
राज्यसभा चुनाव के लिए यूपी से बीजेपी के 8 प्रत्याशियों ने नामांकन कर दिया है. इसमें डॉ लक्ष्मीकांत बाजपेयी, डॉ राधामोहन दास अग्रवाल, बाबू राम निषाद, दर्शना सिंह, संगीता यादव, मिथिलेश कुमार, डॉ के लक्ष्मण और वर्तमान में राज्यसभा सदस्य सुरेंद्र सिंह नागर पार्टी को मौका दिया गया है. इन सभी चेहरों को चुनने के पीछे बीजेपी की एक बड़ी रणनीति मानी जा रही है. कहा जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भी पार्टी ने जातीय संतुलन साधने का पूरा प्रयास किया है.
अगर प्रत्याशियों के जातीय समीकरणों पर नज़र डालें तो एक ब्राह्मण चेहरा लक्ष्मीकांत वाजपेयी के रूप में शामिल किया गया है. लक्ष्मीकांत वाजपेयी के साथ ख़ास बात ये है कि वे मेरठ (पश्चिमी यूपी) के रहने वाले हैं. लेकिन सिर्फ़ ब्राह्मण चेहरा होना ही ख़ास बात नहीं है बल्कि पार्टी ने उनके पिछले काम को भी देखा है. लक्ष्मीकांत वाजपेयी के प्रदेश अध्यक्ष रहते ही बीजेपी ने 2014 का विधानसभा चुनाव जीता था. इस विधानसभा चुनाव में लक्ष्मीकांत वाजपेयी को जॉइनिंग कमेटी का इंचार्ज बनाया गया. उन्होंने मुलायम परिवार की बहू अपर्णा यादव, साढ़ू प्रमोद गुप्ता, रायबरेली की कांग्रेस विधायक अदिति सिंह समेत सपा के कई जैन प्रतिनिधियों को भी पार्टी में शामिल कर अपनी उपयोगिता बतायी.
राज्यसभा के लिए पार्टी की सूची में एक अन्य सवर्ण नाम डॉ राधा मोहन दास अग्रवाल का है. वहीं वैश्य अग्रवाल को सीएम के लिए अपनी विधानसभा सीट छोड़ने का इनाम मिला है. हालांकि पिछले साल बीजेपी में शामिल होने वाले नरेश अग्रवाल की उम्मीदवारी को लेकर चर्चा थी, पर एक ही जाति के होने के कारण ये कहा जा रहा है कि राधा मोहन दास पार्टी की स्वाभाविक पसंद हैं. राधा मोहन दास के रूप में पार्टी ने एक पढ़ा लिखा चेहरा और कैडर का नेता राज्यसभा भेजने का फ़ैसला किया.
इन दो सवर्ण चेहरों के अलावा दर्शना सिंह भी राज्यसभा के लिए एक सवर्ण चेहरा हैं. क्षत्रिय दर्शना सिंह यूपी बीजेपी महिला मोर्चा की अध्यक्ष रही हैं और चंदौली ज़िले की रहने वाली हैं. पार्टी ने आधी आबादी को साधने के लिए एक पढ़े लिखे चेहरे के तौर कर उनको उतारा है.
एक ब्राह्मण, एक ठाकुर, एक वैश्य के अलावा बाक़ी सभी चेहरे ऐसे हैं जो बीजेपी के ओबीसी और दलित एजेंडे को मज़बूत करते हैं. संगीता यादव पूर्व विधायक हैं और इस चुनाव में उनका टिकट काट दिया गया था. ऐसे में उनको राज्यसभा भेजकर पार्टी ने यादव और महिला दोनों ही समीकरण एक साथ साधने की कोशिश की है. पार्टी जहां ग़ैर यादव ओबीसी को आगे बढ़ा रही है, वहीं यादव को भी ये संकेत दे रही है है कि बीजेपी उनके लिए भी हितैषी है.
अंतिम समय पर के लक्ष्मण के नाम ने सभी को चौंका दिया पर उन्होंने ये साफ़ कहा कि उनके पास गृह मंत्री अमित शाह का कल फ़ोन आया कि यूपी से राज्य सभा के लिए नामांकन करना है. के लक्ष्मण तेलंगाना के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं और अभी पार्टी के ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. उनको यूपी से प्रत्याशी बनाकर पार्टी ने OBC चेहरे के रूप में तो उनको प्रोजेक्ट किया ही है, साथ ही एक भारत का संदेश भी दिया है.
एक और नाम जिसने अंतिम समय पर सभी को चौंकाया वो शाहजहांपुर के पूर्व सांसद और पुवायां सीट से विधायक रहे मिथिलेश कुमार का है. मिथिलेश कुमार इस सूची में एकमात्र दलित नाम हैं. ख़ास बात ये है कि वे जाटव बिरादरी से हैं जो मायावती का ख़ास वोट बैंक माना जाता है. मिथिलेश कुमार निर्दलीय विधायक भी रह चुके हैं. जो सेंट्रल यूपी के क्षेत्र में अपनी सजातीय वोट पर उनकी पकड़ को बताता है.
बाबू राम निषाद यूपी OBC वित्त विकास निगम के अध्यक्ष हैं. निषाद जाति को साधने के लिए बाबूराम को प्रत्याशी बनाया गया है. इसके साथ ही बाबूराम पार्टी कैडर से जुड़े हैं और बुंदेलखंड के हमीरपुर के रहने वाले हैं. पार्टी में बुंदेलखंड के क्षेत्रीय अध्यक्ष और प्रदेश उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं. ज़ाहिर है पार्टी ने जातियों का संतुलन साधने की कोशिश तो की ही है, साथ ही पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी संदेश देने की कोशिश की है.
इसके अलावा पार्टी ने पश्चिमी यूपी के बड़े गुर्जर चेहरे पर फिर से दांव लगाया है. इसकी वजह पार्टी को पश्चिमी यूपी में न सिर्फ़ मज़बूती मिलना है बल्कि जाट समुदाय के स्वाभाविक प्रतिद्वंदी गुर्जर समाज को एक संदेश देना भी है. सांसद सुरेंद्र नागर समाजवादी पार्टी में भी रहे हैं और पश्चिमी यूपी की सियासी ज़मीन को सही तरह समझते हैं. नामांकन के बाद उन्होंने बातचीत में ये कहा कि वो 2024 के लिए वहां काम करेंगे.