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Lucknow: जानवर को बचाने के चक्कर में एक्सीडेंट, चार घंटे के ऑपरेशन के बाद बचाई जान

लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में विगत 27 जुलाई को थोरेसिक सर्जरी विभाग में सीतापुर के लहरपुर क्षेत्र के रहने वाले 28 वर्षीय युवक का एक जानवर को बचाने के चक्कर में रोड पर भीषण एक्सीडेंट हो गया. सर्जन शैलेंद्र यादव ने आगे जानकारी देते हुए बताया कि भर्ती के दौरान युवक को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी.

चार घंटे के ऑपरेशन के बाद बचाई जान चार घंटे के ऑपरेशन के बाद बचाई जान
सत्यम मिश्रा
  • लखनऊ,
  • 06 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 4:00 PM IST
  • चार घंटे के ऑपरेशन के बाद बचाई जान
  • गले में कांटेदार तार घुस गए

राजधानी लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में विगत 27 जुलाई को थोरेसिक सर्जरी विभाग में सीतापुर के लहरपुर क्षेत्र के रहने वाले 28 वर्षीय युवक का एक जानवर को बचाने के चक्कर में रोड पर भीषण एक्सीडेंट हो गया. जिसके चलते तत्काल उसे परिजनों की मदद से लखनऊ के ट्रामा सेंटर इमरजेंसी वार्ड में लाया गया जहां पर उसका प्रारंभिक उपचार किया गया. लेकिन स्थिति गंभीर होने के चलते तत्काल थोरेसिक डिपार्टमेंट के डॉक्टरों से संपर्क किया गया.
 
क्योंकि एक्सीडेंट में युवक के गले में काफी चोट पहुंची थी और रक्त स्राव भी काफी हो रहा था. जिसके बाद 28 वर्षीय लड़के को केजीएमयू के थोरेसिक सर्ज़री विभाग में भर्ती किया गया. वहीं थोरेसिक सर्जरी विभाग के एचओडी डॉक्टर एवं सर्जन शैलेंद्र यादव ने बताया कि सीतापुर के रहने वाले 28 वर्षीय युवक के साथ सड़क दुर्घटना हो गई थी, जिसमें युवक एक पशु को बचाने के चक्कर में चोटिल हो गया और कांटे वाले तार की रेलिंग से जा टकराया. 

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गले में कांटेदार तार घुस गए और गाड़ी रफ्तार में होने के कारण युवक तार वाले कांटे के साथ घसीटा हुआ आगे तक चला गया. इस वजह से गले में मौजूद ईसोफैगस और ट्रेकिया पूरी तरीके से क्षतिग्रस्त हो गए थे. ईसोफैगस लगभग 25 सेंटीमीटर लंबी एक संकरी नली होती है जो मुख के पीछे ग्रसनी से शुरू होती है, और श्वास नलिका से होते हुए हृदय के पीछे से वक्ष के थोरेसिक डायफ़्राम से गुजरती है. यह आमाशय के सबसे ऊपरी भाग में आकर जुड़ती है. इसे ग्रसिका नली भी कहते हैं.

सर्जन शैलेंद्र यादव ने आगे जानकारी देते हुए बताया कि भर्ती के दौरान युवक को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी, साथ ही खाने की नालियां पूरी तरीके से कटकर गले से लटक रही थी, ऐसी स्थिति में शिवाय सर्जरी के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था और फिर थोरेसिक सर्जरी विभाग के अन्य सर्जनों की मदद से तत्काल ऑपरेशन किया गया. थोरेसिक सर्जरी विभागाध्यक्ष बताते हैं कि ऑपरेशन लगातार 4 घंटे चला, जिसमें कटी हुई गले की नलियों को सावधानी पूर्वक ठीक किया गया. डॉक्टर शैलेंद्र ने आगे बताया कि मरीज की स्थिति इस वक्त बेहतर है. 

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हालांकि उसे गले में मौजूद खाने की ग्रंथियों को रिपेयर किया गया है, जिसकी वजह से मरीज को भोजन अभी क्यूब की सहायता से दिया जा रहा है. क्योंकि अभी हाल ही में ऑपरेशन हुआ है तो कोई दिक्कत ना आए इसलिए अभी क्यूब डालकर भोजन कराया जा रहा है. फिलहाल वह खतरे से बाहर है और स्वस्थ है.
 

 

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