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सुल्तानपुर लोकसभा सीट: 55 फीसदी वो‍टिंग, 15 उम्मीदवारों की किस्मत EVM में कैद

सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर 15 उम्मीदवार मैदान में हैं जिसमें मुख्य मुकाबला बीजेपी की मेनका गांधी और कांग्रेस के संजय सिंह के बीच है. समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने वाली बहुजन समाज पार्टी ने यहां से चंद्र भद्र सिंह को मैदान में उतारा है. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) की कमाल देवी चुनौती पेश कर रही हैं. 5 उम्मीदवार बतौर निर्दलीय मैदान में हैं.

मेनका गांधी ( फाइल फोटो) मेनका गांधी ( फाइल फोटो)
सुरेंद्र कुमार वर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 12 मई 2019,
  • अपडेटेड 7:56 AM IST

लोकसभा चुनाव 2019 के छठे चरण के तहत उत्तर प्रदेश की सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर रविवार (12 मई) को वोट डाले गए. छठे चरण में प्रदेश की 80 सीटों में से 14 संसदीय सीटों पर औसतन 54.74 फीसदी मतदान हुआ जबकि सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर 56.46 फीसदी वोट पड़े. हालांकि 2014 के चुनाव की तुलना में इस बार वोटिंग में मामूली कमी आई, पिछले चुनाव में यहां पर 56.71 फीसदी मतदान हुआ था.

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2014 के चुनाव के आधार पर देखा जाए तो इन 14 सीटों में से एनडीए ने 13 और समाजवादी पार्टी (सपा) ने 1 सीट जीती थी. हालांकि इसमें फूलपुर लोकसभा सीट पर पिछले साल हुए उपचुनाव में सपा ने बीजेपी से यह सीट छीनते हुए अपने नाम कर लिया था.

सुल्तानपुर संसदीय सीट पर सुबह 9 बजे तक 8.40 फीसदी, दोपहर 1 बजे तक 38.7 फीसदी, 3 बजे तक 45.89 फीसदी और शाम 6 बजे तक 52.34 फीसदी वोटिंग दर्ज की गई. दूसरी ओर, इन 14 लोकसभा सीटों पर सुबह 9 बजे तक औसत मतदान 9.28 प्रतिशत, 11 बजे तक 21.56 प्रतिशत, दोपहर 1 बजे तक 34.30% और 3 बजे तक 43% और शाम 6 बजे तक 50.82 फीसदी दर्ज किया गया.

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मतदान के बीच सुल्तानपुर से बीजेपी प्रत्याशी मेनका गांधी ने महागठबंधन के प्रत्याशी सोनू सिंह पर बड़ा आरोप लगाया है. मेनका ने उनपर बूथ कैप्चरिंग का आरोप लगाया है, इस दौरान सुल्तानपुर में बीच सड़क पर दोनों प्रत्याशियों के बीच तीखी बहस भी हो गई. दरअसल, मेनका गांधी मतदान के दौरान आज पोलिंग बूथ पर जाकर जायजा ले रही हैं, इस दौरान रास्ते में उनकी बहस भी हुई. मेनका और सोनू सिंह की गाड़ी जब आमने-सामने आई, तो दोनों प्रत्याशियों के बीच जमकर तू-तू-मैं-मैं हुई.

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सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर 15 उम्मीदवार मैदान में हैं जिसमें मुख्य मुकाबला बीजेपी की मेनका गांधी और कांग्रेस के संजय सिंह के बीच है. समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने वाली बहुजन समाज पार्टी ने यहां से चंद्र भद्र सिंह को मैदान में उतारा है. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) की कमाल देवी चुनौती पेश कर रही हैं. 5 उम्मीदवार तो बतौर निर्दलीय मैदान में हैं.

गोमती नदी के किनारे बसे सुल्तानपुर की सल्तनत पर लंबे समय तक कांग्रेस का कब्जा रहा है, हालांकि रायबरेली और अमेठी की तरह यह सीट कभी भी वीवीआईपी सीट का दर्जा हासिल नहीं कर सकी. इस बार मेनका गांधी के इस रण क्षेत्र में उतरने से यह सीट फिर से चर्चा में आ गई है. अब देखना होगा कि इस 16 साल बाद इस सीट पर जीत हासिल करने वाली बीजेपी लगातार दूसरी बार अपनी सीट बचा पाती है या नहीं. इस सीट पर कांग्रेस से लेकर जनता दल, बीजेपी और बसपा जीत का परचम लहराने में कामयाब रही हैं, लेकिन समाजवादी पार्टी यहां से कभी भी जीत का स्वाद नहीं चख सकी.

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कांग्रेस को पहली बार मिली हार

सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर अभी तक 16 लोकसभा चुनाव और 3 उपचुनाव हो चुके हैं. 1951 से 1971 तक जनसंघ ने कांग्रेस से सीट छीनने की कोशिश तो बहुत की लेकिन कभी कामयाब नहीं हो सकी. 1951 में कांग्रेस के बीवी केसकर जीतकर सांसद पहुंचे. इसके बाद 1957 में गोविंद मालवीय, 1962 में कुंवर कृष्णा वर्मा, 1967 में गनपत सहाय और 1971 में केदार नाथ सिंह चुनाव जीतने में कामयाब रहे. 1977 में जनता पार्टी ने कांग्रेस के विजयरथ को रोक दिया.

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सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर 1977 में कांग्रेस को पहली हार का मुंह देखना पड़ा, जब जनता पार्टी के जुल्फिकुरुल्ला कांग्रेस को हराकर सांसद बने. हालांकि, इस संसदीय सीट पर 1980 में कांग्रेस ने एक बार फिर वापसी की और पार्टी 1984 में भी जीत गई. लेकिन इसके बाद कांग्रेस को इस सीट पर जीत के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा 2009 में कांग्रेस से संजय सिंह ने जीतकर सूखा खत्म किया.

रामलहर में बीजेपी का उत्भव

साल 1989 में जनता दल से रामसिंह सांसद बने. 90 के दशक में राममंदिर आंदोलन के दौर में बीजेपी इस संसदीय सीट पर भी कमल खिलाने में कामयाब रही थी. 1991 से लेकर 1998 के बीच बीजेपी ने 3 जीत हासिल की है. 1991 में विश्ननाथ दास शास्त्री जीते, जबकि 1996 और 1998 में देवेंद्र बहादुर और 2014 में वरुण गांधी. वहीं, बसपा ने इस सीट पर दो बार जीत हासिल की है, लेकिन दोनों बार सांसद अलग रहे. पहली बार 1999 में जय भद्र सिंह और 2004 में मोहम्मद ताहिर खान बसपा से सांसद चुने गए.

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सुल्तानपुर संसदीय सीट की अपनी एक खासियत है. बीजेपी के देवेंद्र बहादुर को छोड़ दें तो दूसरा कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो इस सीट पर दूसरी बार सांसद बनने में कामयाब रहा हो. यही वजह रही कि इस सीट पर किसी एक नेता का कभी दबदबा नहीं रहा. आजादी के बाद कांग्रेस यहां 8 बार जीती, लेकिन हर बार चेहरे अलग रहे. इसी तरह से बसपा 2 बार जीती और दोनों बार अलग-अलग थे. जबकि बीजेपी 4 बार जीती जिसमें 3 चार चेहरे शामिल रहे. 2014 में जीतने वाले वरुण गांधी इस बार पीलीभीत से चुनाव लड़ रहे हैं.

सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर 2011 के जनगणना के मुताबिक कुल जनसंख्या 23,52,034 है. इसमें 93.75 फीसदी ग्रामीण और 6.25 शहरी आबादी है. अनुसूचित जाति की 21.29% आबादी यहां पर रहती हैं. साथ ही मुस्लिम, ठाकुर और ब्राह्मण मततादाओं के अलावा ओबीसी की बड़ी आबादी इस क्षेत्र में हार जीत तय करने में अहम भूमिका रही है. यह जिला फैजाबाद मंडल का हिस्सा है.

इस संसदीय क्षेत्र के तहत पांच विधानसभा सीटें इसौली, सुल्तानपुर, सदर, कादीपुर (सुरक्षित) और लम्भुआ सीटें आती हैं. मौजूदा समय में इनमें 4 सीटों पर बीजेपी का कब्जा हैं और महज एक सीट इसौली सपा के पास है.

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2014 के लोकसभा चुनाव में सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर 56.64 फीसदी मतदान हुए थे. इस सीट पर बीजेपी उम्मीदवार वरुण गांधी ने बसपा उम्मीदवार को 1 लाख 78 हजार 902 वोटों से मात दी थी. इस तरह 1998 के बाद बीजेपी इस सीट पर कमल खिलाने में कामयाब हुई थी. वहीं, कांग्रेस उम्मीदवार जमानत भी नहीं बचा सकी थी. बीजेपी के वरुण गांधी को 4,10,348 वोट मिले बसपा के पवन पांडेय को 2,31,446 वोट मिले सपा के शकील अहमद को 2,28,144 वोट मिले कांग्रेस के अमित सिंह को 41,983 वोट मिले.

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