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यूपी में किसानों की लड़ाई लड़ने को कितनी तैयार है राहुल-प्रियंका की कांग्रेस?

लखीमपुर मामले को लेकर किसानों के समर्थन में उतरी प्रियंका गांधी और कांग्रेस पार्टी ने जिस आक्रमक तरीके से बीजेपी और योगी सरकार के खिलाफ चार दिनों तक मोर्चा खोल रखा था, उससे सूबे में अभी तक कमजोर दिख रही कांग्रेस को एक तरह से सियासी संजीवनी जरूर मिल गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि लखीमपुर से बना माहौल कांग्रेस बरकरार रख पाएगी और यूपी में आगे किसानों की लड़ाई लड़ने के लिए कितना तैयार है? 

राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पीड़ित किसान परिवार के साथ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पीड़ित किसान परिवार के साथ
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 07 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 2:24 PM IST
  • लखीमपुर को लेकर प्रियंका फ्रंटफुट नजर आईं
  • किसानों के मुद्दे पर कांग्रेस को फायदा दिख रहा
  • यूपी में कांग्रेस के पास किसान नेता नहीं बचे हैं

लखीमपुर खीरी में रविवार को बीजेपी नेताओं के काफिले की कार से कुचलकर मरने वाले किसानों के घर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी बुधवार देर रात पहुंचे और परिवार वालों को गले लगाकर उनके दुखों को बांटते नजर आए.

लखीमपुर मामले को लेकर किसानों के समर्थन में उतरी प्रियंका गांधी और कांग्रेस पार्टी ने जिस आक्रमक तरीके से बीजेपी और योगी सरकार के खिलाफ चार दिनों तक मोर्चा खोले रखा था, उससे सूबे में अभी तक कमजोर दिख रही कांग्रेस को एक तरह से सियासी संजीवनी जरूर मिल गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि लखीमपुर से बना माहौल क्या कांग्रेस बरकरार रख पाएगी और यूपी में आगे किसानों की लड़ाई लड़ने के लिए वह कितनी तैयार है? 

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प्रियंका गांधी को जब से यूपी का प्रभारी बनाया गया, तब से ही वह सक्रिय थीं, लेकिन ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है, जब वह मजबूती के साथ चर्चा में भी हैं. प्रियंका गांधी को लखीमपुर जाने से रोकने, गिरफ्तार करने की भी राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई है तो यूपी में कांग्रेस कार्यकर्ता सड़क पर उतरकर प्रदर्शन कर अपनी ताकत का एहसास कराते नजर आए. राहुल गांधी के साथ किसान परिजनों से मिलने पहुंचे छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल और पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्‍नी ने 50-50 लाख रुपये प्रति परिवार को मुआवजे का भी ऐलान किया. 

प्रियंका की अगुवाई में लड़ेगी किसानों की लड़ाई

2022 के यूपी चुनाव की फाइट से बाहर नजर आ रही कांग्रेस को प्रियंका गांधी ने लखीमपुर खीरी मामले में अपने आक्रमक तेवरों और संघर्ष के जरिए एक बार फिर फ्रंटफुट पर लाकर खड़ा कर दिया है. ऐसे में अब कांग्रेस यूपी में किसानों के बीच अपने सियासी आधार को बढ़ाने की कवायद में है, लेकिन पार्टी की सबसे बड़ी चिंता है कि उसके पास न तो सूबे में मजबूत कोई किसान नेता है और न ही किसान बेल्ट में पार्टी की पकड़ पहले की तरह रह गई है. ऐसे में प्रियंका गांधी ने लखीमपुर खीरी में किसानों की लड़ाई लड़कर जो माहौल बनाने की कोशिश की है, उसे किसानों के बीच बरकरार रखना कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. 

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कांग्रेस के यूपी प्रवक्ता अशोक सिंह कहते हैं, ''यूपी में जनहित से जुड़े मुद्दों को लेकर प्रियंका गांधी के नेतृत्व में हम प्रदेश में संघर्ष कर रहे हैं और पुलिस की लाठियां भी खा रहे हैं. सोनभद्र से लेकर हाथरस तक हमने बीजेपी सरकार को झुकने के लिए मजबूर किया है. लखीमपुर में किसानों के हत्यारों को सजा दिलाए बिना कांग्रेस के कार्यकर्ता चैन से नहीं बैठेंगे''.

किसानों के मुद्दों पर कांग्रेस सिर्फ साथ खड़ी ही नहीं बल्कि सड़क पर लड़ाई भी लड़ रही है. यूपी में किसानों के मुद्दों को धार देने के लिए हम रणनीति बना रहे हैं. प्रियंका गांधी के रूप में हमारे पास एक मजूबत चेहरा है तो लाखों की संख्या में हमारे कार्यकर्ता हैं. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी लगातार किसानों और नौजवानों के मुद्दों को उठा रहे हैं तो कांग्रेस के कार्यकर्ता गांव-गांव संघर्ष करेंगे. 

हालांकि, उत्तर प्रदेश की सत्ता से पिछले तीन दशकों से सत्ता से बाहर कांग्रेस के पास जनाधार वाले नेता कम ही बचे हैं. कांग्रेस का सियासी जनाधार भी खिसक चुका है, जिसके चलते न तो सपा और न ही बसपा उससे गठबंधन करने के लिए तैयार है. इन सारी चुनौतियों के बीच यूपी में कांग्रेस की जिम्मेदारी संभाल रही प्रियंका गांधी ने जमीनी स्तर पर संगठन जरूर खड़ा किया है और अब कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भरने के लिए खुद ही रणभूमि में उतरकर मोर्चा संभाल लिया है. कांग्रेस उन्हीं की अगुवाई में किसानों के मुद्दे पर लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रही है. 

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कांग्रेस को किसानों के मुद्दे में फायदा दिख रहा

यूपी के वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्रा कहते हैं कांग्रेस यूपी में ऐसी स्थिति में खड़ी है, जहां उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं है. कांग्रेस को लग रहा है जो भी मुद्दा हाथ लगे उसे ले लो और जमीन पर उतरकर लड़ो. इसी कड़ी में किसान मुद्दा उसके हाथ लगा है जो यूपी की योगी और केंद्र की मोदी सरकार को परेशान कर सकता है.

मौजूदा समय में हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में किसानों का मुद्दा अहम हो सकता है. इसलिए प्रियंका गांधी और राहुल गांधी ही नहीं बल्कि पंजाब और छत्तीसगढ़ के सीएम भी लखीमपुर खीरी के किसान पीड़ितों के बीच पहुंचे ताकि इसे देश भर का मुद्दा बनाया जा सके. प्रियंका गांधी के रहते हुए यूपी में कांग्रेस को आंदोलन खड़ा करने के लिए किसी दूसरे नेता और चेहरे की जरूरत नहीं है, लेकिन हां एक बात जरूर है कि आंदोलन को धार देने का काम कार्यकर्ता करते हैं. ऐसे में कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं को कैसे इस्तेमाल करती है यह देखना होगा? 

यूपी में किसान बेल्ट पश्चिम से तराई तक

कृषि कानून को लेकर दिल्ली की सीमा पर चल रहा किसानों का आंदोलन बीते 10 महीनों से मोदी सरकार और बीजेपी के लिए सिरदर्द बना हुआ है तो योगी सरकार के लिए चिंता बढ़ा रहा है. पश्चिम यूपी से लेकर तराई और अवध का कुछ इलाका किसान बहुल माना जाता है. कृषि कानूनों को लेकर पश्चिमी यूपी के किसान नाराज माने जा रहे हैं तो तराई के किसान गन्ना मूल्य बढ़ाने के मांग को लेकर पहले ही गुस्सा थे और अब लखीमपुर खीरी की घटना से उनका गुस्सा और भी बढ़ गया है. 

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कांग्रेस के पास किसान नेता

पश्चिम यूपी में किसान नेता के नाम पर कांग्रेस के पास फिलहाल पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक और उनके बेटे पंकज मलिक है. बुंदेलखंड क्षेत्र में शिव नारायण परिहार हैं, जो भारतीय किसान युनियन से जुड़े रहे हैं और मौजूदा समय में यूपी में कांग्रेस किसान मोर्चा के अध्यक्ष हैं. तराई और अवध के पूरे बेल्ट में कांग्रेस के पास कोई भी किसान नेता नहीं है. हालांकि, कांग्रेस के सबसे बड़े नेता और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने किसान आंदोलन से ही भारतीय राजनीति में पहचान बनाई थी. 

विशंभर दयाल त्रिपाठी से लेकर पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे किसान नेता कांग्रेस में हुआ करते थे. किसानों के मसीहा माने जाने वाले चौधरी चरण सिंह ने एक दौर में कांग्रेस से अपना सियासी सफर शुरू किया था, लेकिन बाद में अलग होकर अपनी राजनीति पार्टी बनाई की. उन्नाव के भगवती सिंह विशारद, अवध में रामपूजन पटेल, पूर्वांचल में स्वामी सहजानंद सरस्वती और वीर बहादुर सिंह, पश्चिम यूपी में चौधरी बृजेंद्र सिंह किसानों के बड़े नेता माने जाते थे जबकि तराई बेल्ट में चरणजीत सिंह और पीएल भदवार सिख किसान नेता कांग्रेस के पास हुआ करते थे. लेकिन, मौजूदा समय में कांग्रेस के पास कोई मजबूत किसान नेता नहीं है, जिसके चलते प्रियंका गांधी को अपने साथ हरियाणा के दीपेंद्र हुड्डा को लेकर जाना पड़ा है. 

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कांग्रेस को किसानों पर नीति तय करनी होगी

वरिष्ठ पत्रकार फिरोज नकवी कहते हैं कि कांग्रेस किसानों के लिए शुरू से सहानुभति रखती है, लेकिन उसके साथ हमेशा से एक दुविधा रही है. कांग्रेस आजादी की लड़ाई लड़ रही थी, जिसके चलते उसे सामाजिक संतुलन बनाए रखना होता था. इसके चलते किसानों को उपेक्षा का सामना करना पड़ता था, जिसकी वजह से किसान सभा कांग्रेस के हाथों से निकलकर प्रगतिशील लोगों के पास में चली गई. इसके बाद भी कुछ बड़े किसान नेता कांग्रेस में बने रहे. लेकिन, आपातकाल के बाद संजय गांधी ने तमाम युवा नेताओं को पार्टी में लेकर आए तो कांग्रेस में किसान नेता धीरे-धीरे पूरी साइड लाइन होते चले गए. इसकी वजह यह थी कि किसान नेता पेशेवर राजनीतिज्ञ नहीं था जबकि बाद का दौर पेशेवर राजनीति का हो गया. उदारीकरण के बाद किसान कांग्रेस से ही नहीं बल्कि राजनीतिक एजेंडे से ही बाहर हो गया. 

वह कहते हैं कि अब कांग्रेस दोबारा से किसानों को केंद्र में रखकर अपना राजनीतिक एजेंडा सेट कर रही है. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी किसानों के मुद्दे पर लगातार मुखर भी है. भूमि अधिग्रहण से लेकर कृषि कानूनों के विरोध में कांग्रेस खड़ी नजर आ रही है. जमीनी स्तर पर किसानों के हक की लड़ाई लड़ने के लिए पार्टी के पास न तो नेता हैं और न ही कार्यकर्ता की फौज है. कांग्रेस को किसानों को लेकर नीति भी तय करनी होगी, जिसमें किसानों का विश्वास स्थापित हो सके. प्रियंका और राहुल के चेहरे के सहारे महज किसानों की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है. 

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कांग्रेस के एजेंडे में किसान को फिर से एंट्री

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह कहते हैं कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी किसानों के लिए सिर्फ आवाज ही नहीं उठा रहे हैं बल्कि गंभीर भी है. भूमि अधिग्रहण मामले पर राहुल गांधी के संघर्ष के चलते ही मोदी सरकार को बैकफुट पर जाना पड़ा था. प्रियंका गांधी भी लगातार किसानों के मुद्दे पर आक्रमक हैं. कृषि कानूनों से लेकर गन्ना किसानों के मूल्य बढ़ाने और लखीमपुर खीरी मामले में किसानों के इंसाफ के लिए प्रियंका गांधी खुद फ्रंटफुट पर लड़ती नजर आईं है, जिसके कांग्रेस कार्यकर्ताओं में एक जोश दिखा है. किसान अब कांग्रेस के एजेंडे में मुख्यरूप से शामिल हो गया है और जिस तरह से जमीन से जुड़े हुए नेताओं को हाल ही में पार्टी में एंट्री हुई है. उससे साफ है कि कांग्रेस को दोबारा से खड़े होने में किसानों की भूमिका अहम हो सकती है.  

प्रियंका गांधी की तराई बेल्ट में होंगी रैलियां?
 
कांग्रेस सूत्रों की मानें तो लखीमपुर खीरी की घटना के बाद उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की रैलियों को रिशिड्यूल किया जा रहा है. प्रियंका की रैलियों को तराई बेल्ट और पश्चिम यूपी में ज्यादा से ज्यादा कराने की रणनीति है. यह पूरा इलाका किसान बहुल माना जाता है. इतना ही नहीं 2009 के लोकसभा चुनाव में यूपी में कांग्रेस का प्रदर्शन भी इसी तराई इलाके में सबसे बेहतर रहा था. कांग्रेस बरेली, लखीमपुर खीरी, धौहरारा, गोंडा, बहराइच, बाराबंकी, उन्नाव, महाराजगंज और फैजाबाद की सीटें जीतने में सफल रही थी, जो तराई बेल्ट में आती है. ऐसे में कांग्रेस इसी इलाके पर फिर से फोकस कर रही हैं और इन्हीं इलाकों में प्रियंका की रैली की रूप रेखा बनाई जा रही है ताकि किसानों की नाराजगी का फायदा उठाया जा सके. 

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