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मिलिए सहारनपुर के "द ग्रेट चमार" ग्राम घडकौली और वहां की भीम आर्मी से...

आजादी के दशकों बाद भी दलित, समाज की मुख्यधारा से वंचित रहा, लेकिन बदलाव धीरे-धीरे आता है और आज भारत उस बदलाव के मोड़ पर खड़ा है, जब दलित खुद को दलित कहलाने से परहेज नहीं करता बल्कि उस पर फख्र करता है.

गांव के नाम का बोर्ड गांव के नाम का बोर्ड
आशुतोष मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 13 अप्रैल 2017,
  • अपडेटेड 1:47 PM IST

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर! यह नाम नहीं एक विचार है. वह सोच है जिसने भारत में सबसे पिछड़े समाज को भारत के मुख्य धारा में लाने का काम किया. आजादी के दशकों बाद भी दलित, समाज की मुख्यधारा से वंचित रहा, लेकिन बदलाव धीरे-धीरे आता है और आज भारत उस बदलाव के मोड़ पर खड़ा है, जब दलित खुद को दलित कहलाने से परहेज नहीं करता बल्कि उस पर फख्र करता है.

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आज हम आपको बताते हैं भारत में दलितों के उस गांव के बारे में जहां दलित अपने नाम पर फख्र करता है और जहां उसने अपनी हिफाजत के लिए अपनी ही जाति की युवाओं की सेना खड़ी की है.

देश की राजधानी दिल्ली से करीब 180 किलोमीटर की दूरी पर है यूपी का सहारनपुर जिला और इसी सहारनपुर के एक कोने में बसा है घडकौली गांव. यह गांव इसलिए भी खास है और इसलिए प्रासंगिक भी है क्योंकि अंबेडकर के जन्मदिवस पर इससे यह पता चलता है कि भारत का दलित अब दबा और कुचला नहीं है. इसका अंदाजा आपको घडकौली गांव में पैर रखते ही चलेगा, जहां गांव के बाहर लगा साइन बोर्ड कहता है- 'द ग्रेट चमार डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ग्राम घडकौली आपका स्वागत करता है.'

दलितों के लिए 'चमार' शब्द का इस्तेमाल जातिसूचक अपराध माना जाता है और भारत की दंड संहिता के अनुसार इस शब्द का इस्तेमाल करने पर आपको सजा भी हो सकती है, लेकिन घडकौली गांव के दलित इस शब्द पर एतराज नहीं बल्कि फख्र महसूस करते हैं. अपनी पहचान और अपनी जाति पर इस गांव के दलित शर्मिंदा नहीं है. इसी गांव के रहने वाले मुनीष कहते हैं कि जब गांव में खेती भी दलित करता है सारे काम दलित ही करता है तो आखिर उसे अपने नाम और अपनी जाति के नाम पर शर्मिंदा क्यों होना.

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एक हजार से ज्यादा आबादी वाले घडकौली गांव में 800 से ज्यादा दलित परिवार रहते हैं दलितों की एकजुटता का नतीजा ही है कि गांव वालों ने इस गांव को 'द ग्रेट चमार' नाम दे दिया, लेकिन इस नाम के लिए उन्हें एक बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी थी. इस नाम की वजह से ही इस गांव ने साल 2016 में जातीय संघर्ष भी देखा है, लेकिन संघर्ष के बाद भी गांव खड़ा है और शान से दुनिया को अपनी पहचान दिखा रहा है.

दलितों को इंसाफ दिलाने के लिए बनाई आर्मी
सिर्फ ये गांव ही खास नहीं है, खास है इस गांव की हिफाजत करने वाली वो फौज जो अंबेडकर के विचारों को लेकर दलितों के सामाजिक इंसाफ के लिए बनी और आज भी इस एक गांव से निकलकर आसपास के इलाकों में भी दलितों के हक की लड़ाई लड़ रही है. इस गांव में बनी फौज है-भीम आर्मी. गांव के ज्यादातर लड़के इस 'भीम आर्मी' का हिस्सा है. वैसे तो भीम आर्मी ने अपना काम दलितों को सामाजिक इंसाफ दिलाना बताया है और यह बाबा साहब अंबेडकर के संविधान में विश्वास करती है, लेकिन इसके साथ कुछ विवाद भी जुड़ गए हैं.

दामन पर घडकौली कांड का दाग
23 साल के टिंकू बौद्ध डिटर्जेंट पाउडर का व्यापार करते हैं और घडकौली गांव में भीम आर्मी के ग्राम प्रमुख हैं. दलितों की लड़ाई लड़ने के लिए टिंकू फरवरी 2016 में भीम आर्मी का हिस्सा बन गए. अप्रैल 2016 में इस गांव में काफी बवाल हुआ था, जब दो जातियों के बीच गांव के इसी बोर्ड पर विवाद उठ गया. मामला जातीय हिसा तक पहुंच गया, जिसके बाद पुलिस द्वारा लाठी चार्ज भी किया गया. उस घटना के बाद इस गांव के दलित एकजुट हो गए और तभी से भीम आर्मी के सदस्यों की संख्या में काफी इजाफा हुआ. आज इस गांव में भीम आर्मी के 700 से ज्यादा सदस्य हैं और उनका दावा है कि वह दलितों के सामाजिक हक के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं.

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घडकौली कांड आज भी गांव वाले भूल नहीं पाते. आरोप है कि दूसरी जाति के लोगों ने पहले गांव के नाम वाले इस बोर्ड को काली स्याही से रंग दिया और उसके बाद गांव में लगी अंबेडकर की प्रतिमा पर भी स्याही पोती. गांव वालों का आरोप है कि यह सब दबंगों द्वारा किया गया और शिकायत पर पुलिस ने भी गांव वालों की नहीं सुनी. हालात सुधरे और गांव में फिर से 'द ग्रेट चमार ग्राम' का बोर्ड हर आने-जाने वाले का स्वागत करता है. भीम आर्मी दलितों की एकजुटता का चेहरा बन गई जिसके बाद पुरुष ही नहीं गांव की महिलाओं को भी अब सुरक्षा को लेकर किसी तरह का डर नहीं है.

भीम आर्मी अपने समुदाय के लिए किसी भी हद तक जाने का दावा करती है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस गांव की फौज कानून भी तोड़ती ? 23 साल के अश्विनी दलित हैं और पेशे से प्लंबर है. पिछले साल ही वह भीम आर्मी में शामिल हो गए और दावा करते हैं कि यह कदम उन्होंने दलितों को बराबरी का हक और न्याय दिलाने के लिए उठाया.

इस भीम आर्मी का पूरा नाम है-'भीम आर्मी भारत एकता मिशन' जिसका गठन किया था एडवोकेट चंद्रशेखर आजाद ने. जुलाई 2015 में इस भीम आर्मी का गठन किया गया था, लेकिन अप्रैल 2016 में इस गांव में हुई जातीय हिंसा के बाद भीम आर्मी पहली बार सुर्खियों में आई. एडवोकेट चंद्रशेखर आजाद पास के ही गांव के रहवासी हैं और दलितों के लिए लड़ाई लड़ने का दावा करने वाले चंद्रशेखर की भीम आर्मी से आसपास के कई दलित युवा जुड़ गए हैं. चंद्रशेखर का भी दावा है की भीम आर्मी का मकसद दलितों की सुरक्षा और उनका हक दिलवाना है, लेकिन इसके लिए वह हर तरीके को आजमाने का दावा भी करते हैं जो देश के कानून के खिलाफ भी है.

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द ग्रेट चमार ग्राम 21वीं सदी में इस बात का मिसाल है जो बताता है कि दलित अब अपनी जाति को लेकर के शर्मिंदा महसूस नहीं करता बल्कि वह अपनी जाति को अपनी ताकत समझता है और अपनी पहचान पर गर्व करता है.

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