Advertisement

यूपी शिक्षा विभाग की कारस्तानी: मासूम दिव्यांग बच्चों को बनाया मजदूर

जिस पुलिस लाइन ग्राउंड में यह पूरा कार्यक्रम आयोजित किया गया, वहीँ से करीब 300 मीटर की दूरी पर हैंडीकैप्ड बच्चों के लिए सर्वशिक्षा अभियान के तहत बने समेकित शिक्षा केंद्र में रहकर यह बच्चे अपनी पढ़ाई करते हैं. कार्यक्रम स्थल के मैदान से सामान समेटकर इसी केंद्र में लाया गया, जिसमें मजदूर के तौर पर इन मासूम बच्चों का इस्तेमाल किया गया.

दिव्यांग बच्चों से कराया काम दिव्यांग बच्चों से कराया काम
सूरज पांडेय
  • बांदा,
  • 25 फरवरी 2016,
  • अपडेटेड 9:10 AM IST

यूपी के बांदा में शिक्षा विभाग की एक ऐसी कारस्तानी सामने आयी है जिससे हर किसी का माथा यह सोचने को जरूर मजबूर होगा कि आखिर बच्चों का भविष्य संवारने की जिम्मेदारी किन कंधों पर है! जिस विभाग पर बच्चों के हाथों में पढने की किताबें देने की जिम्मेदारी है, उसने ही बच्चों के सिर भारी बोझ लाद उन्हें मजदूर बना डाला, वह भी जन्म से दिव्यांग मासूम बच्चों को. हैरत की बात तो यह है कि इतना सबकुछ आला अधिकारियों के मौके पर मौजूद रहते होता रहा. कार्यक्रम स्थल पर बेसिक शिक्षा के अपर निदेशक जीएस राजपूत और बांदा बीएसए समेत कई जिलों के शिक्षा अधिकारी मौजूद थे.

Advertisement

यहाँ पुलिस लाइन ग्राउंड में चल रही मंडल खेलकूद प्रतियोगिता के बुधवार शाम हुए समापन के बाद दिव्यांग स्कूली बच्चों को मजदूरी के काम में लगा दिया गया. शिक्षा अधिकारियों की मौजूदगी में जिन मासूम बच्चों के सिर में भारी कुर्सियां और बाकि सामान लादकर ढुलाई करवाई गयी उनकी उम्र 8 से 10 वर्ष के बीच है. यह बच्चे जन्म से ही गूंगे और बहरे हैं, जोकि पुलिस लाइन परिसर में सर्व शिक्षा अभियान के तहत विशेष तौर पर बने सामेकित शिक्षा केंद्र में रहकर अपनी पढाई करते हैं. मामले को पहले रफा दफा करने की कोशिश में लगे अपर निदेशक जीएस राजपूत ने बाद में घटना की जांच कर कार्रवाई की बात कही है.

यूपी के शिक्षा विभाग की करतूत
यूपी के जिस बेसिक शिक्षा विभाग ने बच्चों की प्रतिभा तराशने के लिए मंडल स्तर पर खेलकूद प्रतियोगिता का यहाँ आयोजन किया था, उसी के आयोजकों ने कार्यक्रम समापन पर छोटे छोटे दिव्यांग बच्चों के साथ जिस तरह का सुलूक किया वह हर किसी का सिर शर्म से झुका देने वाला है. विभागीय अधिकारियों की मौजूदगी में आयोजकों ने कार्यक्रम स्थल से कुर्सियां समेटकर ढुलाई करने के काम में छोटे छोटे बच्चों को लगा दिया, वह भी उन बच्चों को जो न तो कुछ बोल सकते थे और न ही सुन सकते थे.

Advertisement

जन्म से गूंगे-बहरे बच्चों से कराया काम
पहले तो यह समझा गया कि स्कूली यूनिफार्म पहने मजदूरी कर रहे यह बच्चे सामान्य हैं लेकिन जब उनसे बात करने की कोशिश की गयी तब पता चला कि बच्चे बोल-सुन नहीं सकते और जन्म से ही विकलांग हैं. कार्यक्रम स्थल पर मौजूद अपर बेसिक शिक्षा निदेशक जीएस राजपूत से जब इस बारे में बात की गयी तब पहले तो वह बच्चों को टेंट मजदूर बताकर बात काट गये लेकिन बाद में जब बच्चे यूनिफार्म में दिखाए गये तब उन्होंने जांच कर कार्रवाई का आश्वासन दिया.

पुलिस लाइन ग्राउंड में था प्रोग्राम
जिस पुलिस लाइन ग्राउंड में यह पूरा कार्यक्रम आयोजित किया गया, वहीँ से करीब 300 मीटर की दूरी पर हैंडीकैप्ड बच्चों के लिए सर्वशिक्षा अभियान के तहत बने समेकित शिक्षा केंद्र में रहकर यह बच्चे अपनी पढ़ाई करते हैं. कार्यक्रम स्थल के मैदान से सामान समेटकर इसी केंद्र में लाया गया, जिसमें मजदूर के तौर पर इन मासूम बच्चों का इस्तेमाल किया गया. बहरहाल, जिस शिक्षा विभाग पर बच्चों के भविष्य संवारने की जिम्मेदारी तय है उसी विभाग की इस कारस्तानी ने उन उम्मीदों को जरूर धूमिल किया है जिनमें बच्चों के उज्जवल भविष्य का सपना तैरता है, खासतौर से उन दिव्यांग बच्चों के सुनहरे भविष्य का सपना जिनसे बचपन से ही जिंदगी नाराज़ रही हो.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement