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EXCLUSIVE: अखिलेश के ड्रीम प्रोजेक्ट गोमती रिवर फ्रंट में बड़ा गोलमाल, लपेटे में बड़े अधिकारी

जांच रिपोर्ट में प्रोजेक्ट के चीफ इंजीनियर को प्रथम दृष्टया दोषी करार दिया गया है. जांच समिति ने रिपोर्ट में लिखा है की डायफ्राम वॉल निर्माण में आवंटन से 29 प्रतिशत ज्यादा का व्यय हुआ है. रबर डैम में साढे 22 प्रतिशत आवंटन से ज्यादा व्यय हुआ है. तैरता फव्वारा में 585 प्रतिशत ज्यादा व्यय हुआ है जबकि डायफ्राम वॉल की डिजाइन और ड्राइंग में 264 प्रतिशत ज्यादा व्यय हुआ है.

गोमती रिवर फ्रंट गोमती रिवर फ्रंट
कुमार अभिषेक
  • लखनऊ,
  • 24 जून 2017,
  • अपडेटेड 6:22 PM IST

यूपी में योगी सरकार ने जिस गोमती रिवर फ्रंट योजना की न्यायिक जांच कराई है उसकी जांच रिपोर्ट फिलहाल सार्वजनिक नहीं हुई है लेकिन इस जांच रिपोर्ट के आधार पर सिंचाई विभाग के 8 वरिष्ठ इंजीनियरों पर केस दर्ज हो चुका है. दो सीनियर आईएएस ऑफिसर इस जांच के बाद सवालों के घेरे में हैं जिन पर जांच समिति ने गंभीर सवाल खड़े किए हैं. योगी सरकार ने इस मामले को सीबीआई को देने का मन बना लिया है ऐसे में गोमती रिवरफ्रंट से जुड़े रहे दो सीनियर आईएएस अधिकारियों पर भी घोटाले में शामिल होने के गंभीर आरोप लगे हैं.

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गोमती रिवर फ्रंट परियोजना की जांच रिपोर्ट फिलहाल अतिगोपनीय है लेकिन इसकी एक कॉपी 'आजतक' के हाथ लगी है. इस जांच रिपोर्ट में इस परियोजना से जुड़े सीनियर आईएएस अधिकारी जो कि मुख्य सचिव रैंक के थे, साथ-साथ लगभग दर्जनभर इंजीनियर और चीफ इंजीनियर पर गंभीर अनियमितओं के आरोप लगाए गए हैं.

इस रिपोर्ट में राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव सिंचाई पर अनियमितता के गंभीर आरोप लगे हैं. जांच समिति ने परियोजना की लागत और भुगतान में गंभीर वित्तीय अनियमितताएं पाई हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि गोमती रिवर फ्रंट परियोजना के टेंडर में गंभीर अनियमितता बरती गई हैं. साथ ही मनमाने ढंग से टेंडर बांटे गए, ब्लैक लिस्टेड कंपनियों को बड़े काम दिए गए हैं.

जांच समिति ने गेमन इंडिया को काम दिए जाने पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं. जांच समिति ने लिखा है कि पश्चिम बंगाल, राजस्थान और दिल्ली में यह कंपनी ब्लैक लिस्टेड है जिसकी सूचना इंटरनेट पर भी है बावजूद इसके इस फर्म को इतने बड़े अनुबंध दिए गए. परियोजना का सबसे बड़ा काम डायफ्राम वॉल का काम था जिसका अनुबंध गेमन इंडिया लिमिटेड से हुआ. इसी फर्म को रबर डैम का भी बड़ा काम दिया गया और अनुचित तरीके से लाभ पहुंचाने के लिए 100 करोड़ से ज्यादा की परफॉर्मेंस गारंटी भी नहीं ली गई.

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जांच रिपोर्ट में प्रोजेक्ट के चीफ इंजीनियर को प्रथम दृष्टया दोषी करार दिया गया है. जांच समिति ने रिपोर्ट में लिखा है की डायफ्राम वॉल निर्माण में आवंटन से 29 प्रतिशत ज्यादा का व्यय हुआ है. रबर डैम में साढे 22 प्रतिशत आवंटन से ज्यादा व्यय हुआ है. तैरता फव्वारा में 585 प्रतिशत ज्यादा व्यय हुआ है जबकि डायफ्राम वॉल की डिजाइन और ड्राइंग में 264 प्रतिशत ज्यादा व्यय हुआ है.

जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में डाइवर्जन ऑफ फंड के साथ-साथ इस परियोजना में किसी चेर एंड बेलेंस के नहीं होने पर भी सवाल उठाए हैं. टास्क फोर्स को लेकर राज्य के मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव सिंचाई पर भी गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं रिपोर्ट में लिखा है की मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट और काम शीघ्र खत्म करने के आड़ में इस परियोजना से संबंधित इंजीनियरों ने मनमाने ढंग कुछ काम किए.

रिपोर्ट में सबसे गंभीर सवाल तत्कालीन प्रमुख सचिव सिंचाई पर उठाए गए हैं और लिखा है कि 20 से 25 बार प्रमुख सचिव सिंचाई मौके पर काम देखने आए चीफ इंजीनियर सिंचाई भी हर दूसरे तीसरे दिन मौके पर आते थे फिर भी चौंकाने वाली बात यह है कि आपत्तिजनक वित्तीय अनियमितताओं की बात उनके संज्ञान में क्यों नहीं आई जो खुद वित्तीय अनियमितता रोकने के लिए बने टास्क फोर्स के सदस्य भी थे.

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यही वजह है कि इस जांच रिपोर्ट में पूरी परियोजना में वित्तीय अनियमितता को 'दाल में नमक नहीं बल्कि नमक में दाल' की संज्ञा दी गई है. अपने निष्कर्ष में न्यायिक जांच समिति ने लिखा है हाई लेवल टास्क फोर्स जो की मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनाई गई थी और जिसमें तत्कालीन प्रमुख सचिव सिंचाई उस समय के चीफ इंजीनियर और दूसरे इंजीनियर थे वह सभी प्रथम दृष्टया दोषी हैं.

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