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बुन्देलखंड: डकैतों का दौर खत्म, इस बार बीहड़ों से नहीं तय होगी गांव की सरकार

बुंदेलखंड में कहावत है कि देश आजाद हुआ 1947 में, लेकिन बीहड़ 2007 में आजाद हुआ. दरअसल डकैतों की मदद से चुनाव जीतना या डकैतों की राजनीति में दिलचस्पी 80 के दशक में बढ़ना शुरू हुई.

बुंदेलखंड के चुनाव में डकैतों की चलती थी मर्जी (प्रतीकात्मक तस्वीर) बुंदेलखंड के चुनाव में डकैतों की चलती थी मर्जी (प्रतीकात्मक तस्वीर)
संतोष शर्मा
  • चित्रकूट,
  • 01 अप्रैल 2021,
  • अपडेटेड 11:00 PM IST
  • 27 सालों तक डकैतों की मर्जी से लड़ा गया चुनाव
  • 2007 में सबसे बड़े डकैत ददुआ को एसटीएफ ने मार गिराया था

बुंदेलखंड के बीहड़ वाले जिले- बांदा, चित्रकूट, महोबा, फतेहपुर, इटावा, औरैया और जालौन, ऐसे थे जहां पर 27 सालों तक चुनाव डकैतों की मर्जी से लड़ा गया, डकैतों के कहने पर जीता गया. बुंदेलखंड में कहावत है कि देश आजाद हुआ 1947 में, लेकिन बीहड़ 2007 में आजाद हुआ. दरअसल डकैतों की मदद से चुनाव जीतना या डकैतों की राजनीति में दिलचस्पी 80 के दशक में बढ़ना शुरू हुई. वह फिर चाहे निर्भय गुर्जर हो, सलीम पहलवान, जगजीवन परिहार कुसमा नाइन, राम आसरे उर्फ फक्कड़, ददुआ, अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया या फिर उमर केवट.

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यह जो नाम हैं इनके नाम से आया एक संदेश, गांव की सरकार से लेकर दिल्ली की सरकार को तक चुनता था. गैंग से एक मुखबिर के जरिए 50 से 100 गांव में संदेश दे दिया जाता कि इस बार किसको जिताना है, बीहड़ से निकले इस फरमान के खिलाफ किसी ने बोलने की हिमाकत की तो लाठी-डंडों से पिटाई से लेकर गांव में सबके सामने गोली मारने तक की सजा सुनाई जाती थी.

तमाम बार तो दस्यु सरगना के समर्थित प्रत्याशी निर्विरोध ही चुनाव जीत गए. 80 के दशक से शुरू हुआ यह सिलसिला 90 के दशक में चरम पर पहुंचा. जिसका नतीजा था ददुआ का बेटा जिला पंचायत सदस्य बना, विधायक बना. यही नहीं उसका भाई सांसद तक बन गया. वहीं अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया की मां बहिलपुरवा गांव से प्रधान चुन ली गई. डकैतों के आम लोगों के बीच वर्चस्व को इसी बात से भांपा जा सकता है कि फतेहपुर के धाता ब्लॉक के नरसिंहपुर कबरहा गांव में ददुआ की मूर्ति लगाई गई. करीब 4 पंचायत चुनाव ऐसे हुए जो बुंदेलखंड के बीहड़ों में डकैतों ने तय किए.

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लेकिन अब हालात बदले हैं. 2007 में जब सबसे बड़े डकैत ददुआ को यूपी एसटीएफ ने मार गिराया. 2005 में निर्भय गुर्जर का सफाया किया. 2020 में एसटीएफ ने बबली कोल को मार गिराया. आज बुंदेलखंड के बीहड़ो में गौरी यादव को छोड़कर सभी डकैत या तो मार गिराए गए या फिर सलाखों के पीछे जिंदगी की आखिरी सांसें गिन रहे हैं. डेढ़ लाख के इनामी गौरी यादव पर यूपीएसटीएफ नजर लगाए है. इस पंचायत चुनाव में गौरी यादव सक्रिय है, लेकिन स्थानीय पुलिस और एसटीएफ की टीम भी मुस्तैद है.

पुलिस के साथ डकैतों के सफाए में अहम भूमिका निभाने वाले यूपी पुलिस के पूर्व अधिकारी का कहना है कि आज गौरी यादव को छोड़कर किसी भी डकैत का किसी भी चुनाव में दखल ना के बराबर रह गया है. बीते एक दशक में यूपी पुलिस और एसटीएफ के द्वारा जो कार्रवाई की गई उसने डकैतों को साफ कर दिया और गांव की बनने वाली सरकार गांव वालों के पसंद से चुनी जाने लगी है.

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