
लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन टूटने की कगार पर खड़ा है. इस बात की पुष्टि तो नहीं हुई है लेकिन अखिलेश यादव और मायावती के बयानों से साफ है कि गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. मायावती ने मंगलवार को मीडिया से बात करते हुए कहा कि चुनाव नतीजों से साफ है कि बेस वोट भी सपा के साथ खड़ा नहीं रह सका है. सपा की यादव बाहुल्य सीटों पर भी सपा उम्मीदवार चुनाव हार गए हैं. कन्नौज में डिंपल यादव और फिरोजाबाद में अक्षय यादव का हार जाना हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है. उन्होंने कहा कि बसपा और सपा का बेस वोट जुड़ने के बाद इन उम्मीदवारों को हारना नहीं चाहिए था.
मायावती ने गठबंधन पर कहा कि सपा का बेस वोट ही छिटक गया है तो उन्होंने बसपा को वोट कैसे दिया होगा, यह बात सोचने पर मजबूर करती है. मायावती ने कहा कि हमने पार्टी की समीक्षा बैठक में पाया कि बसपा काडर आधारित पार्टी है और खास मकसद से सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा गया था लेकिन हमें सफलता नहीं मिल पाई है. सपा के काडर को भी बसपा की तरह किसी भी वक्त के लिए तैयार रहने की जरूरत है. इस बार के चुनाव में सपा ने यह मौका गंवा दिया है. मायावती ने कहा कि सपा प्रमुख अपने राजनीतिक कार्यों को करने के साथ-साथ कार्यकर्ताओं और पार्टी को मिशनरी बनाते हैं तो फिर हम आगे साथ लड़ेगे, अगर वह ऐसा नहीं कर पाते तो हमें अकेले ही चुनाव लड़ना होगा.
मजबूत हैं निजी रिश्ते
मायावती ने कहा कि उपचुनाव में हमारी पार्टी ने कुछ सीटों पर अकेले उपचुनाव लड़ने का फैसला किया है लेकिन गठबंधन पर फुल ब्रेक नहीं लगा है. उन्होंने कहा कि चुनाव में ईवीएम की भूमिका भी ठीक नहीं पाई गई है. इससे पहले बसपा चीफ ने अपने संबोधन की शुरुआत में कहा कि यूपी में गठबंधन के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल उनका खूब सम्मान करते हैं. वह दोनों मुझे अपना बड़ा और आदर्श मानकर इज्जत देते हैं और मेरी ओर से भी उन्हें परिवार के तरह ही सम्मान दिया गया है. उन्होंने कहा कि हमारे रिश्ते केवल स्वार्थ के लिए नहीं बने हैं और हमेशा बने भी रहेंगे. उमायावती ने कहा कि निजी रिश्तों से अलग राजनीतिक मजबूरियों को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है.
यूपी में चुनाव से पहले मोदी के मैजिक को ध्वस्त करने के इरादे से सपा और बसपा ने पुराने बैर को भुलाते हुए बड़ा सियासी दांव चला था लेकिन नतीजों में यह कदम कारगर साबित नहीं हुआ. जो मायावती गठबंधन से नुकसान का हवाला दे रही हैं वह सपा के मुकाबले फिर भी फायदे में रहीं क्योंकि उनकी पार्टी बसपा जीरों से 10 लोकसभा सीटों पर पहुंच गई है जबकि बसपा के साथ लड़ने से अखिलेश को बड़ा नुकसान हुआ है. पिछली बार परिवार से 5 सीटें जीतने वाले अखिलेश फिर से 5 ही सीटों पर ही अटक गए हैं लेकिन इस बार उनकी पत्नी डिंपल यादव समेत परिवार के 2 अन्य नेता भी चुनाव हार चुके हैं.
मायावती ने दिए थे संकेत
गौरतलब है कि बसपा अध्यक्ष मायावती ने सोमवार को पार्टी नेताओं की एक समीक्षा बैठक की थी. इसमें मायावती ने घोषणा की कि बसपा राज्य में अकेले 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव लड़ेगी. इसका साफ मतलब है कि मायावती समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन जारी रखने के मूड में नहीं हैं. बसपा सामान्य तौर पर उपचुनाव नहीं लड़ती है लेकिन इस बार उसने घोषणा की है कि वह राज्य के उपचुनावों में अपने उम्मीदवार उतारेगी. पार्टी की बैठक में मायावती ने कहा कि बसपा को समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन से कोई फायदा नहीं हुआ है. दोनों दलों के बीच वोट ट्रांसफर नहीं हुए. यह उपचुनाव, इन विधायकों के लोकसभा के लिए चुने जाने की वजह से होंगे. बीजेपी के 9 विधायकों ने लोकसभा चुनाव जीता है, जबकि बसपा और सपा के एक-एक विधायक लोकसभा के लिए चुने गए हैं.
घाटे में रहे अखिलेश
उधर, अखिलेश यादव गठबंधन को लेकर मायावती के बयान पर तो चुप्पी साध गए लेकिन आजमगढ़ दौरे पर उन्होंने कहा कि अब वह अगली लड़ाई अपने संसाधन और अपने साधन से लड़ेंगे जिसका जल्द ही खुलासा भी करेंगे. अखिलेश के लिए यह चुनाव नाक की लड़ाई बन चुका था. घर में पड़ी रार के बाद पुराने सियासी दुश्मन से अखिलेश यादव ने दोस्ती की थी फिर भी नतीजा उनके पक्ष में नहीं रहा है. चाचा शिवपाल यादव ने अलग राह पकड़ी जिसका फायदा चुनाव में बीजेपी को जरूर मिला. वहीं पिता मुलायम सिंह यादव भी अंदर से इस गठबंधन के पक्ष में नहीं थे. अब ऐसे में मायावती के बयान के बाद गठबंधन के भविष्य को लेकर अखिलेश की प्रतिक्रिया का भी इंतजार है.