
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मिलकर लड़ने वाले सपा प्रमुख अखिलेश यादव और सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर के बीच दोस्ती की खाई गहराती जा रही है. बीजेपी से बगावत कर सपा के साथ आए ओपी राजभर इन दिनों सियासी उलझन में हैं. ऐसे में राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू और विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के बीच शह-मात के खेल में राजभर ने शुक्रवार को अपना पत्ता खोल दिया. अब सवाल उठ रहा है कि क्या राजभर राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू को समर्थन कर बीजेपी के साथ एक बार फिर से ताल से ताल मिलाकर चलेंगे?
ओम प्रकाश राजभर ने राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का ऐलान किया. उन्होंने कहा कि सुभासपा के विधायक राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए को वोट करेंगे. राजभर ने कहा कि मुख्यमंत्री और द्रौपदी ने समर्थन मांगा था, अमित शाह का फोन भी आया था और मेरी उनसे भी मुलाकात हुई. उन्होंने भी द्रौपदी मुर्मू के लिए समर्थन मांगा था.
ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के छह विधायक है और सभी द्रौपदी मुर्मू को समर्थन करेंगे. ऐसे में सुभासपा के विधायक और मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी भी द्रौपदी मुर्मू को वोट करेंगे. राजभर ने कहा कि हमें सीएम योगी ने डिनर पार्टी में बुलाया था, जहां द्रौपदी मुर्मू ने कहा था कि आप कमजोर की लड़ाई लड़ते हो तो आप हमारा समर्थन करें. इसके अलावा 12 जुलाई को अमित शाह ने फोन करके द्रौपदी मुर्मू के लिए समर्थन मांगा था.
अखिलेश यादव पर हमला बोलते हुए राजभर ने कहा कि यशवंत सिन्हा समर्थन में सहयोगी दल के तौर पर जयंत चौधरी को बुलाया जा सकता है तो ओम प्रकाश राजभर को क्यों नही बुलाया जा सकता. उन्होंने कहा कि हम अभी भी गठबंधन में है वो चाहे तो निकाल दें. मैं सिर्फ अपनी पार्टी के नेताओ को जिताने के लिए सीट मांगते है और कुछ नहीं. उनके नवरत्नों में से एक रत्न ने बता दिया था 5 जुलाई को फोन कर कहा की आप अपना देखो हम अपना देखेंगे.
वहीं, राष्ट्रपति चुनाव में सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के द्रौपदी मुर्मू को समर्थन करने के फैसले का बीजेपी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने स्वागत किया है. राकेश त्रिपाठी ने कहा कि द्रौपदी मुर्मू को समर्थन कर ओम प्रकाश राजभर ने शोषित वंचित समाज के हित चिंतक होने का परिचय दिया. अन्य विपक्षी दल भी समर्थन के लिए करें पुनर्विचार, क्योंकि आजादी के बाद पहला मौका जब देश को पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति मिल सकेंगी.
बता दें कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को समर्थन कर रहे हैं. वहीं, सुभासपा चीफ ओम प्रकाश राजभर ने गुरुवार को अपने विधायकों के साथ बैठक कर राष्ट्रपति चुनाव को लेकर उनसे राय जानी. विधायकों ने कहा कि जो भी हमसे वोट मांग रहे हैं, उन्हें ही दिया जाए. विधायकों ने अंतिम निर्णय ओम प्रकाश राजभर पर छोड़ दिया है. ऐसे में अब शुक्रवार को राजभर प्रेस कॉफ्रेंस कर अपनी पार्टी की मंशा जाहिर कर दी है और सपा को बड़ा झटका दिया है.
बता दें कि आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा को मिली हार के बाद से अखिलेश-राजभर के रिश्तो में दरार आ गई थी. उस समय राजभर ने अखिलेश को एसी कमरे से बाहर निकलकर राजनीति करने की सलाह दी थी. अखिलेश ने भी पलटवार करते हुए कहा था कि उन्हें किसी की सलाह की जरूरत नहीं है. इतना ही नहीं, उन्होंने कहा कि राजनीति में आजकल पता नहीं कौन-कहां से ऑपरेट हो रहा है. इस पर भी राजभर ने जवाबी हमला बोलते हुए कहा था कि सत्य कड़वा होता है.
सपा-सुभासपा गठबंधन में दरार उस समय और बढ़ गई थी, जब राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के साझा प्रत्याशी यशवंत सिन्हा के लिए बुलाई बैठक में अखिलेश यादव ने ओम प्रकाश राजभर को निमंत्रण नहीं दिया. वहीं, राजभर ने कहा था कि राष्ट्रपति चुनाव में अपनी भूमिका अलग रहकर ही तय करेंगे. ऐसे में एनडीए प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू के सम्मान में मुख्यमंत्री आवास पर आयोजित रात्रि भोज में राजभर और शिवपाल यादव शामिल हो गए थे. इसके बाद राजभर ने अखिलेश से मिलने का समय मांगा था, पर उन्होंने समय नहीं दिया. यही वजह है राजभर अब नई सियासी राह तलाश रहे हैं.
अखिलेश यादव के साथ ओम प्रकाश राजभर के रिश्ते इस कदर खराब हैं कि अब आगे दोनों का साथ चलना मुश्किल है. ऐसे में राजभर इस कवायद में हैं कि सपा से उनका गठबंधन अखिलेश यादव की तरफ से टूटे ताकि उन पर गठबंधन तोड़ने के आरोप न लगें. ऐसे में राजभर राष्ट्रपति चुनाव के बहाने बीजेपी गठबंधन में वापसी की पठकथा लिखने की कवायद कर रहे हैं.
दरअसल, राजभर की बेचैनी आजमगढ़ उपचुनाव में बीजेपी के जीत के बाद उभरी है, क्योंकि सपा के दुर्ग में कमल खिलने से राजभर को लग रहा है कि ऐसे ही सपा का प्रदर्शन रहा तो उनका सियासी भविष्य क्या होगा. यही वजह है कि राजभर नए तरीके से सियासी पलटी मारने की तैयारी में है. राजभर और सपा के बीच गठबंधन टूटता है और राजभर फिर से बीजेपी के साथ आते हैं तो पूर्वांचल के इलाके में बीजेपी को टक्कर देना अखिलेश यादव के लिए काफी मुश्किल होगा.
सूबे में एक तरफ विपक्षी दल अखिलेश यादव के खिलाफ जबरदस्त तरीके से सियासी चक्रव्यूह रच रहे हैं तो दूसरी तरफ सहयोगी दल छिटक रहे हैं. यूपी विधानसभा चुनाव के बाद महान दल ने सपा गठबंधन से सबसे पहले नाता तोड़ा है तो अब ओपी राजभर अलग होने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि हर चुनाव के बाद सहयोगी दलों के साथ सपा के रिश्ते क्यों बिगड़ जाते हैं तो राजभर बीजेपी में वापसी की कवायद में है. ऐसे में राष्ट्रपति का चुनाव उनके लिए एक उम्मीद लेकर आया है. देखते हैं कि यूपी की सियासत में क्या समीकरण बनते हैं?