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चेहरे पर घूंघट और हाथ में लट्ठ, अद्भुत है बरसाना की ये लट्ठमार होली

लट्ठमार होली की परंपरा की शुरुआत पांच हजार साल से भी पहले हुई थी. धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि जब भगवान कृष्ण ब्रज छोड़कर द्वारिका चले गए और उसके बाद फिर से जब बरसाना लौटे तो उस समय ब्रज में होली का समय था. तब कृष्ण के बिछड़ने से दुखी राधा और उनकी सखियों ने उनके वापस आने पर अपने गुस्से का इजहार किया.

होलिका दहन से 5 दिन पहले खेली जाती है लट्ठमार होली होलिका दहन से 5 दिन पहले खेली जाती है लट्ठमार होली
मदन गोपाल शर्मा
  • मथुरा,
  • 23 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 9:26 PM IST
  • होलिका दहन से 5 दिन पहले मनती है लट्ठमार होली
  • होली खेलने नंदगांव के हुरियारे बरसाना पहुंचते हैं

वैसे तो रंगों का त्योहार होली पूरे भारत में सभी जगह बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है, लेकिन ब्रजवासियों के होली मनाने का अपना अलग ही अंदाज है. यहां पर कहीं फूल की होली, कहीं रंग-गुलाल की, कहीं लड्डू. तो कहीं लट्ठमार होली मनाने की परंपरा है. बरसाना में मनाई जाने वाली लट्ठमार होली अपने अनूठे अंदाज के लिए दुनियाभर में जानी जाती है. यहां होलिका दहन से पांच दिन पहले विश्व-प्रसिद्ध लट्ठमार होली मनाई जाती है.

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इस लट्ठमार होली में महिलाएं, जिन्हें हुरियारिन कहते हैं, लट्ठ लेकर हुरियारों को, यानी पुरुषों को पीटती हैं. और वो अपने सिर पर ढाल रखकर हुरियारिनों के लट्ठ से खुद का बचाव करते हैं. कहते हैं कि इस परंपरा की शुरुआत पांच हजार साल से भी पहले हुई थी. धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि जब भगवान कृष्ण ब्रज छोड़कर द्वारिका चले गए और उसके बाद फिर से जब बरसाना लौटे तो उस समय ब्रज में होली का समय था. तब कृष्ण के बिछड़ने से दुखी राधा और उनकी सखियों ने उनके वापस आने पर अपने गुस्से का इजहार किया.

महिलाएं लट्ठ मारती हैं और पुरुष उससे बचने की कोशिश करते हैं.

राधा और उनकी सब सखि‍यां चाहती थीं कि कृष्ण कभी उनसे दूर ना हों, इसीलिए जब कृष्ण ने उन्हें मनाने की कोशिश की तो राधा और उनकी सखियों ने अपने प्यार भरे गुस्से का इजहार करते हुए कृष्ण के साथ लट्ठमार होली खेली थी. तब से लेकर आज तक वही परंपरा चली आ रही है. बरसाना राधारानी का गांव है और नंदगांव में नंदबाबा का घर होने की वजह से इसे कृष्ण के गांव के रूप में भी जाना जाता है. 

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बरसाना स्थित राधारानी मंदिर और नंदगांव के नंदभवन में स्थित मंदिर की सेवा-पूजा का अधिकार गोस्वामी समाज को ही है, इसीलिए गोस्वामी समाज की महिलाओं और पुरुषों के बीच ये विश्वप्रसिद्ध लट्ठमार होली खेली जाती है. बरसाना में होने वाली लट्ठमार होली में यहां की हुरियारिनें राधा की सखी के रूप में होती हैं और नंदगांव से होली खेलने बरसाना आने वाले हुरियारे कृष्ण के ग्वाल के भाव में यहां आते हैं. 

छोटे-छोटे बच्चे भी लट्ठमार होली खेलने बरसाना पहुंचते हैं.

इसमें परंपरागत लहंगा-ओढ़नी की पोशाक पहने हुए हरियारिने अपने हाथों में लट्ठ लिए होती हैं और हुरियारे बगलबंदी-धोती पहनकर हाथ में ढाल लेकर हुरियारिनों से होली खेलने आते हैं. पहले नंदगांव के हुरियारे होली खेलने बरसाना आते हैं और उसके अगले दिन यही परंपरा नंदगांव में दोहराई जाती है. लेकिन नंदगाव में बरसाना के पुरुष नहीं, बल्कि महिलाएं ही जाती हैं.

नंदगांव के हुरियारे यहां पहुंचकर गीत गाते हैं.

लट्ठमार होली के लिए जब नंदगांव के हुरियारे बरसाना पहुंचते हैं तो यहां प्रियाकुंड पर भांग और ठंडई पिलाकर उनका स्वागत किया जाता है. उसके बाद ये सभी राधारानी मंदिर में दर्शन करने पहुंचते हैं, जहां  मंदिर प्रांगण में ही बरसाना के गोस्वामी समाज के लोगों के साथ मिलकर होली के रसिया का गायन करते हैं. इसे यहां 'समाज-गायन' कहा जाता है. उसके बाद मंदिर से निकलकर हुरियारे अपने हाथों में ढाल लेकर रंगीली गली से दौड़ते लट्ठमार चौक तक पहुंचते हैं. वहां पहले से हुरियारिनें हाथ में लट्ठ लिए उनका इंतज़ार कर रही होती हैं. जब दोनों पक्षों का आमना-सामना होता है तो एक-दूसरे के साथ रसिया गाकर नाचते हैं और उसके बाद शुरू होती है लट्ठमार होली.

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