
Jamiat Ulama-I-Hind Meeting: मथुरा, ज्ञानवापी और फिर कुतुब मीनार. देशभर में लागातर सामने आ रहे मजहबी मसलों के बीच जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने 2 दिन का जलसा आयोजित किया. उत्तर प्रदेश के देवबंद में 28 मई से शुरू हुए इस जलसे का रविवार को आखिरी दिन है. आज मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि ये मुल्क हमारा और हम इसे बचाएंगे. किसी को अगर हमारा मजहब बर्दाश्त नहीं है तो कहीं और चले जाओ. हमको मौका मिला था पाकिस्तान जाने का. लेकिन हम नहीं गए. बात-बात पर पाकिस्तान भेजने वाले खुद पाकिस्तान चले जाएं.
रविवार को कॉमन सिविल कोड सहित कई मुद्दों पर अहम प्रस्ताव पास हुए. मदनी ने जलसे में मौजूद लोगों से सब्र करने के लिए कहा. उन्होंने एक किस्से का जिक्र करते हुए कहा, '2014 में सीबीआई ने मेरे खिलाफ केस किया. मैंने 5 साल से ज्यादा केस लड़ा. चैनल की डिबेट में मुझसे सवाल किए गए, मैंने कहा मुझसे कुछ गलती हो गई होगी. अदालत से मुझे फायदा मिला, यूपी में सरकार आते ही एक को रेप केस में भेज दिया गया. मीडिया में चला कि मदनी रेप करते पकड़े गए. इसलिए बता रहा हूं सब्र करना किसे कहते हैं.
उन्होंने कहा कि परेशान होने की जरूयत नहीं है. हौसला रखने की जरूरत है. 10 साल से सब्र ही कर रहे हैं. मुझसे अक्सर पूछा कहा जाता है कि जहर उगल रहे हैं. मैंने उससे पूछा कि जो उगल रहे हैं, उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है. ये एक खास जहनियत बनाई जा रही है, हमारे वजूद पर सवाल खड़े हो रहे है. हम अल्पसंख्यक नहीं हैं, हम इस मुल्क के दूसरे बहुसंख्यक हैं.
आज जलसे में पारित किए गए प्रस्ताव में कहा गया कि समान नागरिक संहिता लागू करने को मूल संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने की कोशिशों की जा रही है. मुस्लिम पर्सनल लॉ में शामिल शादी, तलाक, खुला (बीवी की मांग पर तलाक), विरासत आदि के नियम-कानून किसी समाज, समूह या व्यक्ति के बनाए नहीं हैं. नमाज, रोजा, हज की तरह ये भी मजहबी आदेशों का हिस्सा है. जो पवित्र कुरान और हदीसों से लिए गए हैं.
कॉमन सिविल कोड कानून के खिलाफ
प्रस्ताव में कहा गया कि पर्सनल लॉ में बदलाव या पालन से रोकना धारा 25 में दी गई गारंटी के खिलाफ है. इसके बावजूद अनेक राज्यों में सत्तारूढ़ लोग पर्सनल लॉ को खत्म करने की मंशा से ‘समान नागरिक संहिता क़ानून’ लागू करने की बात कर रहे हैं और संविधान व पिछली सरकारों के आश्वासनों और वादों को दरकिनार कर के देश के संविधान की सच्ची भावना की अनदेखी करना चाहते हैं.
ज्ञानवापी और मथुरा पर ये प्रस्ताव
प्रस्ताव में प्राचीन इबादतगाहों पर बार-बार विवाद खड़ा करके देश में अमन-शांति खराब करने वाले दलों के रवैये पर नाराजगी जाहिर की गई. वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की ईदगाह मस्जिद समेत कई मस्जिदों के खिलाफ ऐसे अभियान जारी हैं, जिससे अमन-शांति और अखंडता को नुकसान पहुंचा है.
1991 एक्ट के पालन की कही बात
प्रस्ताव में कहा गया, 'बनारस और मथुरा की निचली अदालतों के आदेशों से विभाजनकारी राजनीति को मदद मिली है. ‘पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) एक्ट 1991’ की स्पष्ट अवहेलना हुई है. संसद से यह तय हो चुका है कि 15 अगस्त 1947 को जिस इबादतगाह की जो हैसियत थी, वह उसी तरह बरकरार रहेगी. बताया गया कि निचली अदालतों ने बाबरी मस्जिद के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की भी अनदेखी की है.
गड़े मुर्दे उखाड़ने से बचने की सलाह
प्रस्ताव में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद फैसले में ’पूजा स्थल क़ानून 1991 एक्ट 42’ को संविधान के मूल ढ़ांचे की असली आत्मा बताया है. इसमें यह संदेश मौजूद है कि सरकार, राजनीतिक दल और किसी धार्मिक वर्ग को इस तरह के मामलों में अतीत के गड़े मुर्दों को उखाड़ने से बचना चाहिए.
संवैधानिक सीमाओं में लड़ाई लड़ने के संकेत
प्रस्ताव में आगे कहा गया कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद का ये सम्मेलन स्पष्ट कर देना चाहता है कि कोई मुसलमान इस्लामी कायदे कानून में किसी भी दखलंदाजी को स्वीकार नहीं करता. यदि कोई सरकार समान नागरिक संहिता को लागू करने की गलती करती है, तो मुस्लिम और अन्य वर्ग इस घोर अन्याय हरगिज स्वीकार नहीं करेंगे और इसके खिलाफ संवैधानिक सीमाओं के अंदर रहकर हर संभव उपाय करने के लिए मजबूर होंगे.
इस्लामोफोबिया के खिलाफ लामबंदी पर सहमति
कल से लेकर आज तक जो भी प्रस्ताव इस कांफ्रेंस में लाए गए हैं, उन पर जमीयत की नेशनल गवर्निंग बॉडी अपनी मुहर लगाएगी और अल्पसंख्यक समुदाय और देश के लिए संदेश जारी किया जाएगा. बता दें कि जलसे के पहले दिन इस्लामोफोबिया के खिलाफ लामबंद होने पर सहमति बनी थी. इस दौरान मुस्लिम धर्मगुरुओं ने सरकार को भी घेरा था. जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सकारात्मक संदेश देने के लिए धर्म संसद की तर्ज पर 1000 जगह सद्भावना संसद के आयोजन का ऐलान किया था.