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कभी संसद में बैठते थे मुलायम कुनबे के 6 मेंबर, अब लोकसभा में जीरो, राज्यसभा में सिर्फ रामगोपाल

मुलायम सिंह यादव के निधन से राष्ट्रीय राजनीति में समाजवादी पार्टी का रुतबा कम हुआ है. इतना ही नहीं, लोकसभा में मुलायम परिवार का कोई भी सदस्य नहीं बचा, जबकि एक समय छह सदस्य एक साथ संसद में हुआ करते थे. अब सिर्फ रामगोपाल यादव ही राज्यसभा में हैं. ढाई दशक में मुलायम फैमिली सियासी तौर पर कमजोर स्थिति में दिख रही है.

मुलायम सिंह यादव, रामगोपाल यादव, अखिलेश यादव मुलायम सिंह यादव, रामगोपाल यादव, अखिलेश यादव
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 14 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 12:26 PM IST

समाजवादी पार्टी का रुतबा राष्ट्रीय स्तर पर लगातार घटता जा रहा है. यूपी के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव के निधन से दिल्ली की सियासत में सपा और भी कमजोर पड़ी है. ढाई दशक में पहली बार मौका आया है जब मुलायम परिवार का कोई भी सदस्य लोकसभा में नहीं रह गया है. हालांकि, एक दौर में सैफई परिवार के छह सदस्य एक साथ संसद में हुआ करते थे, लेकिन अब लोकसभा में कोई नहीं बचा और राज्यसभा में सिर्फ रामगोपाल यादव हैं. ऐसे में मैनपुरी लोकसभा सीट को बचाए रखना अखिलेश यादव के लिए कितनी बड़ी चुनौती है? 

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2022 के विधानसभा चुनाव में सपा विधायकों की संख्या बढ़ी है, लेकिन लोकसभा से लेकर राज्यसभा और विधान परिषद तक उसकी धाक कम हुई है. विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष का पद भी खोना पड़ा है तो लोकसभा में सिर्फ दो सांसद और राज्यसभा में तीन हैं. 2019 में सपा पांच लोकसभा सीटें जीती थी, लेकिन रामपुर, आजमगढ़ हारने और मैनपुरी से सांसद मुलायम सिंह के निधन के बाद दो ही सदस्य बचे हैं और दोनों ही मुस्लिम हैं. एक शफीकुर्रहमान बर्क और दूसरे एचटी हसन हैं. 

मुलायम सिंह ने 1992 में किया था सपा का गठन

समाजवादी पार्टी की सियासत में पहली कई ऐसा मौका आया है, जब लोकसभा मुलायम परिवार विहीन हो गया है. 2019 में सैफई परिवार से छह सदस्य लोकसभा चुनाव लड़े थे, जिनमें से आजमगढ़ से अखिलेश यादव और  मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव ही जीत सके थे. कन्नौज से डिंपल यादव, बदायूं से धर्मेंद्र यादव और फिरोजाबाद से अक्षय यादव और शिवपाल यादव चुनाव हार गए थे. 2022 में अखिलेश ने विधायक बनने के बाद आजमगढ़ से इस्तीफा दे दिया था और मुलायम सिंह के निधन से मैनपुरी सीट रिक्त हो गई है. 

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मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का गठन 1992 में किया था. इस तरह सपा पहला लोकसभा चुनाव 1996 में लड़ी और मुलायम सिंह मैनपुरी सीट से सांसद बने थे. इसके बाद से मुलायम परिवार के सदस्यों का संसद पहुंचने का सिलसिला शुरू हुआ और 2014 में मुलायम परिवार से छह सदस्य सांसद में एक साथ रहे. मुलायम सिंह, रामगोपाल यादव, धर्मेंद्र यादव, तेज प्रताप यादव, अक्षय यादव और डिंपल यादव सांसद रहे थे. 2012 में यूपी के सीएम बनने से पहले तक अखिलेश भी सांसद रहे थे. 

लोकसभा में मुलायम परिवार शून्य

भारतीय राजनीति में मुलायम सिंह का एकलौता परिवार था, जब एक साथ एक ही परिवार के छह सदस्य सांसद में थे. लेकिन वक्त और सियासत ने ऐसी करवट ली कि आज मुलायम परिवार से लोकसभा में एक भी सदस्य नहीं बचा और राज्यसभा में सिर्फ रामगोपाल यादव ही बचे हैं. ऐसे में लोकसभा में मुलायम परिवार की मौजूदगी को बनाए रखने और राष्ट्रीय राजनीति में सपा की धाक के लिए सैफई परिवार से ही किसी को मैनपुरी उपचुनाव लड़ाने की संभावना जताई जा रही है.

मुलायम सिंह के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट पर छह महीने में उपचुनाव होने हैं. ऐसे में अखिलेश यादव खुद मैनपुरी सीट से उपचुनाव लड़ेंगे या फिर परिवार के ही किसी सदस्य को मैदान में उतारेंगे. इसको लेकर चर्चा शुरू हो गई है. अभी अखिलेश करहल सीट से विधायक हैं और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं, जिसके चलते उनके चुनाव लड़ने की संभावना कम ही है. ऐसे में अखिलेश यादव खुद को यूपी की राजनीति में रखेंगे, तो मैनपुरी सीट पर मुलायम का सियासी वारिस कौन होगा? 

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मैनपुरी में कौन होगा सियासी वारिस?
मैनपुरी लोकसभा सीट पर नेताजी की विरासत संभालने के लिए पांच चेहरों पर लोगों की निगाहें टिकी हुई हैं. इसमें सबसे पहला स्थान उनके बेटे और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का ही आता है, लेकिन वह करहल से विधायक हैं और सदन में नेता प्रतिपक्ष भी हैं. ऐसे में धर्मेंद्र यादव चुनाव लड़ सकते हैं, क्योंकि मुलायम सिंह के सीट छोड़ने के बाद साल 2004 में धर्मेंद्र यादव सांसद चुने गए थे. इसके बाद 2014 में मुलायम सिंह ने मैनपुरी सीट छोड़ी तो तेज प्रताप यादव सांसद बने थे. ऐसे में धर्मेंद्र यादव और तेज प्रताप यादव के भी चुनाव लड़ने की संभावना है. 

डिंपल यादव क्या लड़ेंगी चुनाव?
मैनपुरी लोकसभा सीट पर अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव के भी चुनाव लड़ने की संभावना है. कन्नौज सीट से वह 2019 में चुनाव हार गईं, जिसके बाद आजमगढ़ उपचुनाव में उनके लड़ने की चर्चा थी. धर्मेंद्र के उतरने से डिंपल चुनाव नहीं लड़ सकी थी. ऐसे ही पिछले दिनों राज्यसभा के चुनाव में भी डिंपल यादव के चुनाव लड़ने की चर्चा थी, लेकिन जयंत चौधरी के चलते संसद नहीं पहुंच सकी थीं. यही वजह है कि मैनपुरी सीट पर अखिलेश यादव खुद के बजाय अपनी पत्नी डिंपल यादव को चुनाव लड़ा सकते हैं ताकि मुलायम सिंह की सियासी विरासत पर उनका ही कब्जा रहे. 

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शिवपाल भी ठोक सकते हैं ताल 
मुलायम सिंह की मैनपुरी सीट से शिवपाल यादव भी चुनावी मैदान में उतर सकते हैं. मुलायम ने 1996 में जसवंतनगर सीट छोड़ी है, तब से शिवपाल ही विधायक बन रहे हैं. अखिलेश यादव भी चाचा के साथ रिश्ते को सुधारने के लिए मैनपुरी सीट से उन्हें उतार सकते हैं. शिवपाल यादव मैनपुरी सीट से चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं ताकि जसवंतनगर से अपने बेटे को विधायक बना सके. चाचा-भतीजे सारे गिले-शिकवे मुलायम सिंह के श्राद्ध से पहले अगर दूर हो जाते हैं तो मैनपुरी सीट से शिवपाल चुनावी मैदान में उतर सकते हैं. 

सैफई परिवार में सिर्फ शिवपाल यादव ही ऐसे व्यक्ति हैं जो मुलायम सिंह की तरह सभी दलों में संबंध रखते हैं. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर अखिलेश खुद नहीं उतरते तो राष्ट्रीय राजनीति में सपा को प्रासंगिक रखने के लिए राम गोपाल यादव पर निर्भर रहना होगा. शिवपाल के अलावा परिवार में कोई ऐसा नहीं है जो सांसद भले बन जाए, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति और दिल्ली की राजनीति संभाल सके. मुलायम कुनबे के लोकसभा में उपस्थिति के लिए मैनपुरी सीट सपा के लिए काफी अहम हो गई है. 

करीब ढाई दशक बाद संसद में सपा इतनी कमजोर हुई है. लोकसभा व राज्यसभा को मिलाकर अभी सिर्फ पांच ही सदस्य है. इस लिहाज से राष्ट्रीय स्तर पर रुतबा बनाए रखने के लिए सपा को मैनपुरी सीट पर सिर्फ जीतना ही नहीं बल्कि मुलायम परिवार की उपस्थिति को भी दर्ज करानी होगी. ऐसे में देखना है कि मैनपुरी सीट पर मुलायम का सियासी वारिस के तौर पर कौन उतरता है? 

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मैनपुरी लोकसभा सीट का समीकरण
मैनपुरी लोकसभा सीट पर सपा यादव और मुस्लिम समीकरण के सहारे जीत का परचम लगातार फहरा रही है. जातीय आंकड़ों पर निगाह डाले तो मैनपुरी संसदीय सीट पर सर्वाधिक लगभग सवा चार लाख यादव मतदाता हैं. उसके बाद शाक्य मतदाताओं की संख्या करीब तीन लाख है. इसके अलावा ठाकुर दो लाख और ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या एक लाख है. सवा दो लाख दलित मतदाता हैं, जिनमें सबसे अधिक 1.20 लाख जाटव हैं. एक लाख लोधी, 70 हजार वैश्य और एक ही लाख मुस्लिम वोटर हैं.

मैनपुरी में सपा यादव, शाक्य और मुस्लिम मतों के समीकरण पर चुनाव जीतती आई है. बीजेपी इस सीट पर सेंधमारी के लिए हरसंभव कोशिश करती रही, लेकिन मुलायम सिंह के चलते सफल नहीं हो सकी. अब मुलायम नहीं रहे तो सपा के लिए मैनपुरी सीट को बचाए रखना आसान नहीं है.

मैनपुरी संसदीय सीट में पांच विधानसभाएं आती हैं, जिनमें मैनपुरी, भोगांव, किशनी, करहल और जसवंतनगर हैं. करहल से अखिलेश तो जसवंतनगर से शिवपाल और किशनी से सपा विधायक हैं. इस तरह से तीन सीट सपा के पास है तो दो बीजेपी के विधायक हैं. मैनपुरी लोकसभा सीट पर 1989 से मुलायम सिंह का दबदबा कायम रहा. मुलायम खुद जीते या फिर जिसे चाहा है उसे सांसद बनाया है. ऐसे में देखना है कि अखिलेश पिता की तरह अपना सियासी वर्चस्व कैसे कायम रख पाते हैं?

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