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वाराणसी जिला कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. 20 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के दौरान आदेश दिया था कि ज्ञानवापी मामले में अब जिला कोर्ट सुनवाई करेगा. इस मामले में हिंदू और मुस्लिम पक्ष अपनी-अपनी दलीलें पेश कर रहे हैं. हिंदू पक्ष के सीनियर वकील हरिशंकर जैन ने बताया कि उन्होंने 275 पन्नों का जवाब दाखिल किया है.
आज तक के पास 275 पन्नों की पूरी रिपोर्ट है, जिसमें ज्ञानवापी में मंदिर होने का दावा किया गया है. जवाब में मुख्य रूप से काशी के इतिहास के बारे में बताया गया है. इसमें बताया गया है कि पहले इस जगह पर मंदिर था जहां पर पूजा हुआ करती थी. इस मंदिर को औरंगजेब ने गिरा तो दिया, लेकिन औरंगजेब पूरी तरह मंदिर पर कब्जा नहीं कर पाया. वहां निचले हिस्से में पूजा होती थी और इसके प्रमाण भी हैं.
सुप्रीम कोर्ट में 1936 का जिक्र
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए जवाब में 1936 के एक केस का भी जिक्र किया गया है. हरिशंकर जैन बताते हैं कि इसका प्रमाण 1936 का है. जब दीन मोहम्मद ने एक केस फाइल किया था और इसमें 16 लोगों की गवाही ली गई थी. यह सब सरकार की तरफ से करवाया गया था. हालांकि इसमें कोई हिंदू प्रतिवादी नहीं था. गवाही इस बात को साबित करने के लिए करवाई गई थी कि उस स्थान का चरित्र हिंदू है. इसका धार्मिक स्वरूप हिंदू है और उस जगह पर पूजा-पाठ लंबे समय से हो रही थी.
16 गवाहों में से एक थे लक्ष्मी दास
इन 16 गवाहों में से एक लक्ष्मी दास ने अपने बयान में कहा था, "ज्ञानवापी एक तीर्थ स्थल है जहां पर पूजा की जाती है और जिसका जल अमृत समझ कर पिया जाता है. यहां एक परिक्रमा की जाती है, जो उत्तर से शुरू होती है. उसके बाद मुक्तेश्वर के छिपे हुए स्थान पर पहुंचते हैं. मस्जिद की दीवार के उत्तर-पूर्व कोने में मार्कंडेश्वर हैं. पूर्व में 'पीपल' के पेड़ के नीचे भगवान गणेश्वर हैं. बाएं हाथ की ओर एक लकड़ी की सीढ़ी है, जिससे हम राधा के मंदिर तक पहुंचते हैं. उसके बाद कृष्ण और फिर नीचे आने पर गौरी शंकर का मंदिर मिलता है जिसके नीचे तेरकेश्वर और एक तरफ नंदी हैं. उसके बाद है ज्ञानवापी का कुआं, जिसके बाएं हाथ पर एक और 'पीपल' का पेड़ है. वहीं लोहे की बाड़ के पीछे बाईं ओर बद्रीनाथ का मंदिर है.
इसके अलावा लक्ष्मी दास ने और भी कई मंदिर और पूजा किए जाने वाली जगहों के बारे में बताया. उन्होंने कई धार्मिक चिन्ह और पूजा की जाने वाले चिन्हों के बारे में भी जानकारी दी थी. इसके साथ ही लक्ष्मी दास ने पीपल के पेड़ों के बारे में भी बताया था और उनके पास होने वाली पूजा के बारे में भी बताया था. इन सबके बाद उन्होंने बताया था कि कहां श्रृंगार गौरी की पूजा की जाती थी.
एएस एलटेकर की गवाही का जिक्र
हरिशंकर जैन ने एक और महत्वपूर्ण गवाह डॉक्टर एएस एलटेकर का जिक्र करते हुए कहा कि टेकर बहुत विद्वान और महत्वपूर्ण गवाह थे क्योंकि वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास और संस्कृति विभाग के अध्यक्ष थे.
अलटेकर ने अपने बयान में कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद की पश्चिमी दीवार के पीछे देवी श्रृंगार गौरी की प्रतिमा अनादि काल से विद्यमान है और लगातार उनकी पूजा की जा रही है. हिंदुओं ने मस्जिद के पश्चिमी भाग में पूजा जारी रखी. अलटेकर ने यह भी कहा कि यह आदि विश्वेश्वर का स्थान है. उन्होंने अपने बयान में कहा कि यहां पर नीचे एक तहखाना बना हुआ है. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि तहखाना ज्ञानवापी मंडप के ठीक बराबरी पर बना हुआ है.
हरि प्रसाद दास ने भी दी थी गवाही
इसी तरह एक और गवाह हरि प्रसाद दास ने भी कहा था कि पंच मंडप के पास श्रृंगार गौरी विद्यमान हैं. मारकेश्वर अदृश्य रूप में विद्यमान हैं और भक्तों द्वारा पूजे जाते हैं. हिंदू ही पूरी जमीन के मालिक हैं और अंदर की पूरी जमीन भी हिंदुओं की ही है.