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Lakhimpur Kheri Violence: आखिरकार किसानों को मनाने में राकेश टिकैत ही आए योगी सरकार के काम!

Lakhimpur Kheri Violence: लखीमपुर में मृतक किसानों के परिवार पोस्टमार्टम को भी तैयार नहीं थे. लेकिन राकेश टिकैत ने पुलिस प्रशासन और किसान संगठनों के बीच समझौता कराया.

राकेश टिकैत ने पुलिस प्रशासन संग साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस की राकेश टिकैत ने पुलिस प्रशासन संग साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस की
कुमार अभिषेक
  • लखीमपुर खीरी,
  • 04 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 12:07 AM IST
  • लखीमपुर में राकेश टिकैत ने निभाया बड़ा रोल
  • प्रशासन और किसानों के बीच समझौता कराया

Lakhimpur Kheri Violence: लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में जिस तरह किसानों का आंदोलन हिंसक हुआ और 4 किसानों की मौत के बाद किसानों की नाराजगी अपने चरम पर पंहुची उससे सरकार के हाथ पांव फूल गए. रातोरात जिस तरीके से प्रियंका गांधी और दूसरे नेताओं ने लखीमपुर पहुंचने की ठानी प्रदेश सरकार के लिए हालात को संभालना और भी भारी हो रहा था. ऐसे में राकेश टिकैत ही योगी सरकार के काम आए हैं.

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यूपी प्रशासन ने सारे राजनेताओं को लखीमपुर खीरी और तिकुनिया पहुंचने से रातों-रात रोक लिया. प्रियंका गांधी को सीतापुर में रोका गया, चंद्रशेखर आजाद को सीतापुर टोल प्लाजा पर रोका गया. इसी तरह अन्य नेता जैसे शिवपाल यादव, अखिलेश यादव, जयंत चौधरी को लखीमपुर पहुंचने से पहले ही हिरासत में ले लिया गया. इस बीच सिर्फ एक 'नेता' वहां पहुंचे, वह थे राकेश टिकैत (Rakesh Tikait).

पोस्टमार्टम को तैयार नहीं थे किसान

राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) गाजीपुर बॉर्डर से रात को ही चले और देर रात को ही लखीमपुर खीरी के तिकुनिया के उस गुरुद्वारे में पहुंच गए जहां चारों किसानों के शव रखे हुए थे. किसान किसी सूरत में चारों शवों के पोस्टमार्टम को तैयार नहीं थे, मांग थी कि बीजेपी के गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी पर मुकदमा दर्ज हो उनके बेटे को गिरफ्तार किया जाए. इसके साथ-साथ गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के इस्तीफे की मांग थी.

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किसानों की भारी नाराजगी को देखते हुए ऐसा लग रहा था कि सरकार के लिए किसानों को मनाना बेहद मुश्किल होगा, लेकिन राकेश टिकैत को वहां जाने देना सरकार के लिए बड़ी राहत साबित हुआ. एडीजी लॉ एंड आर्डर प्रशांत कुमार, आईजी जोन लखनऊ लक्ष्मी और कमिश्नर लखनऊ रंजन कुमार लगातार तिकुनिया के इस गुरुद्वारे में किसानों से संपर्क में थे लेकिन समझौते की राह जब निकली जब राकेश टिकैत ने किसानों की तरफ से मोर्चा संभाला और किसानों की तरफ से सरकार से बात की.

पीएम के दौरे पर पड़ सकता था असर

सरकार के लिए एक और बड़ी समस्या यह थी कि अगर किसान नहीं मानते तो प्रधानमंत्री के दौरे पर भी असर पड़ता है जो अभी से 24 घंटे के भीतर हो रहा है. सरकार के सूत्रों की माने तो राकेश टिकैत से संपर्क साधा गया और किसानों को मनाने, उनके शवों को पोस्टमार्टम कराने के लिए तैयार कराने का आग्रह किया गया.

कई घंटे की बातचीत और मृतक किसानों के परिवारों को विश्वास में लेने के बाद सरकार समझौते पर पहुंची और इस ने अहम भूमिका राकेश टिकैत ने निभाई. बीती रात को प्रशासन के लिए उस इलाके में घुसना बेहद मुश्किल था ऐसे वक्त में जब तिकुनिया के इलाके में कितना मुश्किल था और किसी भी राजनीतिक दल को वहां नहीं जाने दिया गया तब संकटमोचक के तौर पर राकेश टिकैत आए.

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समझौते में रिटायर्ड जज से मामले की न्यायिक जांच, प्रत्येक मृतक परिवार को 45 लाख का मुआवजा, घायलों के लिए 10 लाख का मुआवजा, 8 दिनों के अंदर मुख्य अभियुक्त की गिरफ्तारी और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी की बात है. फिर राकेश टिकैत और उत्तर प्रदेश एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार ने प्रेस से बात की. इससे साफ हो गया कि सरकार की रणनीति काम आई इस मौके पर इकलौते राकेश टिकैत ही हैं जो सरकार के काम आ सकते हैं.

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