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यूपी में चुनाव प्रचार में ऐसी सुर्खियां आईं थी कि अयोध्या काशी की तरह मथुरा में भी भव्य मंदिर बनेगा. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी बीते सप्ताह कह दिया कि निचली अदालत सभी याचिकाओं पर चार महीने के अंदर निपटारा करे, जिसमें शाही ईदगाह मस्जिद पर मालिकाना हक से लेकर ज्ञानवापी मस्जिद की तरह मथुरा की मस्जिद में भी वीडियोग्राफी कराने की भी याचिकाएं हैं.
यूपी चुनाव प्रचार के दौरान सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था, "हमने कहा था अयोध्या में राम के मंदिर का निर्माण करवाएंगे. अयोध्या में मंदिर निर्माण से खुश हैं. अब काशी में भी विश्वनाथ का धाम भी भव्य रूप से बन रहा है तो फिर मथुरा वृंदावन कैसे छूट जाएगा, वहां पर भी काम भव्यता के साथ आगे बढ़ चुका है."
योगी के बयान को इसलिए भी अहम माना गया क्योंकि 1980 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के दौरान एक नारा जोर शोर से उछला था. अयोध्या तो झांकी है, काशी मथुरा बाकी है. काशी-मथुरा को लेकर चल रही सुनवाई के बीच सीएम योगी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति भेंट में दी. इसके बाद बीजेपी के विधायक भी खुलकर मथुरा पर बयान देने में जुट गए हैं.
बीजेपी विधायक का ट्वीट
बीजेपी के विधायक अभिजीत सिंह सांगा ने ट्वीट कर कहा है, "दुर्योधन ने पांच गांव नहीं दिए थे तो उन्हें पूरा राज्य खोना पड़ा था. हमने तीन मंदिर मांगे थे, तुमने नहीं माना. अब तैयार रहो, सारे मंदिर वापस लेंगे. विधायक ने कहा कि अदालत से हमें न्याय होता दिख रहा है, इसलिए मैंने ट्वीट किया है.
1968 में हुआ था मथुरा में समझौता
मथुरा में कृष्ण जन्म भूमि और ईदगाह मस्जिद 13.37 एकड़ जमीन पर अगल-बगल बने हैं. 1968 में इसे लेकर हुए समझौते को अब चुनौती दी जा रही है. काशी की तरह मथुरा में भी वीडियोग्राफी करके मस्जिद में मंदिर के सबूत जुटाने के लिए कोर्ट का आदेश पाने की कोशिश हो रही है. मथुरा जन्मभूमि मामले में कुल 10 से ज्यादा मुकदमे चल रहे हैं. जिनमें मुख्य मांग मस्जिद की जमीन मंदिर को लौटाने की है.
ओवैसी ने बताया गलत चलन
वहीं एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी समझौते के चुनौती देना एक गलत चलन करार दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि 54 साल के बाद अचानक आप इसको निकालते हैं, कौन देश के अमन को खराब करने वाला है. कोर्ट का ऑर्डर 1991 के खिलाफ है, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ है. इन लोगों को कानून से कोई मतलब नहीं है, उनका मकसद से उनकी डिग्निटी चोरी कर लीजिए.
इस मामले में दायर याचिका में कहा गया है कि कोर्ट की निगरानी में जन्मभूमि परिसर की खुदाई कराई जाए, क्योंकि मस्जिद की जगह पर वो कारागार था जहां भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. 26 मई को अब इस मामले की पहली सुनवाई होगी.
काशी और मथुरा को लेकर जब असदुद्दीन ओवैसी से सवाल हुआ कि अगर सर्वे मस्जिद का हो जाता है तो दूध का दूध पानी का पानी होने से क्या डर है ? तो ओवैसी ने कहा कि आप दूध में पानी मिलाना चाहते हैं, दूध का दूध हो चुका है. 1991 का एक्ट क्लीयर है, दूध का दूध पानी का पानी निकलना जरूरी नहीं है, वर्ना 1980 में जो दौर था वो वापस ना आए.
सुप्रीम कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद की कमेटी
1991 एक्ट को लेकर ज्ञानवापी मस्जिद की कर्ता धर्ता अंजुमन इंतेजामिया प्रबंध कमेटी ने याचिका दायर करके कहा कि ज्ञानवापी परिसर का सर्वे कराने वाला वाराणसी सिविल कोर्ट का आदेश स्पष्ट रूप से द प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजंस) एक्ट 1991 का उल्लंघन है.
क्या कहती है उपासना स्थल कानून की धारा 3 ?
द प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजंस) एक्ट 1991 की धारा 3 कहती है कि धार्मिक स्थलों को उसी रूप में संरक्षित किया जाएगा, जिसमें वह 15 अगस्त 1947 को था. अगर ये सिद्ध भी होता है कि मौजूदा धार्मिक स्थल को इतिहास में किसी दूसरे धार्मिक स्थल को तोड़कर बनाया गया था, तो भी उसके अभी के वर्तमान स्वरूप को बदला नहीं जा सकता. इसी एक्ट का सेक्शन 4(2) के मुताबिक देश में 15 अगस्त 1947 से पहले के किसी भी उपासना स्थल के विवाद पर कोई नया मुकदमा शुरू नहीं होगा. अगर उपासना स्थल में बदल 15 अगस्त 1947 के बाद हुआ है तो जरूर कानूनी कार्यवाही की जा सकती है. इस एक्ट के सेक्शन 5 के तहत, अयोध्या का विवाद पहले से अदालत में था, इसीलिए अयोध्या को इस एक्ट में अपवाद के रूप में छूट मिली. जबकि सेक्शन 6 के तहत ये कहा गया कि अगर कोई सेक्शन तीन का उल्लंघन करेगा तो उसे तीन साल तक की सजा हो सकती है.
1990 में बीजेपी ने किया था एक्ट का विरोध
1990 के दौर में जब अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद शुरू हुआ था तब नरसिम्हा राव की केंद्र में सरकार थी. दावा होता है कि तब धार्मिक विवादों को और बढ़ने से रोकने के लिए ही सरकार एक्ट लाई. बीजेपी ने 1991 में भी कांग्रेस सरकार के दौरान लाए गए एक्ट का विरोध किया था. दो साल पहले ही इस एक्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में बीजेपी के नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय याचिका लगा चुके हैं, जिसमें सुनवाई होनी बाकी है.
वहीं ज्ञानवापी मस्जिद पर क्या यह कानून लागू होगा, इस सवाल पर बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय कहते हैं कि कानून में साफ साफ लिखा है एनसीएंट मोन्यूमेंट में लागू नहीं होता. जो ढांचा सौ साल से पुराना हो उसमें लागू नहीं होता. ये तो साढ़े तीन सौ साल पुराना है. 1947 में इसका क्या कैरेक्टर था. अवैध जगह पर नमाज पढ़ने से मस्जिद नहीं हो जाएगी.
अब ज्ञानवापी मामले में आगे क्या होगा, इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील संजय के चड्ढा कहते हैं कि अगर सिर्फ पूजा करने के अधिकार के आधार पर देखें तो फैसला कैसा होगा, ये देखना होगा.