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खतौली सीट पर जयंत का जाट-मुस्लिम-गुर्जर समीकरण, क्या तोड़ पाएंगे बीजेपी का तिलिस्म?

मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट पर हो रहा उपचुनाव BJP और RLD के लिए साख का सवाल बन गया है. आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने खतौली सीट पर जाट-मुस्लिम-गुर्जर समीकरण बनाने के लिए गुर्जर समुदाय से आने वाले मदन भैया को प्रत्याशी बनाया है. ऐसे में देखना है कि बीजेपी को इस समीकरण के जरिए क्या जयंत चौधरी मात दे पाएंगे?

आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 14 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 12:25 PM IST

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले की खतौली विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में आरएलडी और बीजेपी के बीच सीधी मुकाबला है. खतौली उपचुनाव सिर्फ एक विधायक के लिए नहीं बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का लिटमस टेस्ट भी माना जा रहा है. आरएलडी ने चार बार के विधायक रहे मदन भैया को खतौली से उतारा है जबकि बीजेपी ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. सपा इस सीट पर आरएलडी को समर्थन कर रही हैं तो कांग्रेस-बसपा उपचुनाव में नहीं लड़ेंगी. 

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मुजफ्फरनगर दंगे मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद बीजेपी विधायक विक्रम सैनी की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई है, जिसके चलते खतौली विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है. बीजेपी 24 साल के बाद 2017 में यह सीट जीतने में कामयाब रही थी और 2022 में दोबारा से कब्जा जमाया था. विक्रम सैनी दोनों ही बार विधायक चुने गए थे. ऐसे में बीजेपी के लिए यह सीट बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है तो आरएलडी जाट बेल्ट में अपना सियासी वर्चस्व को बचाए रखने की कवायद में है. 

आरएलडी का सैनी दांव फेल रहा

खतौली विधानसभा सीट पर अभी तक आरएलडी सैनी समुदाय का दांव खेलती रही है, लेकिन यह फॉर्मूला 2017 के बाद से सफल नहीं रहा. इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में सपा से आए राजपाल सैनी को खतौली से प्रत्याशी बनाया था और उससे पहले 2017 में शहनवाज राणा को चुनाव लड़ाया था. राजपाल सैनी और शाहनवाज राणा दोनों ही बीजेपी के विक्रम सैनी से हार गए थे. इस हार की एक वजह सैनी समुदाय के वोटों का ज्यादातर हिस्सा बीजेपी के साथ गया था. यही वजह रही कि इस बार जयंत ने 2012 के फॉर्मूले पर गुर्जर दांव खेला है. 

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खतौली जीतने का जयंत प्लान

आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने पूर्व विधायक मदन भैया को खतौली विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है. गाजियाबाद के रहने वाले मदन भैया साल 1991, 1993, 2002 और 2007 में विधायक रहे, लेकिन वो हर बार अलग-अलग सीट और पार्टी से जीत दर्ज की है. मदन भैया 2022 का चुनाव लोनी सीट से रालोद के टिकट पर ही लड़ा था, लेकिन बीजेपी के नंद किशोर गुर्जर से हार गए थे. गुर्जर समुदाय से आने वाले मदन भैया खतौली सीट पर उतरकर जयंत चौधरी ने बीजेपी के सामने कड़ी चुनौती पेश करने का दांव चला है. 

खतौली में मदन भैया और जयंत चौधरी

आरएलडी का जाट-गुर्जर-मुस्लिम दांव

खतौली विधानसभा सीट पर बीजेपी के खिलाफ आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने मदन भैया पर दांव लगाकर 2012 वाला सियासी दांव चला है. आरएलडी ने 2012 के चुनाव में खतौली सीट पर गुर्जर समुदाय से आने वाले करतार सिंह भड़ाना को उतारकर अपना कब्जा जमाया था. इसी फॉर्मूले पर आरएलडी ने गुर्जर समुदाय से आने वाले मदन भैया को प्रत्याशी बनाया है ताकि जाट-गुर्जर-मुस्लिम समीकरण के दम पर खतौली सीट पर जीत का परचम फहरा सके. आरएलडी यह समीकरण सिर्फ खतौली सीट पर ही नहीं बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर निर्णायक भूमिका अदा कर सकता है. इसीलिए जयंत चौधरी ने मदन भैया के जरिए बड़ा दांव चला है. 

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खतौली सीट का सियासी समीकरण

खतौली विधानसभा सीट के सामाजिक समीकरण में भी गुर्जर और सैनी समाज का दबदबा है. इस सीट पर करीब तीन लाख मतदाता है, जिनमें 27 फीसदी मुस्लिम 73 फीसदी हिंदू मतदाता है. 80 हजार के करीब मुस्लिम वोटर है, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं तो 40 हजार दलित मतदाता है. सैनी समुदाय के 35 हजार वोट हैं तो जाट 27 हजार है और गुर्जर भी करीब 29 हजार है. साथ ही ब्राह्मण 12 हजार और राजपूत वोट 5 हजार है और 10 हजार कश्यप वोटर हैं. 

जयंत चौधरी ने गुर्जर समुजाय से आने वाले मदन भैया को उतारकर अपना राजनीतिक एजेंडा भी साफ कर दिया है, जिससे खतौली उपचुनाव का सियासी पारा और चढ़ गया है. माना जा रहा है कि बीजेपी पूर्व विधायक विक्रम सैनी की पत्नी या फिर सैनी समुदाय से किसी को प्रत्याशी बना सकती है. ऐसे में बीजेपी ने भले ही अपने पत्ते नहीं खोले हो, लेकिन जयंत चौधरी ने जिस आक्रमक तरीके से हमला बोला और किसानों से जुड़े मुद्दे के इर्द-गिर्द बात रखकर बीजेपी के घेरते नजर आए. गन्ना के मूल्य की बढ़ोत्तरी पर चुनाव लड़ने की मंशा साफ कर दी है. 

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जयंत चौधरी बनाम संजीव बालियान

खतौली उपचुनाव आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ-साथ बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है. खतौली विधानसभा सीट मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत ही आता है, यहां पर 2019 के लोकसभा चुनाव में संजीव बालियान ने आरएलडी के चौधरी अजीत सिंह को हरा दिया था. बालियान की जीत में खतौली विधानसभा सीट पर बीजेपी को मिले वोटों का महत्वपूर्ण योगदान रहा था. यही वजह है कि बालियान इस सीट को हरहाल में बीजेपी के झोली में रखना चाहते हैं. 

हालांकिं, 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली पांच विधानसभाओं में से 3 विधानसभा सीटों पर चुनाव हार गई है और जिन 2 सीटों पर बीजेपी जीती थी उनमें खतौली सीट भी शामिल थी. ऐसे में बीजेपी के साथ-साथ केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के लिए खतौली सीट काफी अहम बन गई है. बालियान इस बात को भी समझ रहे हैं कि खतौली का उपचुनाव 2024 का लिट्मस टेस्ट है. ऐसे में मुजफ्फनगर दंगे का जिक्र कर एक बार फिर से ध्रुवीकरण की बिसात बिछा रही है तो जयंत चौधरी किसानों के मुद्दे पर एजेंडा सेट कर रहे हैं. 

खतौली से पश्चिमी यूपी का लिटमस टेस्ट 

खतौली सीट के उपचुनाव से भले ही एक विधायक चुना जाए, लेकिन इसका सियासी संदेश काफी दूर तक जाएगा. माना जा रहा कि उपचुनाव के जरिए पश्चिमी यूपी के सियासी मिजाज का भी टेस्ट हो जाएगा. जयंत चौधरी 2022 चुनाव के बाद से ही अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने में लगे हैं, जिसके तहत जाट-मुस्लिम के साथ-साथ दलित और अन्य जातियों को जोड़ने की कवायद कर रहे हैं. ऐसे में गुर्जर समुदाय को भी साथ लेने की रणनीति है. मुजफ्फरनगर में गुर्जर समाज के चंदन चौहान आरएलडी के सबसे बड़े नेता हैं, जो मीरापुर से विधायक है. 

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खतौली सीट पर गाजियाबाद को मदन भैया को चुनावी मैदान में उतारा है ताकि मजबूत सियासी समीकरण को बनाया जा सके. पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम-गुर्जर काफी निर्णायक भूमिका में है, जिसके जरिए 2024 के लिए मजबूत सियासी आधार रखन चाहते हैं. ऐसे में देखना है कि जयंत चौधरी खतौली में बीजेपी का तिलिस्म तोड़ पाएंगे? 

 

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