
Mulayam Singh Yadav: राम मनोहर लोहिया के समाजवादी विचारधारा से प्रेरित होकर मुलायम सिंह ने यादव ने सियासत में कदम रखा और चौधरी चरण की उंगली पकड़कर आगे बढ़े. यूपी की राजनीति अखाड़े के मंझे खिलाड़ी रहे मुलायम सिंह यादव ने एक से बड़े एक सियासी धुरंधरों को मात देकर सियासी बुलंदी को छुआ, लेकिन बसपा संस्थापक कांशीराम से पार नहीं पा सके. कांशीराम से मिलने के लिए मुलायम सिंह को मुख्यमंत्री रहते हुए चार घंटे तक इंतजार करना पड़ा था और उसी के बाद सपा-बसपा का गठबंधन टूट गया था.
6 दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस के बाद कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था. उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था. मुलायम सिंह यादव अपनी समाजवादी पार्टी का गठन कर चुके थे. बाबरी विध्वंस के चलते बीजेपी के पक्ष में सियासी हवा चल रही थी. विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत लगभग तय मानी जा रही थी, लेकिन मुलायम सिंह ने बसपा के कांशीराम को साथ ले लिया.
1993 के विधानसभा चुनाव में कांशीराम और मुलायम ने गठबंधन कर चुनाव लड़ने का ऐलान किया और मुलायम सिंह के इस मास्टर स्ट्रोक का असर चुनावी नतीजों पर भी दिखा. चुनाव में बीजेपी ने नारा दिया था, 'रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे.' इसके जवाब में सपा-बसपा का नारा था 'मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम'. यूपी की 422 सीटों वाली विधानसभा में सपा-बसपा गठबंधन को 176 सीटें मिली और बीजेपी बहुमत से दूर हो गई. मुलायम सिंह ने अन्य छोटे दलों को साथ मिलाकर सरकार बना ली.
बसपा के समर्थन से सरकार तो बन गई, लेकिन बसपा सरकार में शामिल नहीं हुई. मुलायम सरकार के काम पर मायावती बारीक नजर रखतीं और जब भी उन्हें मौक़ा मिलता, उन्हें सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करने से नहीं चूकतीं. कुछ दिनों बाद कांशीराम ने भी मुलायम सिंह यादव की अवहेलना करनी शुरू कर दी. इसी कड़ी में कांशीराम ने मुलायम सिंह यादव को चार घंटे तक इंतजार कराया था.
उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव रहे टीएस आर सुब्रमण्यम अपनी किताब 'जरनीज थ्रू बाबूडम एंड नेतालैंड' में लिखते हैं, 'एक बार कांशीराम लखनऊ आए और सर्किट हाउस में ठहरे थे. उनसे पहले से समय लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह उनसे मिलने पहुंचे. उस समय कांशीराम अपने राजनीतिक सहयोगियों के साथ मंत्रणा कर रहे थे. कांशीराम के निजी स्टाफ ने मुलायम से कहा कि वो बगल के कमरे में बैठ कर कांशीराम के काम से ख़ाली होने का इंतज़ार करें.'
कांशीराम की अपने सहयोगियों के साथ बैठक दो घंटे तक चली. इसके बाद कांशीराम के सहयोगी बाहर निकले तो मुलायम ने समझा कि अब उन्हें अंदर बुलाया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. एक घंटे बाद जब मुलायम सिंह ने पूछा कि अंदर क्या हो रहा है तो उन्हें बताया गया कि कांशीराम दाढ़ी बना रहे हैं और इसके बाद स्नान करेंगे. मुलायम बाहर इंतजार करते रहे. इस बीच कांशीराम थोड़ा सो भी लिए. इस तरह चार घंटे बाद मुलायम सिंह से मिलने कांशीराम बाहर आए. इस तरह से कांशीराम से उनकी मुलाकात हुई, लेकिन मुलायम कमरे से बाहर निकले तो उनका चेहरा लाल था.
कांशीराम ने उस वक्त ये भी मुनासिब नहीं समझा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को बाहर उनकी कार तक छोड़ने आते. इतना ही नही कांशीराम ने उसी शाम बीजेपी नेता लालजी टंडन से मुलाकात किया था. बसपा की बेचैनी की वजह जिला पंचायक अध्यक्ष के चुनाव थे, जिसमें सपा 56 में से 31 सीटें जीतने में सफल हो गई थी. सत्ता के दम पर सपा को जीत मिली थी और बसपा नहीं जीत सकी थी. इसके अलावा उपचुनाव में सपा चार में तीन विधानसभा सीट जीतने में सफल रही. कांशीराम इसी के चलते मुलायम सिंह से नाराज थे और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने का तानाबना बुनना शुरू कर दिया था.
कांशीराम लखनऊ से वापस दिल्ली आकर एक जून को अपने ब्रेन क्लॉट का इलाज कराने के लिए अस्पताल में भर्ती थे. इस दौरान मायावती उनसे मुलाकात करने गई, जिसके बाद उन्होंने पूछा कि यूपी की मुख्यमंत्री बनना चाहेंगी. इसके पीछे बीजेपी के साथ उन्होंने साठगांठ कर रखी थी. लखनऊ में उसी दिन मुलायम सिंह अपने कार्यलय में थे और उनके पंसदीदा नौकरशाहों में एक पीएल पुनिया ने दरवाजा खटखटाए बिना कमरे में प्रवेश कर गए और मुलायम के कान में फुसफुसाया और उनके ओर एक नोट खिसका दिया. इसके बाद मुलायम सिंह समझ गए थे कि कांशीराम उनसे समर्थन वापस लेना चाहते हैं.
इसके बाद मुलायम सिंह यादव अपने घर के लिए रवाना हो गए और अपने वरिष्ठ नेताओं को बुलाकर बैठक की, जिसके बाद योजना बनी की बसपा विधायकों को अपने खेमे में लाकर राज्यपाल से सामने परेड कराने की तैयारी थी. वहीं, दो जून 1995 को जब मायवती लखनऊ आईं और उन्होंने गेस्ट हाउस में अपने विधायकों की बैठक बुलाई थी. विधानसभा से महज दो किलोमीटर की दूरी पर मायावती बैठक कर रही थी, जहां बसपा विधायकों को बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की रणनीति को मूर्त रूप दे रही थी.
सपा के लोगों को किसी तरह इस बात की जानकारी मिल गई कि बसपा और बीजेपी की सांठ-गांठ हो गई है और वो सपा का दामन छोड़ने वाली है. इसके बाद सपा के नेता वहां पर पहुंच गए और अचानक बाहर भारी हंगामा की आवाज सुनाई दी. बसपा के कुछ नेता जो गेस्ट हाउस के कॉमन रूम में बैठे थे, चेक करने के लिए दौड़ पड़े. इसके बाद चिल्लाने लगे कि सपा के गुंडे ने हमला कर दिया. सपा के लोगों ने गेस्ट हाउस का मुख्य गेट बंद किया लेकिन वह टूटा हुआ था. इसके चलते बसपा के पांच विधायकों को अपने साथ ले गए. ऐसे में मायावती ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था, जिसके बाद बीजेपी के नेताओं ने पहुंच कर उन्हें बचाया.
सपा की तरफ से रमाकांत यादव, राकेश सचान, मुनव्वर चौधरी, अंबिका चौधरी, अतीक अहमद, महबूब अली और मुलायम के करीबी अन्ना शुक्ला जैसे पार्टी के नेता गेस्ट हाउस के बाहर मौजूद थे. मायावती के साथ एक सिकंदर रिज़वी थे. वो जमाना पेजर का हुआ करता था. पेजर पर ये सूचना दी गई थी कि किसी भी हालत में दरवाज़ा मत खोलना. बीजेपी के फर्रुखाबाद विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी, जो बसपा-भाजपा गठजोड़ के पक्ष में थे, उसी गेस्ट हाउस में ठहरे थे. लालजी टंडन से लेकर कलराज मिश्रा तक गेस्ट हाउस पहुंच गए.
स्टेट हाउस कांड के बाद तत्कालीन यूपी के राज्यपाल मोतीलाल वोरा ने केंद्र की पीवी नरसिम्हा राव सरकार को यूपी में 'कानून और व्यवस्था टूटने' की रिपोर्ट भेजी, जिसने राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश को स्वीकार कर लिया और 3 जून को मुलायम की सरकार को उनकी संख्या साबित करने का मौका दिए बिना बर्खास्त कर दिया. अगले रोज बीजेपी के लोग राज्यपाल के पास पहुंच गए थे कि वो बसपा का साथ देंगे सरकार बनाने के लिए. और तब कांशीराम ने मायावती को मुख्यमंत्री पद पर बैठाया.
मुलायम सिंह को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और मायावती बीजेपी के समर्थन से 1995 में पहली बार यूपी की मुख्यमंत्री बनी. इसके बाद ही सपा और बसपा के बीच जो खाई पैदा हुई, उसे दो दशकों से भी अधिक समय तक पाटा नहीं जा सका. हालांकि, सपा-बसपा 2019 के चुनाव में साथ मिलकर लड़ी, लेकिन नब्बे के दशक वाला नतीजा नहीं दोहरा सकी और फिर मायावती ने अखिलेश यादव से नााता तोड़ लिया.