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कैराना से करवट लेगी अजीत सिंह की किस्मत, RLD के आए अच्छे दिन

इस जीत से चौधरी अजीत सिंह का कद बढ़ा है और अब वे 2019 के लिए प्रस्तावित महागठबंधन में सीटों के लिए मोल भाव करने की स्थिति में आ गए हैं.

चौधरी अजीत सिंह चौधरी अजीत सिंह
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 31 मई 2018,
  • अपडेटेड 3:19 PM IST

फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव में सपा-बसपा गठबंधन ने अपनी अग्निपरीक्षा पास की, तो कैराना में बारी आरएलडी और उसके मुखिया चौधरी अजीत सिंह की थी. वही आरएलडी जो पहले लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव में पिटने के बाद पूरी तरह हाशिए पर चली गई थी. कैराना लोकसभा उपचुनाव में पार्टी ने अपने मूल वोट बैंक जाट समुदाय को बीजेपी खेमे से वापस लाकर अपनी सियासत को संजीवनी दे दी है. इस जीत से चौधरी अजीत सिंह का कद बढ़ा है और अब वे 2019 के लिए प्रस्तावित महागठबंधन में सीटों के लिए मोल भाव करने की स्थिति में आ गए हैं.

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कैराना लोकसभा सीट पर आरएलडी से विपक्ष की संयुक्त उम्मीदवार तबस्सुम हसन बीजेपी प्रत्याशी मृगांका सिंह पर भारी पड़ी हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह के नेतृत्व वाली आरएलडी का गढ़ हुआ करता था. इस इलाके के जाट और मुस्लिम वोटों को एकजुट करके अजित सिंह कई बार सत्ता का स्वाद चख चुके हैं. लेकिन जब से इस गठजोड़ में दरार पड़ी, तब से आरएलडी के राजनीतिक भविष्य पर सवाल उठने लगे थे.

गौरतलब है कि नवंबर 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच खाई गहरी हो गई थी. आरएलडी की राजनीति के सितारे डूबने लगे थे. लेकिन अब विपक्षी एकता बनने के बाद से अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी इस जाट और मुस्लिम गठजोड़ को कैराना लोकसभा उपचुनाव के जरिए फिर से कायम करने में सफल रहे हैं.

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आरएलडी मुखिया और उनके बेटे जयंत चौधरी पिछले 6 महीने से अपने आधार को मजबूत करने के लिए लगे हुए हैं. करीब 100 से ज़्यादा रैलियों को उन्होंने संबोधित किया और दोनों समुदाय के लोगों को एकजुट होने का संदेश देकर पार्टी के लिए वोट मांगा. आरएलडी ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के नाम पर इमोशनल कार्ड भी खेला. चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि वोटिंग के ठीक बाद थी.

दरअसल आरजेडी के सामने सबसे बड़ी चुनौती जाट वोट को वापस अपने पाले में लाने की है, जो 2014 के लोकसभा चुनाव और बाद में 2017 के विधानसभा चुनाव में उससे छिटककर बीजेपी के खेमे में चला गया है. इसी का नतीजा है कि लोकसभा चुनाव में खुद अजीत सिंह हार गए और पार्टी एक सीट भी नहीं जीत सकी. जबकि विधानसभा चुनाव में एक विधायक जीत सका था, जो बीजेपी के साथ चला गया.

यूपी में बीजेपी के खिलाफ सपा-बसपा एकजुट हुए तो उसके नतीजे भी आए. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की सीट पर पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा. इससे उत्साहित सभी विपक्षी दलों ने कैराना में भी पूरा मैदान आरएलडी के लिए खाली कर दिया.

कैराना में बीजेपी से हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह अपने पिता की विरासत को बचाने के लिए उतरी थीं. वे क्षेत्र की बेटी होने की दुहाई देकर वोट मांग रही थीं. वहीं, आरएलडी उम्मीदवार तबस्सुम हसन के बहाने चौधरी अजीत सिंह अपना सियासी वजूद बचाने के लिए दिन रात एक कर रहे थे. जाट समुदाय के घर-घर जाकर अजीत सिंह और उनके बेटे ने तबस्सुम के लिए वोट मांगे. बची-खुची कसर सीएम योगी आदित्यनाथ के उस बयान ने कर दी जिसमें उन्होंने कहा 'बाप-बेटा (अजीत और जयंत) आज वोटों के लिए गली-गली भीख मांग रहे हैं.' माना जा रहा है कि सीएम का यही बयान कैराना की राजनीति में ट्रनिंग प्वाइंट बना. जाट समुदाय को योगी की बात चुभ गई.

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कैराना सीट पर आरएलडी उम्मीदवार तबस्सुम हसन से ज्यादा जीत के मायने पार्टी प्रमुख चौधरी अजीत सिंह के लिए हैं. जाट वोट को जोड़ने में सफलता हासिल करके उन्होंने महागठबंधन के लिए अपने रास्ते खोल लिए हैं. 

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