
गोरखपुर का सरकारी अस्पताल मासूम बच्चों के लिए कब्रिस्तान बन गया. यहां अस्पताल की लापरवाही ने कई बच्चों को मौत की नींद सुला दिया. एक-एक कर 33 मासूमों ने अस्पताल के अंदर दम तोड़ दिया. इस घटना को जानने और समझने गए योगी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह और आशुतोष टंडन ने आकड़े पेश कर घटना पर लीपा-पोती शुरू कर दी. योगी सरकार के मंत्रियों ने ठीक उसी तरह आकड़ेबाजी शुरू दी, जैसा साल 2014 में पश्चिम बंगाल के मालदा में हुई बच्चों की मौत पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने की थी.
गौरतलब है कि मालदा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में लापरवाही के चलते दर्जनों बच्चों की मौत हो गई थी. पिछले तीन साल में यहां 600 नवजात बच्चों की मौत हुई, जिसके बाद सीएम ममता ने भी आकड़ों के सहारा लेते हुए बताया था कि आसपास के जिलों के लोग अपने बच्चों की हालत नाजुक हो जाने पर उन्हें अस्पताल लाते हैं. इसी बजह से उन्हें बचा पाना काफी मुश्किल हो जाता है.
ममता की तरह इस बार योगी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह और आशुतोष टंडन ने भी आकड़ेबाजी पेश करके अपनी सरकार का बचाव किया. घटना की वजह बताने के बजाए दोनों मंत्री सिर्फ पिछले कुछ सालों के आकड़े बताने में लगे रहे. उन्होंने भी यही कहा कि गोरखपुर के इस मेडिकल कॉलेज में आस पास के जिलों और पड़ोसी राज्य बिहार व नेपाल से मरीज इलाज कराने आते हैं. इतना ही नहीं जो बच्चे इलाज के लिए अस्पताल लाए जाते हैं, वे काफी गंभीर हालत में होते हैं, जिन्हें बचा पाना डॉक्टरों के लिए मुश्किल हो जाता है.
सिद्धार्थनाथ सिंह ने बीते कुछ वर्षों में जापानी बुखार से मरे बच्चों के आकड़े पेश करके सरकार का बचाव किया. उन्होंने कहा कि ये घटना कोई पहली बार नहीं हुई है. हर साल अगस्त के महीने बच्चों की इस तरह मौत होती है. ऐसे ही 2014 में 567 बच्चों की मौत हुई थी.
दोनों मंत्री पूरे प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बस यही बताने की कोशिश करते रहे कि इसमें सरकार का कोई दोष नहीं. उन्होंने कहा कि 9 अगस्त को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर अस्पताल गए थे. तब उन्होंने अस्पताल का दौरा भी किया था, लेकिन ऑक्सीजन सिलेंडर की सप्लाई में दिक्कत वाली बात उनके सामने नहीं रखी गई थी. शुक्रवार को अचानक
7.30 शाम को बीप करना शुरू किया, यानि गैस सप्लाई लो होने लगी. व्यवस्था ये रहती है कि ऑक्सीजन सप्लाइ कम होने पर गैस सिलेंडर लगे रहते हैं, तो उसकी व्यवस्था तुरंत शुरू हो गई थी.
ऐसे में सरकार की इन दलीलों से तो यही साबित होता है कि सरकार इन मासूम बच्चों की मौत की जिम्मेदारी लेने के बजाए बस आकड़ों की बाजीगारी में जुटी हुई है.