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आएंगे पास या बढ़ेगी खटास... मुलायम के बाद कैसे रहेंगे शिवपाल-अखिलेश के रिश्ते

मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद यादव परिवार को एकजुट रखने की चुनौती अखिलेश यादव के सामने है. मुलायम परिवार में शिवपाल यादव को छोड़कर बाकी लोगों के साथ अखिलेश यादव के रिश्ते बेहतर हैं. ऐसे में सभी के मन में एक सवाल है कि मुलायम के बाद क्या चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश एक दूसरे के साथ आएंगे?

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कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 13 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 2:34 PM IST

समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव पंचतत्व में विलीन हो गए हैं. मुलायम सिंह के साथ कई दशकों तक कंधे से कंधा मिलाकर काम करने वाले शिवपाल यादव बड़े भाई का सहारा छिन जाने से भावुक और दुखी हैं तो अखिलेश यादव के सिर से पिता का साया छिन गया है. चाचा-भतीजे के सामने अब सबसे बड़ी जिम्मेदारी परिवार को एकजुट रखने की है. ऐसे में देखना है कि मुलायम के जाने के बाद शिवपाल-अखिलेश के बीच सियासी खटास और बढ़ेगी या फिर सारी राजनीतिक दुश्मनी भुलाकर दोनों एक साथ आएंगे? 

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मुलायम सिंह के निधन के बाद से चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश यादव के बीच दूरियां कुछ कम होती दिखाई दे रही हैं. सैफई में न सिर्फ दोनों साथ-साथ दिखाई दिए, बल्कि शिवपाल भतीजे अखिलेश के गार्जियन की तरह भी दिखे. पिता का साया सिर से उठ जाने से अखिलेश फफक-फफक कर रो रहे थे तो शिवपाल भतीजे के कंधे पर हाथ रखर सहारा देते नजर आए. बुधवार को शिवपाल मीडिया से बात करते हुए मुलायम सिंह के साथ गुजारे दिनों को याद किया. साथ ही परिवार की एकजुटता का संकेत दिए. 

परिवार में सब करते थे मुलायम का सम्मान
बता दें कि साल 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच सियासी वर्चस्व की जंग हुई थी. मुलायम लाख कोशिशों के बावजूद शिवपाल को अलग पार्टी बनाने से रोक नहीं पाए. साल 2018 में शिवपाल ने सपा से नाता तोड़कर अपनी अलग प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली. अखिलेश के साथ शिवपाल यादव के सियासी रिश्ते भले ही बिगड़े रहे, लेकिन बड़े भाई मुलायम से हमेशा एक अच्छी बॉन्डिंग रही. इसके पीछे एक वजह यह थी कि मुलायम सिंह परिवार के मुखिया थे. वो सभी भाइयों में सबसे बड़े थे. लिहाजा उनका हुक्म के सभी भाइयों और भतीजों के लिए सिर माथे पर था. 

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मुलायम सिंह ने शिवपाल यादव को ही नहीं बल्कि परिवार के बाकी सदस्यों को अपने निजी प्रयासों से सियासत में स्थापित किया था, लिहाजा सभी उनका अहसान मानते और सम्मान करते थे. हालांकि, कई बार परिवार में तकरार और मनमुटाव होता रहता था, लेकिन मुलायम सिंह ने सभी को एक धागे में पिरोये रखा था. वह शिवपाल-अखिलेश को भी एक करने के लिए पूरी कोशिश करते रहे. 2022 के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव के प्रयास पर ही चाचा-भतीजे एक साथ आए थे, लेकिन चुनाव नतीजे के बाद रिश्ते फिर खराब हो गए. 

शिवपाल को लेकर अखिलेश का नजरिया साफ
मुलायम सिंह यादव अब जब दुनिया में नहीं है तो अखिलेश-शिवपाल के बीच सेतु की भूमिका अदा करने के लिए भी कोई नहीं बचा. यादव परिवार के एक होने के सवाल पर शिवपाल ने कहा, 'यह कोई निर्णय लेने का समय नहीं है. फिलहाल हम यह तय करने की स्थिति में नहीं हैं कि मुझे क्या करना है और क्या नहीं. वक्त आएगा तो देखा जाए'. हालांकि, उन्होंने कहा कि हर मोर्चे पर, हर मौके पर हमने अभी तक जो भी फैसले लिए हैं, वह नेताजी के कहने पर ही लिए हैं. कभी भी नेताजी की किसी बात को कभी नहीं टाला है.

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मुलायम के बाद अब अखिलेश के सामने पहली और सबसे बड़ी जिम्मेदारी अपने परिवार को एकजुट रखने की है, लेकिन शिवपाल यादव को लेकर शुरू से उनका नजरिया स्पष्ट है. शिवपाल को चाचा के तौर पर अखिलेश सम्मान देने की बात करते हैं, लेकिन सियासी तौर पर साथ लेकर चलने के लिए राजी नहीं है. मुलायम सिंह के नहीं रहने के सियासी हालात में तब्दीली आ सकती है. 

अखिलेश को दिखाना होगा बड़ा दिल
गुरुग्राम के मेदांता में मुलायम सिंह यादव के इलाज के दौरान शिवपाल-अखिलेश एक साथ मजबूती से खड़े रहे और निधन के बाद चाचा-भतीजे एक दूसरे को ढांढस बंधाते दिखे. परिवार के सदस्य और पार्टी नेता भी चाहते हैं कि चाचा-भतीजे एक साथ आ जाए. अखिलेश को खुद मुलायम की जगह लेनी होगी और उन्हें मुलायम का तरह बड़ा दिल दिखाना होगा, जिसके बाद ही शिवपाल के साथ उनके रिश्ते बेहतर हो सकते हैं. 

परिवार में बिखराव में की शुरुआत के लिए अखिलेश यादव को ही मुख्य रूप से जिम्मेदार माना जाता है. उनपर शिवपाल यादव और अपर्णा यादव की अनदेखी का आरोप है. इसी वजह से दोनों ने अपनी राहें जुदा की है. परिवार में कई लोगों को इन दोनों से हमदर्दी है, लेकिन मुलायम सिंह यादव के लिहाज की वजह से कोई मुंह नहीं खुलता था. अब ये लिहाज का पर्दा हट गया है तो कौन क्या कहेगा और क्या करेगा इस पर किसी का नियंत्रण नहीं होगा. 

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दोनों के बीच जमी सियासी बर्फ पिघलेगी?
अखिलेश से सीनियर उनके चाचा शिवपाल उनकी बात मानने को मजबूर नहीं होंगे. बल्कि वो चाहेंगे कि अखिलेश अपने पिता की तरह उन्हें सम्मान दें और तवज्जो से उनकी बातें सुनें, उन पर अमल करें. शिवपाल तो कह रहे हैं कि परिवार में जो भी जिम्मेदारी दी जाएगी उसे संभालूंगा. घर, परिवार, समाज और पूरे सैफई के साथ ही जिन्हें कहीं सम्मान नहीं मिला है उन्हें साथ लेकर चलूंगा. इसके साथ ही अपने पार्टी के नेताओं के साथ सलाह-मशवरा कर निर्णय लेने की बात कर रहे हैं. ऐसे में देखना है कि चाचा-भतीजे के बीच जमी सियासी बर्फ क्या पिघलेगी?  

सपा की कमान मुलायम सिंह के हाथों में रही तब तक उनके परिवार का किसी सदस्य ने पार्टी से बगावत नहीं की. इसकी सबसे बड़ी वजह परिवार के मुखिया के तौर पर मुलायम की सर्वस्वीकार्ययता रही. मुलायम ने सभी के हितों का ख्याल भी रखा और उनका संरक्षण भी किया, लेकिन पार्टी की कमान अखिलेश के हाथों में आते ही यादव परिवार की एकता दरकने लगी. ऐसे में देखना है कि अखिलेश क्या शिवपाल को चाचा की तरह मानकर संतुलन बनाकर चल पाएंगे या फिर उन्हें एक सियासी दल के नेता के तौर पर ही देखेंगे.

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