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अयोध्या मुद्दे पर श्री श्री के बयान को कांग्रेस ने बताया दुर्भाग्यपूर्ण

श्री श्री रविशंकर ने कहा कि अगर अयोध्या मसला नहीं सुलझा तो भारत का हाल भी सीरिया जैसा हो सकता है. इस पर कांग्रेस नेता पीएल पुनिया ने कहा है कि उनका ये बयान दुर्भाग्यपूर्ण है.

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कुमार विक्रांत
  • नई दिल्ली,
  • 05 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 3:10 PM IST

अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा एक बार गरमाता जा रहा है. इस मामले में मध्यस्थता कर रहे श्रीश्री रविशंकर के दिए गए बयान से राजनीतिक हंगामा कर गया है. श्री श्री रविशंकर ने कहा कि अगर अयोध्या मसला नहीं सुलझा तो भारत का हाल भी सीरिया जैसा हो सकता है. इस पर कांग्रेस नेता पीएल पुनिया ने कहा है कि उनका ये बयान दुर्भाग्यपूर्ण है.

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पीएल पुनिया ने कहा कि श्रीश्री रविशंकर सम्मानित व्यक्ति हैं, तभी उन्होंने मध्यस्थता की शुरुआत की. लेकिन अदालत में मुकदमे के एक पक्ष इसके लिए तैयार नहीं. मध्यस्थता से हल निकला नहीं, ऐसे में उनके मुख से सिविल वार जैसे शब्दों का प्रयोग दुर्भाग्यपूर्ण है.

मुस्लिम महिलाएं करेंगी राम लला के दर्शन

इस बीच अयोध्या में मुस्लिम महिलाएं मंगलवार को राम लला के दर्शन कर सकती हैं. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की अगुवाई में मंगलवार को अयोध्या में मुस्लिम महिलाओं का सम्मेलन किया जा रहा है, ये महिलाएं राम मंदिर निर्माण का समर्थन कर रही हैं. इस सम्मेलन में राज्य के वक्फ मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी भी शामिल हो सकते हैं.

क्या था श्री श्री रविशंकर का बयान

आपको बता दें कि सोमवार को आजतक से खास बातचीत करते हुए श्रीश्री रविशंकर ने बयान दिया कि अगर अयोध्या का विवाद नहीं सुलझा तो देश सीरिया बन जाएगा. ऑर्ट ऑफ लिविंग के प्रमुख श्री श्री रविशंकर पहले भी अयोध्या विवाद को कोर्ट के बाहर ही सुलझाने की वकालत करते रहे हैं और सोमवार को उन्होंने फिर इसी बात पर जोर दिया कि अयोध्या में राममंदिर मुद्दे को कोर्ट से बाहर ही सुलझाया जाना चाहिए.

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उन्होंने कहा, 'यह मामला नहीं सुलझा तो देश सीरिया बन जाएगा. अयोध्या मुस्लिमों का धार्मिक स्थल नहीं है. उन्हें इस धार्मिक स्थल पर अपना दावा छोड़ कर मिसाल पेश करनी चाहिए.'

सुप्रीम कोर्ट में जारी है सुनवाई

गौरतलब है कि अयोध्या विवाद अभी सुप्रीम कोर्ट में है. इस मसले पर आखिरी सुनवाई 8 फरवरी को हुई थी. कोर्ट ने सभी पक्षों को कागजी कार्रवाई पूरी करने को कहा था.  मामले की अगली सुनवाई 14 मार्च को होगी. सुप्रीम कोर्ट ने साफतौर पर निर्देश दिया कि वह इस मामले की सुनवाई एक जमीनी विवाद के तौर पर ही करेंगे, किसी भी धार्मिक भावना और राजनीतिक दबाव में सुनवाई को नहीं सुना जाएगा.

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