
गणतंत्र दिवस पर निकाली गई किसान ट्रैक्टर रैली के दौरान मचे बवाल और हिंसा के बाद किसान आंदोलन में फूट पड़ गई है. राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के नेता वीएम सिंह और भारतीय किसान यूनियन (भानु) के राष्ट्रीय अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने खुद को किसान आंदोलन से अलग करने का ऐलान कर लिया है. वीएम सिंह ने भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत पर गंभीर आरोप लगाते हुए अपने संगठन के आंदोलन को खत्म कर दिया. वीएम सिंह और बीकेयू भानु की घर वापसी के पीछे यूपी के किसान संगठनों के वर्चस्व की लड़ाई भी अहम वजह मानी जा रही है.
सरदार वीएम सिंह और भाकियू (भानु गुट) सहित पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई किसान संगठनों के राकेश टिकैत के साथ छत्तीस का आंकड़ा है. वीएम सिंह ने बुधवार को जिस तरह से राकेश टिकैत पर गंभीर आरोप लगाए और कहा कि किसानों के मुद्दों को तरह देने के बजाय मीडिया की सुर्खियों में बने हुए हैं. वीएम सिंह ने मांग की कि जिन लोगों ने आंदोलन में शामिल किसानों को भड़काया, उन पर कार्रवाई होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि राकेश टिकैत को भी इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए. साथ ही भानु प्रताप सिंह ने लाल किले के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. हालांकि, वीएम सिंह और भानु प्रताप सिंह के आरोप पर राकेश टिकैत और उनके संगठन के नेताओं ने कुछ भी कहने से मना कर दिया. यह बात जरूर कही है कि कमजोर लोग ही बीच में आंदोलन छोड़ते हैं.
माना जा रहा है कि राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन व ऑल इंडिया किसान संघर्ष समन्वय समिति के नेता वीएम सिंह इस बात से नाराज थे कि केंद्र सरकार से बातचीत में पंजाब के ही किसानों का ज्यादा दबदबा है और यूपी से सिर्फ नरेश टिकैत और राकेश टिकैत को ही शामिल किया जाता है. वहीं, भारतीय किसान यूनियन (भानु गुट) के मुखिया भानु प्रताप सिंह ने तो राकेश टिकैत के चलते ही किसान यूनियन से अलग होकर अपना संगठन खड़ा किया था. ऐसे में उनके बीच सियासी वर्चस्व की लड़ाई काफी पुरानी है.
सरदार वीएम सिंह और किसान नेता भानु प्रताप सिंह की भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत के साथ अनबन किसान आंदोलन में शामिल होने के समय से भी पहले की है. इसका मुख्य वजह राकेश टिकैत का मीडिया की सुर्खियों में बने रहना और किसानों के आंदोलन को अपनी रोचक वाकपटुता के जरिए अपनी तरफ मोड़ लेना है. संयुक्त किसान मोर्चा के एक बड़े नेता ने कहा कि आंदोलन शुरू होने के बाद सरदार वीएम सिंह सिंघु बॉर्डर आए थे, लेकिन किसान संगठनों ने उनसे दूरी बना ली थी. इसी यही स्थिति भानु गुट के साथ भी रही है.
किसानों के सबसे बड़े नेता रहे हैं महेंद्र सिंह टिकैत
दरअसल, भारतीय किसान यूनियन देश में एक समय किसानों का सबसे बड़ा संगठन हुआ करता था. महेंद्र सिंह टिकैत की एक आवाज पर किसान दिल्ली से लेकर लखनऊ तक की सत्ता हिला देने की ताकत रखते थे. महेन्द्र सिंह टिकैत ने एक नहीं कई बार केंद्र और राज्य को अपनी मांगों के आगे झुका दिया था. महेंद्र सिंह टिकैत भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे तो उत्तर प्रदेश में संगठन की कमान एटा के रहने वाले भानु प्रताप सिंह के हाथों में हुआ करती थी.
टिकैत और भानु प्रताप की जोड़ी किसानों की एक मजबूत आवाज बनकर खड़े हुए थे. इसी का नतीजा था कि चौधरी चरण सिंह के बाद महेंद्र सिंह टिकैत ने किसान कामगार नाम से राजनीतिक पार्टी बनाई तो उसकी कमान भानु प्रताप सिंह को ही सौंपी थी. पहले ही चुनाव में पार्टी के 14 विधायक जीतकर आए थे, लेकिन इसी के बाद टिकैत ने पार्टी की कमान चौधरी अजित सिंह को सौंप दी. इसके चलते भानु प्रताप सिंह नाराज होकर आठ साल तक घर बैठे रहे. हालांकि, 2006 में महेंद्र सिंह टिकैत भानु प्रताप सिंह को मनाकर दोबारा से भारतीय किसान यूनियन में लेकर आए और उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कमान फिर से सौंप दी.
टिकैत से अलग होकर भानु प्रताप ने बनाया संगठन
साल 2008 में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में भारतीय किसान यूनियन का राष्ट्रीय चिंतन शिविर हुआ, जिसमें महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे राकेश टिकैत ने भानु प्रताप पर एक जातीय विशेष के लोगों से पैसा लेकर पूर्वांचल में जिला अध्यक्ष बनाए जाने का आरोप लगाया. इसके बाद भानु प्रताप सिंह को भाकियू से बाहर कर दिया गया, जिसके बाद उन्होंने भारतीय किसान यूनियन (भानु गुट) नाम से अपना अलग संगठन बना लिया. इसके बाद से राकेश टिकैत के साथ उनके छत्तीस के आंकड़े रहे हैं.
वहीं, महेंद्र सिंह टिकैत के निधन के बाद भारतीय किसान यूनियन की कमान उनके बड़े बड़े नरेश टिकैत को सौंप दी गई, लेकिन इस पद के मुख्य दावेदार छोटे बेटे राकेश टिकैत माने जा रहे थे. आरएलडी के प्रमुख चौधरी अजित सिंह के किसान यूनियन में सियासी दखल चलते राकेश टिकैत की जगह नरेश टिकैत को अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी गई. इतना ही नहीं जाटों की सबसे बड़ी बालियान खाप पंचायत की पगड़ी भी नरेश टिकैत को पहनाई गई और राकेश टिकैत को किसान यूनियन का राष्ट्रीय प्रवक्ता बना दिया गया.
नरेश टिकैत के भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष बनने के बाद भाकियू के कई बड़े नेताओं ने अपना अलग संगठन बना लिया है. यूपी में कई किसान संगठन बन गए हैं तो राजनीतिक पार्टियों ने भी किसानों को जातियों और धर्मों में बांट दिया है. इसी में भानु प्रताप सिंह और पूरन सिंह जैसे तमाम किसान नेता भारतीय किसान यूनियन से अलग हो गए.
वीएम सिंह ऐसे बने किसान नेता
सरदार वीएम सिंह का नाता भारतीय किसान यूनियन से कभी नहीं रहा है, लेकिन किसानों की लड़ाई कोर्ट में लड़ने का काम वो जरूर करते रहे हैं. सरदार वीएम सिंह जिस राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष हैं, उसे महेंद्र सिंह टिकैत के भारतीय किसान युनियन सामानांतर खड़ा करना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने काफी मेहनत भी किया है.
सरदार वीएम सिंह की छवि एक ईमानदार नेता के तौर पर है. इसी कड़ी में उन्होंने मनसौर की घटना के बाद देश के सभी किसान संगठनों को दिल्ली में बुलाया था, जिसमें भारतीय किसान यूनियन और टिकैत परिवार के दूर रखा गया था. इस बैठक में करीब डेढ़ सौ किसान संगठन शामिल हुए थे.इसमें राजीव शेट्टी, योगेंद्र यादव और हन्नान मुल्ला जैसे किसान नेता शामिल थे. वीएम सिंह ने किसानों के समर्थन में जब भी कोई आंदोलन किया है, उस पर राजनीतिक दलों के समर्थन साफ झलक दिखी है. इसमें लेफ्ट और कांग्रेस के नेता उनके मंच पर दिखे हैं.
कृषि कानून के खिलाफ पंजाब में तीन महीने से भले ही आंदोलन चल रहा था, लेकिन देश के किसानों को एकजुट करने में वीएम सिंह की अहम भूमिका रही है. उन्होंने ही देश भर के किसानों को अपने समर्थकों के साथ दिल्ली आने की आपील की थी, लेकिन इसी बीच उन्हें कोरोना हो गया था. इसके बाद हरियाणा और पंजाब के किसान नेता ही पूरे आंदोलन पर छा गए और वीएम सिंह से किनारा कर लिया था.
वहीं, पंजाब के किसान दिल्ली जब कूच रहे थे, उसके बाद ही राकेश सिंह टिकैत और नरेश सिंह टिकैत अपनी किसान नेता वाली छवि बचाए रखने के लिए कषि कानून के विरोध में आवाज बुलंद करने लगे. राकेश टिकैत वाली भारतीय किसान यूनियन का पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक दबदबा है, जो इस आंदोलन से एक बार फिर मजबूती के साथ सक्रिय हो रही है. .