
जिदंगी में कई बार ऐसे हालात बन जाते हैं कि इंसान खुद से पहले दूसरों की मदद के बारे में सोचने लगता है. बरेली (उत्तर प्रदेश) की रहने वाली रेखा रानी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है जिन्होंने अपने एक साल के बच्चे की हीमोफीलिया बीमारी के दर्द को महसूस किया. इसके बाद ठान लिया कि उन्हें इस बीमारी से प्रभावित मरीजों की मदद करनी है. रेखा आज सैकड़ों मरीजों के लिए मदद का जरिया बन चुकी हैं.
रेखा का जीवन मानो हीमोफीलिया बीमारी की जानकारी जुटाने और अपने को बचाने के संघर्ष में गुजरा, लेकिन इस साहसी महिला ने तय किया कि वह किसी और को इससे जूझने नहीं देंगी. अब उनकी ही वजह से पूरे बरेली जनपद समेत सूबे के 20 से ज्यादा जिलों में इस बीमारी के इंजेक्शन, दवाई और स्वास्थ्य सेवाएं मरीजों को फ्री में उपलब्ध करवाई जाती हैं.
वह कहती हैं कि पहले इस बीमारी के बारे में लोगों पता ही नहीं चल पाता था. यहां न जांच होती थी और न दवाई मिलती थी, पर अब माहौल बदल चुका है. हमारी कोशिश की वजह से अब यहां हर किसी का मुफ्त इलाज होता है.
रेखा कहती हैं कि उनके एक साल के बेटे मानस (अब 17 साल) हीमोफीलिया की बीमारी से पीड़ित हो गया था. उस समय बरेली में इसका इलाज नहीं होता था. उन्हें इलाज के लिए दिल्ली, लखनऊ जाना पड़ता था. उस भागदौड़ के साथ इस बीमारी ने उनके बेटे को जो दर्द और तकलीफें दीं, उन्हें महसूस कर एक मां में ऐसी बीमारी से जुड़े लोगों की मदद करने का जज्बा जगा. बस, यही जिद उनकी आज जुनून बन गई.
बरेली जिला अस्पताल के सीएमओ कहते हैं, रेखा रानी की वजह से हीमोफीलिया की पहचान जल्द हो जाती है. उनका इलाज कराने में रेखा रानी एक महत्वपूर्ण रोल अदा करती हैं. रेखा रानी के प्रयास की वजह से ही आज जिला अस्पताल में एक अलग वार्ड और डॉक्टर्स केवल इस बीमारी के मरीजों के इलाज लिए मौजूद रहते हैं.
असल में हीमोफीलिया बीमारी से पीड़ित लोगों में जोड़ों में सूजन आ जाती है. इससे रक्तस्राव भी होने लगता है. खून का रिसाव अगर रोका नहीं गया तो मरीज की जान भी जा सकती है. यह ऐसी बीमारी है जो पूरे जीवनभर रहती है.