारी का खतरा बच्चों और किशोरों में काफी बढ़ गया है. यह डिजिटल उपकरणों के अधिक इस्तेमाल के कारण होता है.
कम्प्यूटर विजन सिंड्रोम के लक्षण और दुष्प्रभाव
आपका बच्चा अगर ऑनलाइन पढ़ाई कर रहा है तो लगातार स्क्रीन पर देखने की वजह से उसे यह बीमारी हो सकती है. इस बीमारी की वजह से तनाव और अनिद्रा की समस्या हो जाती है. यही नहीं, आंखों में दर्द होने लगता है. इस बीमारी से ग्रसित होने पर आंखों में खिंचाव महसूस होता है. आंखें लाल हो जाती हैं और भारीपन और थकान महसूस होता है. यही नहीं कभी-कभी आंखों से धुंधला भी दिखाई देने लगता है.
कैसे करें बचाव
अगर आपका बच्चा ऑनलाइन पढ़ाई कर रहा है तो आपको बेहद सतर्क रहने की जरूरत है. दीनदयाल नगर स्थित काशी नेत्र सदन के सर्जन डॉक्टर विपुल कांत केशरी बताते हैं कि इससे बचाव के लिए सावधानी बेहद जरूरी है. डॉक्टर केशरी बताते हैं कि इसके लिए डिजिटल स्क्रीन और आंखों के बीच उचित दूरी मेंटेन रखें. यह दूरी कम से कम 1 फीट जरूर हो. साथ ही स्क्रीन की ब्राइटनेस को भी कम रखें. जिस कमरे में पढ़ाई करनी हो वहां पर्याप्त रोशनी रखें. डिजिटल उपकरणों पर लगातार देखते रहने से पलकों के झपकने की दर प्रति मिनट कम हो जाती है.जिससे आंखों में सूखापन और उसके बाद पानी आने लगता है.
उन्होंने आगे कहा कि इसलिए जरूरी है कि डिजिटल उपकरण का उपयोग करते समय पलकों को झपकाते रहें और डेढ़ दो घंटे लगातार इस्तेमाल करने के बाद 5 से 10 मिनट दूर की चीजों को देखें. साथ ही साथ आंखों को बंद करके हल्का मसाज दें. डॉक्टर विपुल कांत ने आगे बताया कि डिजिटल डिवाइस का ज्यादा इस्तेमाल करने वालों के लिए बाजार में विशेष प्रकार के एंटी ग्लेयर ग्लासेस भी उपलब्ध हैं जो कि उपकरणों से निकलने वाले प्रकाश के ब्लू स्पेक्ट्रम को बहुत हद तक रोकने में सक्षम है. उन्होंने बताया कि ब्लू स्पेक्ट्रम की वजह से ही आंखों में थकान पैदा होती है. ऐसे में पलक झपकाते रहना भी जरूरी है.
कितना नुकसानदायक होता है ब्लू स्पेक्ट्रम
डॉक्टर विपुल कांत केशरी बताते हैं कि सफेद रंग में सात रंग होते हैं. इन सात रंगों का जो ब्लू स्पेक्ट्रम होता है.वह हमारी आंखों पर इस स्ट्रेन को पैदा करता है यानी थकान पैदा करता है. आजकल ब्लू स्पेक्ट्रम की बात इसलिए हो रही है क्योंकि उसको पूरी तरह से तो नहीं रोका जा सकता लेकिन काफी हद तक कम करने के लिए एंटी ग्लेयर ग्लासेस मार्केट में उपलब्ध हैं.
आंखों की सेहत के लिए करें ये घरेलू उपाय
आई स्पेशलिस्ट बताते हैं कि हरी सब्जी का सेवन ज्यादा से ज्यादा करें. विटामिन ए से भरपूर चीजों का सेवन करें. खासतौर पर बच्चों के लिए पके आम का सीजन चल रहा है. पके आम में काफी मात्रा में विटामिन ए होता है. पपीता भी खाया जा सकता है. गाजर का सेवन किया जा सकता है. हरी साग-सब्जियों के सेवन से पूरे शरीर को ही पर्याप्त मात्रा में न्यूट्रिशन मिल जाता है.
ऐसे बरतें सावधानी
सबसे बड़ी सावधानी ये है कि गेम खेलने से बचें. मोबाइल की ब्राइटनेस को ज्यादा ना रखें और एक दूरी को मेंटेन करें. बहुत करीब से मोबाइल को ना देखें और आंख के लेवल से कम से कम 15 से 20 डिग्री मोबाइल को नीचे रखें. मोबाइल को आंखों से कम से कम 25 सेंटीमीटर दूर रखें. डॉक्टर विपुल कांत केशरी बताते हैं कि अगर ज्यादा समस्या हो तो तत्काल किसी अच्छे आई स्पेशलिस्ट से संपर्क जरुर करें. खुद से किसी भी तरह की दवा या आई ड्रॉप का इस्तेमाल ना करें.