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यूपी उपचुनावः जहां मैदान में नहीं है हाथी, वहां BSP का वोट किसका बनेगा साथी?

उत्तर प्रदेश की मैनपुरी, रामपुर और खतौली सीट पर हो रहे उपचुनाव में मायावती ने अपने कैंडिडेट नहीं उतारे हैं. बसपा का दलित मतदाता उपचुनाव में सपा और बीजेपी में किसके पक्ष में जाएगा, क्योंकि यही वोटर सबसे अहम भूमिका में है.

बसपा प्रमुख मायावती बसपा प्रमुख मायावती
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 17 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 1:40 PM IST

उत्तर प्रदेश में मैनपुरी लोकसभा, रामपुर और खतौली विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में बसपा ने अपने कैंडिडेट नहीं उतारे हैं. मैनपुरी और रामपुर सीट पर सपा और बीजेपी के बीच सीधी लड़ाई है तो खतौली में बीजेपी बनाम आरएलडी का मुकाबला है. उपचुनाव को आगामी निकाय और 2024 के लोकसभा चुनाव का लिटमस टेस्ट माना जा रहा है, लेकिन बसपा के उपचुनाव में नहीं उतरने से लड़ाई रोचक हो गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि उपचुनाव में बसपा की गैरमौजूदगी किसे नफा और किसे नुकसान पहुंचाएंगी?  

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उपचुनाव में किसके बीच मुकाबला
मुलायम सिंह यादव के निधन से मैनपुरी सीट रिक्त हुई है, जिस पर उपचुनाव हो रहे हैं. सपा ने मैनपुरी सीट पर डिंपल यादव को उतारा है तो बीजेपी ने पूर्व सांसद रघुराज शाक्य पर दांव लगाया है. वहीं. रामपुर विधानसभा सीट पर सपा ने आसिम रजा को प्रत्याशी बनाया है तो बीजेपी से आकाश सक्सेना मैदान में हैं. खतौली विधानसभा सीट पर आरएलडी प्रत्याशी मदन भैया के सामने बीजेपी से पूर्व विधायक विक्रम सैनी की पत्नी राजकुमारी सैनी किस्मत आजमा रही हैं. बसपा और कांग्रेस ने चुनाव में अपने-अपने कैंडिडेट नहीं उतारे हैं, जिसके चलते मुकाबला बीजेपी और सपा-आरएलडी गठबंधन के बीच है. 

बसपा के उपचुनाव न लड़ने का असर
उपचुनाव में बसपा की गैरमौजूदगी से सभी के मन में एक ही सवाल है कि मायावती का वोटबैंक किसके साथ जाएंगे. ऐसे में हाल ही में हुए उपचुनाव को देखें तो आजमगढ़ सीट पर बसपा के उतरने से सपा को नुकसान हुआ है तो रामपुर और गोला गोकार्णनाथ सीट पर न उतरने से बीजेपी को लाभ हुआ. इसी मद्देदनजर मायावती पर आरोप लगा कि विधानसभा चुनाव के बाद हुए उपचुनाव में उन्होंने सपा को नुकसान पहुंचा कर बीजेपी को जिताने में मदद की है. वहीं. अब मैनपुरी, खतौली और रामपुर में हो रहे उपचुनाव में बसपा ने अपना कोई भी उम्मीदवार नहीं उतारा है. ऐसे में दलित मतदाता का झुकाव किसकी तरफ होगा? 

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मैनपुरी सीट पर बसपा वोट निर्णायक
2019 का लोकसभा चुनाव सपा और बसपा मिलकर लड़ी थी. मैनपुरी सीट पर मुलायम सिंह को 5,24,926 और बीजेपी के प्रेम सिंह शाक्य को 4,30,537 वोट मिले थे. बसपा मैनपुरी सीट पर कभी भी चुनाव नहीं जीत सकी है, लेकिन लगातार 2019 को छोड़कर बाकी चुनाव लड़ती रही है. 2004 और 2009 के चुनाव बसपा को तीस फीसदी के करीब वोट मिले हैं जबकि बाकी चुनाव में उसे 12 से 17 फीसदी वोट मिलता रहा है. 

मैनपुरी सीट पर बसपा का एवरेज वोट 16 फीसदी के करीब है और 2019 के चुनाव में सपा और बीजेपी के बीच महज 11 फीसदी वोटों का ही अंतर रहा था. ऐसे में मायावती का वोट उपचुनाव में काफी निर्णायक भूमिका में है. दलित मतदाता दो लाख के करीब है, जिसमें से डेढ़ लाख जाटव दलित हैं. यही वोट जिसकी तरफ जाएगा मैनपुरी में उसके लिए राह आसान हो जाएगी. 

रामपुर सीट पर बसपा का ग्राफ 
आजम खान को तीन साल की सजा होने के चलते रामपुर विधानसभा सीट रिक्त हुई है, जहां पर सपा और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है. रामपुर सीट पर बसपा कभी भी जीत दर्ज नहीं कर सकी है, लेकिन 1996 में कांग्रेस का साथ देकर जरूर आजम खान का खेल बिगाड़ दिया था. 2017 के चुनाव में बसपा 25 फीसदी वोट हासिल कर सकी थी बाकी चुनाव में उसे 10 फीसदी वोट भी नहीं मिले हैं. इस तरह से बसपा का रामपुर में एवरेट वोट आठ फीसदी के करीब रहा है. रामपुर संसदीय चुनाव में बसपा के न उतरने से सपा को नुकसान और बीजेपी को लाभ मिला था. यही पैटर्न रामपुर विधानसभा सीट पर भी देखने को मिल सकता है. 

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खतौली सीट पर बसपा का असर 
खतौली विधानसभा सीट पर आरएलडी बनाम बीजेपी की लड़ाई है. बसपा इस सीट पर 2007 में महज एक बार ही जीत का परचम फहराया है, लेकिन उसके बाद से दोबारा नहीं जीती. पिछले पांच चुनाव में मिले वोटों के आंकड़े को देखें तो बसपा का एवरेज वोट 20 फीसदी के करीब रहा है और उसे 30 से 40 हजार के बीच उसे वोट मिलता रहा है. दलित मतदाता भी यहां पर 40 हजार के करीब है, जो बसपा को हार्डकोर वोटर माने जाते हैं. खतौली में 2017 के चुनाव में बीजेपी ने 8 फीसदी वोटों के अंतर से आरएलडी से यह सीट जीती थी. बसपा को 14 फीसदी वोट मिले थे. ऐसे में बसपा के वोटर खातौली सीट पर निर्णायक भूमिका अदा कर सकते हैं? 

मायावती क्या सियासी संदेश देंगी? 
सियासत में सारा खेल संदेशों का है. ऐसे में मायावती उपचुनाव न लड़कर संदेश क्या देना चाहती हैं. इसे समझने के लिए उनके हाल ही में दिए गए एक बयान को देखना होगा। गोला गोकर्णनाथ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में हार के बाद मायावती ने सपा पर हमला बोला था. मायावती ने कहा था, 'यूपी के खीरी का गोला गोकर्णनाथ उपचुनाव बीजेपी की जीत से ज्यादा सपा की 34,298 वोटों से करारी हार के लिए काफी चर्चाओं में है. बसपा ज्यादातर उपचुनाव नहीं लड़ती है और यहां भी चुनाव मैदान में नहीं थी, तो अब सपा अपनी इस हार के लिए कौन सा नया बहाना बनाएगी'

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वहीं, मायावती ने एक दूसरे ट्वीट में कहा था, 'अब अगले महीने मैनपुरी लोकसभा और रामपुर विधानसभा के लिए उपचुनाव में, आजमगढ़ की तरह ही, सपा के सामने अपनी इन पुरानी सीटों को बचाने की चुनौती है. देखना होगा कि क्या सपा ये सीटें भाजपा को हराकर पुनः जीत पाएगी या फिर वह बीजेपी को हराने में सक्षम नहीं है, यह पुनः साबित होगा.' इस तरह बसपा प्रमुख मायावती यही संदेश देती नजर आ रही हैं कि अखिलेश यादव की अगुवाई में समाजवादी पार्टी बीजेपी से मुकाबला करने में सक्षम नहीं है. 

राजनीतिक विश्लेषक सैय्यद कासिम कहते हैं कि मायावती यूपी में बीजेपी के मुकाबले खुद को खड़ी करना चाहती है, जिसके लिए उनके निशाने पर समाजवादी पार्टी है. मायावती यह समझ रही हैं कि सपा को कमजोर किए बगैर यूपी में दोबारा से बसपा को मजबूत नहीं किया जा सकता है. इसी मद्देनजर दलित-मुस्लिम समीकरण को मजबूत करने में लगी है तो दूसरी तरफ उपचुनाव में सपा की हार को इस तरह से पेश कर रही हैं कि सपा यूपी में बीजेपी को मात नहीं दे सकती है. इस तरह मायावती सत्ता विरोधी वोटों अपने पक्ष में करना चाहती हैं ताकि 2024 के लोकसभा चुनाव की लड़ाई सपा बनाम बीजेपी के बजाय बीजेपी बनाम बसपा की हो सके. ऐसे में देखना है कि मायावती का यह दांव कितना सफल रहता है? 

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