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बसपा से क्यों बाहर निकाले गए लालजी वर्मा-राम अचल राजभर? पढ़ें Inside स्टोरी

सूत्रों की मानें तो राम अचल राजभर और लालजी वर्मा के द्वारा जिला पंचायत चुनाव में पार्टी से घोषित लोगों की मदद करने के बजाए अपने चहेतों को चुनाव मैदान में खड़ा कर उनको जिताने की खबर पार्टी के कैडर ने ही मायावती तक पहुंचाई. यह भी बताया कि विधानसभा चुनाव के दौरान यह लोग पाला बदल सकते हैं. 

कांशीराम के समय से जुड़े थे लालजी और राम अचल राजभर कांशीराम के समय से जुड़े थे लालजी और राम अचल राजभर
बनबीर सिंह
  • लखनऊ,
  • 06 जून 2021,
  • अपडेटेड 8:52 AM IST
  • कांशीराम के समय से जुड़े थे दोनों नेता
  • बसपा प्रमुख ने दोनों को पार्टी से निकाला
  • दोनों नेताओं का क्या होगा राजनीतिक भविष्य?

खेला होबे... यह स्लोगन वैसे तो बंगाल चुनाव के दौरान चर्चा में आया लेकिन अब बहुजन समाज पार्टी के दो चर्चित चेहरों को सुप्रीमो मायावती द्वारा बाहर का रास्ता दिखाए जाने के बाद एक बार फिर इसके पीछे के खेला की चर्चा हो रही है. सबसे पहले जानिए इनका कद कितना बड़ा था. साथ ही यह जानेंगे कि अचानक उन्हें पार्टी से बाहर क्यों निकाला गया?

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संगठन के शिल्पकार कहे जाते थे राम अचल राजभर
निकाले गए दो चेहरों में एक राम अचल राजभर को संगठन के शिल्पकार के रूप में जाना जाता है. राम अचल राजभर, अकबरपुर से पांच बार विधायक चुने गए हैं. बहुजन समाज पार्टी में उनका कद इतना बड़ा था कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए तो बसपा सुप्रीमो मायावती ने उनके सिर पर राष्ट्रीय महासचिव का ताज भी रख दिया. 

यही नहीं उत्तराखंड समेत कई प्रदेशों के कोऑर्डिनेटर रहने वाले रामअचल को मायावती ने अपने प्रत्येक मंत्रिमंडल में जगह दी और महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी. कांशीराम के समय से बहुजन समाज पार्टी से जुड़े राम अचल राजभर को जब पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने की खबर आई तो किसी को इस पर विश्वास नहीं हुआ.

हालांकि आरोप है कि जिला पंचायत चुनाव के दौरान उन्होंने अकबरपुर विधानसभा क्षेत्र में बहुजन समाज पार्टी के कई अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ अपने समर्थकों को चुनाव में उतार दिया. इसीलिए अपेक्षा के अनुरूप पार्टी को जीत नहीं मिली. राजनीतिक सफर के दौरान राम अचल राजभर के ऊपर पार्टी में कई संगीन आरोप लगे. लेकिन इतने मामूली आरोप के चलते उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. यह ना तो बसपा कार्यकर्ताओं को हजम हो रहा है और ना ही राजनीति की समझ रखने वाले लोगों को. 

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रसूखदार नेता रहे हैं लालजी वर्मा
बहुजन समाज पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव और विधानसभा में विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा मौजूदा समय में अम्बेडकरनगर जनपद की कटेहरी विधानसभा से विधायक हैं. लालजी वर्मा भी राम अचल राजभर की तरह बहुजन समाज पार्टी के प्रत्येक शासन में मंत्री रहे हैं. इसके अलावा बसपा सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाते रहे हैं. 

बसपा से बाहर का रास्ता दिखाए जाने की पृष्ठभूमि जिला पंचायत चुनाव के दौरान बननी शुरू हुई. सबसे पहले पार्टी से जिला पंचायत सदस्य चुनाव का टिकट मिलने के बाद भी उनकी पत्नी शोभावती ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया और उसके बाद रही सही कसर लालजी वर्मा ने पार्टी प्रत्याशी के विरुद्ध अपने करीबी को चुनावी मैदान में निर्दलीय उतार कर कर दिया. 

भले ही यह फैसला जिला पंचायत सदस्य रहे साधु वर्मा का रहा हो लेकिन इसे लालजी वर्मा की पार्टी से बगावत के तौर पर देखा गया. इस खेला की आग में घी तब पड़ा, जब चुनाव जीतने के बाद साधु वर्मा भाजपा खेमे के संपर्क में आए और जिला पंचायत अध्यक्ष का टिकट मांगने लगे. 

खेला के पीछे खेला
बहुजन समाज पार्टी में हुए इस खेला के पीछे के खेला को समझने के लिए 24 साल पीछे जाना होगा. कांशीराम और मायावती दोनों के करीबी रहे घनश्याम चंद्र खैरवार अंबेडकरनगर लोकसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर 1996 में पहले सांसद बने थे. बाद में इन्होंने अपनी निष्ठा प्रदर्शित करने के लिए इस्तीफा दे दिया और उनकी जगह मायावती, इस सीट पर लोकसभा का चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंची.

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घनश्याम चंद्र खैरवार को पार्टी से अपनी कुर्बानी का सिला मिला और इन्हें राज्यसभा भेज दिया गया. इसके बाद से पार्टी में ना सिर्फ इनका कद बढ़ा बल्कि यह अम्बेडकरनगर की राजनीति की धुरी भी बन गए. हालांकि लालजी वर्मा, रामअचल राजभर और त्रिभुवन दत्त सरीखे नेता भी रहे, जिनसे इनके रिश्ते खट्टे मीठे होते रहे. 

घनश्याम चंद्र खैरवार की राजनीति के बुरे दिनों की शुरुआत तब हुई जब वह दिल्ली से ट्रेन से लौट रहे थे. लौटते समय वे एक महिला को लेकर विवादों में फंस गए. आरोप लगा कि उनके उक्त महिला के साथ दिल्ली से लौटने की खबर उनके घरवालों को लालजी वर्मा ने दी थी. हालांकि यह आरोप अटकल अधिक रहे और कभी भी खुलकर सामने नहीं आये. लेकिन इसकी चर्चा खूब रही. 

बहुजन समाज पार्टी में 2007 में लोकसभा प्रभारी और लोकसभा अध्यक्ष रहे जगदीश राजभर कहते हैं की अब तो मैं समाजवादी पार्टी में हूं इसलिए कुछ कहना बेकार है लेकिन जब इस तरह की घटना हुई थी तो लालजी वर्मा का नाम जग जाहिर था.

बदला समय और समीकरण
कहते हैं समय बड़ा बलवान होता है और उसका पहिया इतनी रफ्तार से चलता है कि बीते हुए समय का पता ही नहीं चलता. घनश्याम चंद्र खैरवार की धमाकेदार एंट्री हुई और उन्हें बस्ती और गोरखपुर मंडल के साथ अयोध्या मंडल का भी कोऑर्डिनेटर बना दिया गया. इसके बाद एक बार फिर उनका कद पार्टी में बढ़ गया और वह बसपा सुप्रीमो मायावती के एक बार फिर करीबी बन गए. 

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सूत्रों की मानें तो राम अचल राजभर और लालजी वर्मा के द्वारा जिला पंचायत चुनाव में पार्टी से घोषित लोगों की मदद करने के बजाए अपने चहेतों को चुनाव मैदान में खड़ा कर उनको जिताने की खबर पार्टी के कैडर ने ही मायावती तक पहुंचाई. यह भी बताया कि विधानसभा चुनाव के दौरान यह लोग पाला बदल सकते हैं. 

इस बारे में अंबेडकर नगर के रहने वाले और बलरामपुर से बसपा सांसद राम शिरोमणि वर्मा से बात की और पूछा कि इस तरह की शिकायत पार्टी में कैसे होती है? पहले तो इन्होंने बहन जी का फैसला बता कर टालने की कोशिश की लेकिन बार-बार कुरेदने पर इन्होंने बताया की इस तरह की शिकायत जिला कोऑर्डिनेटर मंडल, कोऑर्डिनेटर को देता है और वह उन शिकायतों को आगे प्रदेश संगठन और बहनजी तक पहुंचाता है. 

आगे का सफर और समीकरण 
रामअचल वर्मा की बात करें तो उन्होंने यह कहकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं कि वह बहुजन समाज पार्टी के लिए काम करते रहेंगे और उसी के लिए समर्पित हैं. हालांकि कई पार्टियों से जुड़े लोग उन पर डोरे डाल रहे हैं लेकिन राम अचल राजभर खामोश हैं. अभी तक उनका राजनीतिक सफर किसके साथ होगा, यह कहना मुश्किल है. हालांकि कहने वाले कहते हैं कि वह भाजपा में शामिल हो सकते हैं और जलालपुर सीट से चुनाव भी लड़ सकते हैं. 

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इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इस क्षेत्र में राजभर जाति के लोग निर्णायक भूमिका में हैं और इसलिए भाजपा के लिए वोट बैंक के सहारे यहां से राजनीतिक समीकरण बनाना अधिक आसान है. जहां तक लालजी वर्मा की बात है तो अटकलें उनकी भाजपा और सपा दोनों पार्टियों में जाने को लेकर है. लेकिन सूत्र बताते हैं कि उनके समाजवादी पार्टी में जाने की संभावना अधिक है. इसका कारण है राजनीतिक समीकरण का अनुकूल होना. 

हालांकि राममूर्ति वर्मा के रूप में सपा के पास एक क्षेत्रीय नेता पहले से हैं, लेकिन अगर लालजी वर्मा सपा में शामिल होते हैं तो वह अम्बेडकर नगर की टांडा विधानसभा से चुनाव लड़ सकते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि लालजी वर्मा टांडा विधानसभा से विधायक रह चुके हैं. डाक्टर मसूद को जब बसपा ने हटाया था उसके बाद से ही लालजी वर्मा की टांडा विधानसभा कर्मस्थली रही. 

हालांकि 2012 में जब परिसीमन हुआ और किछौछा समेत कई ऐसे मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र इस विधानसभा में जुड़े और वर्मा बाहुल्य कई क्षेत्र बाहर आकर कटेहरी विधानसभा से जुड़ गए, तब लालजी वर्मा अपनी पुरानी विधानसभा छोड़ कटेहरी विधानसभा से 2012 में चुनाव लड़े. लेकिन चुनाव हार गए. वहीं उनकी पुरानी सीट टांडा पर समाजवादी पार्टी ने कब्जा कर लिया और अजीमुल हक पहलवान चुनाव जीत गए. 

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हालांकि अगली बार भी लालजी वर्मा बसपा से कटेहरी से चुनाव लड़े और वह जीत गए. वहीं टांडा विधानसभा में भाजपा लहर के दौरान संजू देवी यहां से भाजपा की पहली विधायक बन गयीं. उनकी जीत में भाजपा लहर के साथ उनके परिवार के 2 सदस्यों की हत्या ने भी संवेदना बटोरने का कार्य किया. क्योंकि इन हत्याओं में सपा विधायक अजीमुल हक का नाम काफी उछला था. बावजूद इसके सपा प्रत्याशी और उनके बीच जीत का अंतर 200 वोटों से कम था. 

लालजी वर्मा के पक्ष में जो एक बात और जाती है वह यह कि कुछ माह पहले ही सपा के पूर्व विधायक अजीमुल हक की मौत हो गयी है. ऐसे में उनका वंहा पर रास्ता साफ है और जीत की संभावना भी अधिक है. क्योंकि समीकरण और राजनीति दोनों उनके साथ है. इसीलिए जाने वाले कह रहे हैं कि अगर भाजपा से उन्हें कोई बड़ा आश्वासन नहीं मिला तो उनका समाजवादी पार्टी के साथ आगे का सफर करने की पूरी उम्मीद है और अगर ऐसा हुआ तो उनका टांडा विधानसभा से चुनाव लड़ने की संभावना सबसे प्रबल है. 

 

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