
उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा के उपचुनाव में बीजेपी ने सहानुभूति के जरिए जीत हासिल करने के लिए मृगांका सिंह को उम्मीदवार बनाया है. जबकि आरएलडी ने तबस्सुम हसन को उतारा है और उन्हें सपा का समर्थन है. बीजेपी और आरएलडी दोनों ने गुर्जर समुदाय पर दांव लगाया है. तबस्सुम जहां मुस्लिम गुर्जर हैं वहीं मृगांका हिंदू गुर्जर समुदाय से आती हैं.
बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में कैराना संसदीय सीट से बीजेपी के हुकुम सिंह ने जीत दर्ज की थी. इसी साल 3 फरवरी को उनके निधन हो जाने के चलते उपचुनाव हो रहा है. बीजेपी ने हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है.
मृगांका सिंह की शादी 1983 में गाजियाबाद के कारोबारी सुनील सिंह से हुई. 1999 में उनके पति की एक दुर्घटना में मौत हो गई थी. उनकी तीन बेटियां और एक बेटा है. मृगांका सिंह देहरादून पब्लिक स्कूल नाम से कई विद्यालय चला रही हैं. हालांकि स्कूल की शुरुआत उनके ससुर ने की थी.
हुकुम सिंह पश्चिम यूपी में कद्दावर नेता रहे हैं. उन्होंने अपने कॉरियर की शुरुआत कांग्रेस से की और बाद में उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया था. वे सात बार विधायक बने और 2014 के लोकसभा चुनाव सांसद बने थे. पश्चिम यूपी में उन्हें बाबूजी के नाम से लोग पुकारते थे. हुकुम सिंह का सारा राजनीतिक कामकाज उनके भतीजे अनिल सिंह संभालते थे.
2014 में हुकुम सिंह कैराना लोकसभा सीट से सांसद हुए तो उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद अनिल सिंह को बीजेपी ने टिकट दिया, लेकिन सपा के नाहिद हसन से वो चुनाव हार गए. इसके बाद हुकुम सिंह ने 2017 के विधानसभा चुनाव में अनिल सिंह के बजाय अपनी बेटी मृगांका सिंह को अपनी राजनीतिक विरासत सौंपने का फैसला किया. यहीं से अनिल सिंह ने अपनी राजनीतिक राह अलग चुन ली.
हुकुम सिंह की चार बेटियों में मृगांका सिंह सबसे बड़ी बेटी हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में मृगांका सिंह को बीजेपी से टिकट मिला था. बीजेपी के पक्ष में मजबूत लहर के बावजूद वे चुनाव नहीं जीत सकीं. मृगांका सिंह पर एक बार फिर पार्टी ने भरोसा जताया है और उन्हें उम्मीदवार बनाया है. ऐसे में उनके सामने पिता की विरासत को संभालने की चुनौती है. कैराना उपचुनाव तय करेगा कि उनका राजनीतिक भविष्य क्या होगा? मृगांका उपचुनाव जीतती हैं तो आगे की राह बनेगी. वहीं अगर हारती हैं तो उनके राजनीतिक भविष्य को गहरा झटका लग सकता है.
कैराना लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें आती हैं. इस लोकसभा सीट में शामली जिले की थानाभवन, कैराना और शामली विधानसभा सीटों के अलावा सहारनपुर जिले के गंगोह व नकुड़ विधानसभा सीटें आती हैं. मौजूदा समय में इन पांच विधानसभा सीटों में चार बीजेपी के पास हैं और कैराना विधानसभा सीट सपा के पास है. इन सीटों पर बीजेपी को 2017 में 4 लाख 33 हजार वोट मिले थे. जबकि बसपा प्रत्याशियों को 2 लाख 8 हजार और सपा के 3 प्रत्याशियों को 1 लाख 6 हजार वोट मिले थे. सपा ने शामली व नकुड़ सीटें कांग्रेस को दे दी थी.
कैराना लोकसभा की सियासत इतिहास
कैराना लोकसभा सीट 1962 में वजूद में आई. तब से लेकर अब तक 14 बार चुनाव हो चुके हैं. इनमें कांग्रेस और बीजेपी दो-दो बार चुनाव जीत सकी हैं. ये सीट अलग-अलग राजनीतिक दलों के खाते में जाती रही है. कैराना लोकसभा सीट पर पहली बार हुए चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर यशपाल सिंह ने जीत दर्ज की थी. 1967 में सोशलिस्ट पार्टी, 1971 में कांग्रेस, 1977 में जनता पार्टी, 1980 में जनता पार्टी (सेक्युलर), 1984 में कांग्रेस, 1989, 1991 में कांग्रेस, 1996 में सपा, 1998 में बीजेपी, 1999 और 2004 में राष्ट्रीय लोकदल, 2009 में बसपा और 2014 में बीजेपी ने जीत दर्ज कर चुकी है.
कैराना का जातीय समीकरण
कैराना लोकसभा सीट पर 17 लाख मतदाता हैं जिनमें पांच लाख मुस्लिम, चार लाख बैकवर्ड (जाट, गुर्जर, सैनी, कश्यप, प्रजापति और अन्य शामिल) और डेढ़ लाख वोट जाटव दलित है और 1 लाख के करीब गैरजाटव दलित मतदाता हैं. कैराना सीट गुर्जर बहुल मानी जाती है. यहां तीन लाख गुर्जर मतदाता हैं इनमें हिंदू-मुस्लिम दोनों गुर्जर शामिल हैं. इसीलिए इस सीट पर गुर्जर समुदाय के उम्मीदवारों ने ज्यादातर बार जीत दर्ज की हैं.
वोटों का समीकरण
बीजेपी को 5 लाख 65 हजार 909 वोट मिले थे. जबकि सपा को 3 लाख 29 हजार 81 वोट और बसपा को 1 लाख 60 हजार 414 वोट. ऐसे में अगर सपा-बसपा के वोट जोड़ लिए जाएं तो भी बीजेपी आगे है. लेकिन 2014 और 2018 की कहानी अलग है. ऐसे में मृगांका सिंह और तबस्सुम के बीच चुनावी लड़ाई कांटे की होती हुई नजर आ रही है.