
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव जातीय आधार वाले छोटे दलों के साथ मिलकर बीजेपी को भले ही विधानसभा चुनाव में मात देकर सत्ता में वापसी न कर सके हों, लेकिन कांटे की टक्कर देने में जरूर सफल रहे थे. सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के प्रभाव वाले पूर्वांचल के कई जिलों में बीजेपी अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी तो महान दल के साथ सपा का हाथ मिलाना रुहेलखंड में सफल रहा था, लेकिन अब सपा गठबंधन में दरारें पड़ने लगी हैं.
अखिलेश यादव ने आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी को अपने कोटे से राज्यसभा भेजकर तो साध लिया है. वहीं, विधान परिषद चुनाव में सपा ने बीजेपी छोड़कर सपा में आने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य और पार्टी के दिग्गज नेता आजम खान को साधने के चक्कर में अखिलेश ने ओम प्रकाश राजभर और महान दल के केशव देव मौर्य को नाराज कर दिया है. केशव देव मौर्य ने तो सपा गठबंधन से खुद को अलग कर लिया है और राजभर खेमे से बगावती सुर उठने लगे हैं.
सपा के चार एमएलसी उम्मीदवार
यूपी विधान परिषद चुनाव के लिए बुधवार को सपा के चार उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया. इनमें बीजेपी से सपा में आए स्वामी प्रसाद मौर्य और कांग्रेस से सपा में आए जासमीर अंसारी शामिल हैं. इसके अलावा अखिलेश के लिए करहल सीट छोड़ने वाले पूर्व विधायक सोबरन सिंह यादव के पुत्र मुकुल यादव और आजम खान के करीबी शाहनवाज खान शब्बू को एमएलसी का कैंडिडेट बनाया गया है.
बता दें कि उत्तर प्रदेश में विधान परिषद की 13 सीटों के लिए हो रहे चुनाव में बीजेपी को नौ और सपा को चार सीटें मिलनी तय हैं. सपा में कई दिनों से एमएलसी प्रत्याशियों के नाम को लेकर रस्साकशी चल रही थी, क्योंकि पार्टी से लेकर सहयोगी दल तक विधान परिषद के लिए दावेदारी कर रहे थे. इसकी एक वजह यह रही कि जयंत चौधरी को राज्यसभा सीट मिलने के बाद सपा कोटे से ओम प्रकाश राजभर भी अपने बेटे के लिए एक एमएलसी सीट की उम्मीद लगाए हुए थे.
ओपी राजभर के अरमानों पर फिरा पानी
ओम प्रकाश राजभर के अरमानों पर पानी तब फिर गया जब सपा ने विधायक आजम खान को साधने के लिए उनके करीबी शाहनवाज खान शब्बू सहित दो मुस्लिम समुदाय के प्रत्याशी को विधान परिषद भेजने का फैसला किया. सपा की दो मुस्लिम कैंडिडेट को उच्च सदन भेजने की रणनीति ने सहयोगी दल के समीकरण को बिगाड़ दिया. इसी के चलते ओपी राजभर को एमएलसी सीट नहीं मिल सकी. स्वामी प्रसाद मौर्य को सपा में सियासी अहमियत देने से महान दल के प्रमुख केशव देव मौर्य ने नाता ही तोड़ लिया है.
सपा के चारों एमएलसी कैंडिडेट के नामांकन बाद सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने भले ही खुलकर कोई बात नहीं की हो, लेकिन उनके बेटे और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अरुण राजभर ने नाराजगी व्यक्त की है. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि भागीदारी देने की बात सिर्फ जुबां तक सीमित रखने से जनता उनको सीमित कर देती है. जो मेहनत करे, ताकत दे, उनको नजर अंदाज करो और जो सिर्फ बात करे उसको आगे बढ़ाओ, यह आगे के लिए हानिकारक है.
सुभासपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता पीयूष मिश्रा ने कहा, 'अखिलेश यादव का आज का फैसला निश्चित ही सुभासपा कार्यकर्ताओं को निराश करने वाला है. एक सहयोगी 38 सीट लड़कर आठ सीट जीतती है तो उन्हें राज्यसभा, हमें वहां कोई एतराज नहीं है. हम 16 सीट लड़कर छह जीतते हैं तो हमारी उपेक्षा ऐसा क्यों?'
महान दल ने सपा गठबंधन से तोड़ा नाता
वहीं, एमएलसी सीट न मिलने और स्वामी प्रसाद मौर्य को विधान परिषद भेजे जाने से नाराज महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य ने तो बड़ा फैसला ले लिया है. महान दल ने तो सपा गठबंधन से खुद को अलग कर लिया है. केशव देव मौर्य ने कहा कि दवाब डालने वालों नेताओं को अखिलेश यादव विधान परिषद और राज्यसभा भेज रहे हैं. अखिलेश चाटुकारों से घिरे हैं. उन्हें अब मेरी जरूरत नहीं है. लिहाजा वह गठबंधन तोड़ने का फैसला ले रहे हैं.
हालांकि, महान दल के प्रमुख केशव देव मौर्य उसी दिन से सपा से नाराज है, जिस दिन अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य को पार्टी में लिया था. वहीं, अब सपा ने स्वामी प्रसाद मौर्य को एमएलसी प्रत्याशी बनाया है, जिसके चलते केशव देव मौर्य के विधान परिषद पहुंचने के अरमानों पर पानी फिर गया. महान दल ने सपा के साथ गठबंधन कर 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ा था.
महान दल को सपा ने विधानसभा में दो सीटें दी थीं, जिनमें से एक सीट पर केशव मौर्य ने अपनी पत्नी को लड़ाया था और दूसरी सीट पर अपने बेटे को. हालांकि, दोनों ही सीटों पर उन्हें हार मिली थी. ऐसे में केशव देव मौर्य खुद के लिए एमएलसी बनने का सपना संजोय रखा था, लेकिन अखिलेश यादव ने उनकी जगह स्वामी प्रसाद को सियासी तवज्जो देने की रणनीति अपनाई. इसीलिए अब महान दल ने अपनी अलग सियासी राह तलाश ली है, जिससे सपा को खासकर रुहेलखंड और बृज के क्षेत्र में सियासी झटका लग सकता है.
पूर्वांचल में राजभर-अखिलेश की जोड़ी सफल रही
वहीं, अखिलेश और राजभर की जोड़ी ने पूर्वांचल में सपा गठबंधन के लिए संजीवनी साबित हुई थी. आजमगढ़ और गाजीपुर में बीजेपी का खाता ही नहीं खुला. मऊ जिले में एक सीट पर कमल खिला और तीन सीट पर सपा-सुभासपा गठबंधन को सफलता मिली. जौनपुर में सपा-सुभासपा गठबंधन पांच और बलिया जिले में तीन विधानसभा सीट जीतने में सफल रहा. इस तरह से राजभर के साथ मिलकर सपा ने पूर्वांचल में बीजेपी के लिए सियासी तौर पर काफी नुकसान पहुंचाया था. राजभर ने कहा कि जहां-जहां हम काम करते हैं, वहां-वहां गठबंधन ने भारी जीत हासिल की है.
एमएलसी सीट न मिलन से महान दल ने तो सपा से गठबंधन तोड़ लिया है और ओम प्रकाश राजभर का खेमा फिलहाल नाराज दिख रहा है. वहीं, अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव पहले से ही बगावत का झंडा उठाए हुए हैं और निकाय चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया है. ऐसे में ओपी राजभर भी अगर सियासी पलटी मारते हैं तो 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा के लिए पूर्वांचल में चुनौती खड़ी हो सकती है. ऐसे में देखना है कि अखिलेश यादव कैसे डैमेज कंट्रोल करते हैं?