
मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि रही मैनपुरी ने केवल नेताजी के ही सियासी सफर को उड़ान नहीं दी बल्कि सैफई परिवार की तीन पीढ़ियां इसी मैनपुरी के रास्ते संसद तक पहुंची. मुलायम सिंह यादव के निधन से सिर्फ मैनपुरी सीट खाली ही नहीं हुई बल्कि लोकसभा में 'यादव परिवार' का प्रतिनिधित्व भी खत्म हो गया है. ऐसे में मैनपुरी सीट पर मुलायम सिंह के सियासी वारिस के तौर पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव के भतीजे और लालू प्रसाद यादव के दामाद तेज प्रताप यादव चुनावी मैदान में उतर सकते हैं?
तेज प्रताप क्या मैनपुरी से लड़ेंगे चुनाव
सपा सूत्रों के मुताबिक अखिलेश यादव मैनपुरी लोकसभा सीट पर तेज प्रताप सिंह यादव को उम्मीदवार बना सकते हैं. तेज प्रताप पहले भी इस सीट से सांसद रह चुके है. वह मुलायम सिंह यादव के बड़े भाई के रतन सिंह यादव पौत्र हैं. तेज प्रताप के पिता रणवीर सिंह यादव राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय थे, लेकिन 36 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था. वो ब्लाक प्रमुख रहे हैं और रणवीर की पत्नी मृदुला यादव मौजूदा समय में सैफई की ब्लाक प्रमुख हैं.
अखिलेश के भतीजे और लालू के दमाद
रणवीर सिंह यादव सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के चचेरे भाई हैं, जिस लिहाज से तेज प्रताप सिंह यादव उनके भतीजे हैं. तेज प्रताप की पत्नी राजलक्ष्मी बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की बेटी हैं. इस तरह से लालू प्रसाद के दामाद हैं. तेज प्रताप मैनपुरी से पहले भी सांसद रह चुके हैं और सपा उन्हें एक बार फिर से टिकट दे सकती है. हालांकि, तेज प्रताप के अलावा धर्मेद्र यादव और डिंपल यादव के नामों को लेकर भी पार्टी में चर्चा है, लेकिन पार्टी को तरफ से अभी तक औपचारिक रूप से कोई नाम फाइनल नहीं है.
मैनपुरी सीट पर कभी नहीं खिला कमल
मैनपुरी सीट को यादव परिवार का गढ़ मानी जाती है. इस सीट पर आज तक बीजेपी जीत दर्ज नहीं कर पाई है. 2014 में जब पूरे देश में मोदी लहर थी तब भी इस सीट पर बीजेपी का जादू नहीं चला. मैनपुरी से चुनाव लड़े से मुलायम सिंह यादव को ही जीत हासिल हुई. मुलायम दो संसदीय सीटों आजमगढ़ और मैनपुरी से चुनाव लड़े थे और उन्हें दोनों ही सीटों पर जीत दर्ज की थी. ऐसे में मैनपुरी सीट उन्होंने छोड़ दी थी और फिर इस सीट पर तेज प्रताप यादव उपचुनाव जीते थे. इस तरह सियासी तौर पर तेज प्रताप यादव की सियासी लांचिग हुई थी.
तेज प्रताप और धर्मेंद्र रह चुके सांसद
मुलायम सिंह के अलावा इस सीट से धर्मेद्र यादव और तेज प्रताप यादव भी सांसद रह चुके हैं. दोनों ही उपचुनाव के जरिए संसद पहुंचे थे. दोनों ही बार नेताजी की इच्छा का भी मैनपुरी की जनता ने सम्मान किया और भारी बहुमत से जीत दिलाई 2004 में धर्मेंद्र यादव सांसद बने थे तो 2014 में तेज प्रताप. ऐसे में मैनपुरी उपचुनाव में इन दोनों का ही नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है, लेकिन तेज प्रताप यादव की प्रबल दावेदारी मानी जा रही है.
बता दें कि पहली बार 1996 में समाजवादी पार्टी से मुलायम सिंह यादव मैनपुरी लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे. तब तक मैनपुरी से उनका नाता गहरा हो चुका था. जनता से भरपूर प्यार मिला और नेताजी मैनपुरी से चुनकर पहली बार लोकसभा पहुंचे. इसके बाद से सपा ने कभी मैनपुरी लोकसभा सीट पर हार का मुंह नहीं देखा. इसी बीच नेताजी ने सैफई परिवार की नई पीढ़ियों को भी लोकसभा भेजने का निर्णय लिया मैनपुरी सीट को ही चुना.
यह बात 2004 के लोकसभा चुनाव की है. यहां से मुलायम सिंह यादव ने जीत दर्ज की थी, लेकिन यूपी के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद इस्तीफा दे दिया. नेताजी के सीट छोड़ने के बाद उन्होंने उपचुनाव में भतीजे धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा. विरोधी दलों को लगा कि शायद अब उन्हें यह सीट कब्जाने का मौका हाथ लग गया है, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. नेताजी का जादू चला और धर्मेंद्र यादव ने उपचुनाव में जीत दर्ज की.
2014 में आजमगढ़ और मैनपुरी सीट से जीतने बाद मुलायम सिंह ने मैनपुरी लोकसभा सीट छोड़ दी. इस बार उन्होंने अपने पौत्र तेज प्रताप यादव को मैदान में उतारा. सियासत को शूरमाओं को फिर लगा कि वे अब मैनपुरी का सपाई दुर्ग ढहा सकते हैं, लेकिन यहां भी उनका सपना अधूरा ही रहा. तेज प्रताप को भी मैनपुरी जनता ने उतना ही प्यार दिया, जितना नेताजी को मिलता था. परिणाम आया तो चार लाख से अधिक वोटों से तेजप्रताप यादव ने जीत दर्ज की. यह मैनपुरी लोकसभा चुनाव में अब तक सबसे बड़ी जीत थी.
मैनपुरी सीट के रास्ते ही सैफई परिवार की तीन पीढ़ियों ने संसद का सफर तय किया. मैनपुरी में चुनावी रथ पर सवारी चाहे किसी की भी रही हो, लेकिन उस रथ के सारथी हमेशा मुलायम सिंह यादव ही रहे. मुलायम सिंह यादव से शुरू हुआ सैफई परिवार का सियासी सफर अनवरत जारी है. मुलायम सिंह के भाई से लेकर पुत्र, भतीजे और पौत्र अब सूबे की सियासत के मंझे हुए खिलाड़ी बन चुके हैं, लेकिन जब बात सैफई परिवार की बेटी के सियासत में कदम रखने की आई तो भी मैनपुरी को ही चुना गया.
मैनपुरी सीट का समीकरण
मैनपुरी लोकसभा सीट पर मुलायम सिंह यादव का जादू चलता रहा है, जिसके आगे सारे समीकरण ध्वस्त हो जाते थे. इस सीट पर सवा चार लाख यादव, शाक्य करीब तीन लाख, ठाकुर दो लाख और ब्राह्मण मतदाताओं की वोटों एक लाख है. वहीं दलित दो लाख, इनमें से 1.20 लाख जाटव, 1 लाख लोधी, 70 हजार वैश्य और एक लाख मतदाता मु्स्लिम है. इस सीट पर यादवों और मुस्लिमों का एकतरफा वोट सपा को मिलता है. इसके अलावा अन्य जातीय का वोट भी सपा को मिलने से जीत मिलती रही.
मैनपुरी में पांच विधानसभा सीटें
मैनपुरी संसदीय सीट में पांच विधानसभाएं आती हैं, जिनमें मैनपुरी, भोगांव, किशनी, करहल और जसवंतनगर शामिल हैं। आपको बता दें कि जसवंतनगर विधानसभा सीट से मुलायम के भाई शिवपाल सिंह यादव विधायक हैं और उन्होंने एसपी से अलग होने के बाद भी अपने भाई की जीत के लिए उन्हें हर तरह से समर्थन देने का ऐलान किया है. 2017 के विधानसभा चुनाव में पांच विधानसभा सीटों में से सिर्फ एक सीट भोगांव में बीजेपी को जीत मिली थी, लेकिन इस बार दो सीटें बीजेपी और तीन सीट सपा के पास है.
मैनपुरी की सियासत
मुलायम सिंह यादव के की कर्मभूमि मैनपुरी ने सैफई परिवार को कभी भी निराश नहीं किया. इसी के चलते जब 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने का निर्णय लिया तो उन्हें भी अपने पिता और नेताजी की कर्मभूमि की ही याद आई. उन्होंने मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और भाजपा प्रत्याशी एसपी सिंह बघेल को रिकॉर्ड मतों से पराजित किया. इस तरह से मैनपुरी की सियासत पर यादव परिवार का सियासी कब्जा और अब मुलायम सिंह बाद इस वर्चस्व को बनाए रखने की चुनौती अखिलेश यादव के सामने खड़ी है.
मैनपुरी सीट पर सपा यादव, शाक्य और मुस्लिम मतों के समीकरण पर चुनाव जीतती आई है. बीजेपी इस सीट पर सेंधमारी के लिए हरसंभव कोशिश करती रही, लेकिन मुलायम सिंह के चलते सफल नहीं हो सकी. अब मुलायम नहीं रहे तो सपा के लिए मैनपुरी सीट को बचाए रखना चुनौती खड़ी है. ऐसे में अखिलेश यादव अपने पिता की सीट पर परिवार से किसी सदस्य तो चुनाव मैदान में उतराने की तैयारी कर रहे हैं, जिसमें तेज प्रताप यादव को टिकट मिलने की सबसे ज्यादा संभावना है.
सपा का राष्ट्रीय स्तर घटा रुतबा
समाजवादी पार्टी का रुतबा राष्ट्रीय स्तर पर लगातार घटता जा रहा है. पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव के निधन से दिल्ली की सियासत में सपा और भी कमजोर पड़ी है. ढाई दशक में पहली बार मौका आया है जब मुलायम परिवार का कोई भी सदस्य लोकसभा में नहीं रह गया है. हालांकि, एक दौर में सैफई परिवार के छह सदस्य एक साथ संसद में हुआ करते थे, लेकिन अब लोकसभा में कोई नहीं बचा और राज्यसभा में सिर्फ रामगोपाल यादव बचे हैं. ऐसे में मैनपुरी लोकसभा सीट को बचाए रखना चुनौती है?
समाजवादी पार्टी के सियासत में पहली कई ऐसा मौका आया है जब लोकसभा मुलायम परिवार विहीन हो गया है. 2019 में सैफई परिवार से छह सदस्य लोकसभा चुनाव लड़े थे, जिनमें से आजमगढ़ से अखिलेश यादव और मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव ही जीत सके थे. वहीं, कन्नौज से डिंपल यादव, बदायूं से धर्मेंद्र यादव और फिरोजाबाद से अक्षय यादव और शिवपाल यादव चुनाव हार गए थे. 2022 में अखिलेश विधायक बनने के बाद आजमगढ़ से इस्तीफा दे दिया था और मुलायम सिंह के निधन से मैनपुरी सीट रिक्त हो गई है.
लोकसभा में यादव परिवार की मौजूदगी को बनाए रखने और राष्ट्रीय राजनीति में सपा की धाक के लिए सैफई परिवार से ही किसी को मैनपुरी उपचुनाव लड़ाने की संभावना जताई जा रही है. ऐसे में तेज प्रताप सिंह यादव को टिकट मिलने की सबसे ज्यादा संभावना दिख रीह है, लेकिन शिवपाल यादव भी इस सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में है. ऐसे में अखिलेश यादव के सामने अपने भतीजे और चाचा के बीच सियासी संतुलन को भी बनाए रखने की चुनौती होगी?