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उत्तर प्रदेश में दो सीटों पर हुए उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा है. ये दो सीटें सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर लोकसभा सीट थीं. लेकिन दोनों ही सीटों पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की जुगलबंदी ने बीजेपी की लहर को तहस-नहस कर दिया.
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के इतिहास में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब गोरखपुर से आने वाला कोई मुख्यमंत्री उपचुनावों में हार गया हो. इससे पहले 1971 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह (टी.एन. सिंह) भी विधानसभा चुनाव हार गए थे. यह सीट गोरखपुर क्षेत्र की मणिराम विधानसभा सीट थी. इस हार के बाद उन्हें अपनी सीएम पद की गद्दी भी छोड़नी पड़ी थी.
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क्या है पूरी कहानी?
गोरखपुर जिले की मणिराम सीट से 1962, 1967 और 1969 में हिंदू महासभा के महंत अवैद्यनाथ विधायक चुने गए थे. लेकिन जब वह लोकसभा गए तो उन्होंने इस सीट को छोड़ा और टीएन सिंह को अपने समर्थन का ऐलान किया. मणिराम वही सीट है जहां पर गोरखनाथ मंदिर मौजूद है. आपको बता दें कि महंत अवैद्यनाथ, योगी आदित्यनाथ के गुरू थे.
इंदिरा ने भी किया था प्रचार
1971 में हुए इस उपचुनाव में टी.एन. सिंह को कांग्रेस के रामकृष्ण द्विवेदी ने मात दी थी. रामकृष्ण द्विवेदी के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी प्रचार किया था. उससे पहले जवाहर लाल नेहरू कभी भी उपचुनावों में प्रचार के लिए नहीं जाते थे, लेकिन इंदिरा गांधी गईं और यह फैसला तुरुप का इक्का साबित हुआ.
रामकृष्ण द्विवेदी को 33230 वोट मिले थे, वहीं टी.एन. सिंह को 17137 वोट ही मिल पाए थे. इससे पहले 1969 में चुनाव हुए थे उसमें महंत अवैद्यनाथ ने रामकृष्ण द्विवेदी को 19644 वोटों से मात दी थी. अब 47 साल बाद गोरखपुर ने एक बार फिर इतिहास दोहराया है. बस अंतर इतना है कि 1971 में मुख्यमंत्री विधानसभा सीट हारा था और 2018 में मुख्यमंत्री लोकसभा सीट हारा है.