
यूपी के यादव परिवार में नई और पुरानी पीढ़ी की जंग एक बार फिर सतह पर आई है. इस बार ज्यादा बढ़कर और खुलकर सामने आई है. विधानसभा चुनाव 2012 के बाद ही खुद सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने तय कर लिया था कि वह विरासत अखिलेश को सौंपेंगे. इसके माहौल बनाने की जिम्मेदारी अखिलेश के चाचा रामगोपाल यादव पर आई.
आखिर मुलायम जानते थे कि यही मौका है जब पूरा बहुमत मिलने पर वो अखिलेश को सीएम की कुर्सी सौंप दें, लेकिन ये सब बिना किसी विवाद के हो. इसलिए अखिलेश के नाम की पैरवी भी रामगोपाल ने की. वैसे भी उस वक्त अमर सिंह की विदाई के बाद रामगोपाल दिल्ली में सपा की राजनीति के केंद्र थे.
अखिलेश को फ्री हैंड देने की बड़ी तैयारी
मुलायम ने तभी तय कर लिया कि अपने वक्त के साथियों को आहिस्ता-आहिस्ता लखनऊ से सम्मान के साथ दिल्ली भेज दिया जाए, जिससे अखिलेश को फ्री हैंड मिल जाएगा. हालांकि, उस वक्त परिवार से तो कोई आवाज उठी नहीं, पर आजम खान ने मुलायम सिंह को मुख्यमंत्री बनाए जाने की जिद पकड़ ली. तब भी मुलायम ने रामगोपाल की बात पर वीटो लगाया और अपने टीपू को सुल्तान बना दिया. इसके बाद मुलायम ने मौका मिलने पर अपने पुराने साथियों को धीरे-धीरे राज्यसभा में भेजना शुरू कर दिया, जिससे अखिलेश के यूपी में कोई दखल ना दे पाए.
पुराने साथियों को राज्यसभा भेजा
नरेश अग्रवाल, दर्शन सिंह यादव, पारसनाथ यादव और रेवती रमण सिंह जैसे मुलायम के पुराने साथियों को राज्यसभा की सीट थमा दी गई. कोशिश यही रही कि साथियों का सम्मान भी रहे और अखिलेश की राह में रोड़ा भी ना रहे. यहां तक कि बेनी प्रसाद वर्मा की पार्टी में इसी शर्त पर वापसी हुई कि वो अखिलेश सरकार के काम-काज में दखल नहीं देंगे. बाद उनको भी राज्यसभा का सांसद बनाया गया.
खामोश हो गए अमर सिंह
इसके बाद बारी आई अमर सिंह की. तमाम जद्दोजहद के बाद अमर सिंह की भी पार्टी में वापसी हुई, जिसका रामगोपाल के जरिए अखिलेश ने विरोध किया. तब मुलायम ने अमर सिंह को दो टूक बता दिया कि आप राज्यसभा लीजिए और दिल्ली में मेरे लिए राजनीति करिए, पर यूपी सरकार की तरफ जरा भी मत देखिए. यही वजह रही कि मुलायम के सीएम रहते पूरे प्रदेश की सरकार में पूरा दखल रखने वाले अमर सिंह अबकी बार खामोश रहे.
मुस्लिम वोटों की वजह से बचे आजम खान
जाहिर सी बात थी कि अब मुलायम को अखिलेश की राह में भविष्य के लिहाज से दो ही रोड़े दिख रहे थे. पहला आजम खान और दूसरे शिवपाल यादव. मुलायम आजम खान को भी राज्यसभा भेजना चाहते थे, लेकिन अमर सिंह की सपा में वापसी का विरोध करने वाले आजम की पत्नी को राज्यसभा देने पर मजबूर हो गए. साथ ही वह चुनावों में सपा के सबसे बड़े मुस्लिम चेहरों को एक हद से ज्यादा नाराज नहीं करना चाहते थे. इसलिए आजम बच गए.
शिवपाल के पर कतरने की कोशिश
फिर बारी आई शिवपाल के पर कतरने की. पहले कौमी एकता दल के विलय का मामला आया, जिसमें अखिलेश के रुख ने शिवपाल के कद पर चोट की. किसी तरह मामला सुलझा ही था कि शिवपाल ने पलटवार करते हुए कहा कि विलय जल्दी होगा. मुलायम सिंह से बात करके ही मैं ये सब करता रहा हूं. बस यहीं अखिलेश को मौका मिल गया. पहले शिवपाल के करीबी दो मंत्रियों को बर्खास्त किया, फिर शिवपाल के सारे अहम विभाग छीन लिए. यहां तक कि शिवपाल और अमर सिंह के करीबी मुख्य सचिव दीपक सिंघल को भी अखिलेश ने आनन-फानन में हटा दिया.
अखिलेश से मिलने लखनऊ जाएंगे रामगोपाल
अखिलेश चाहते रहे हैं कि शिवपाल की सरकार में दखलंदाजी कम हो. तब एक तरफ मुलायम ने शिवपाल को अखिलेश की जगह प्रदेश अध्यक्ष पद थमाया. दूसरी तरफ शिवपाल से अहम विभाग छीनकर अखिलेश ने शिवपाल को मजबूर कर दिया कि वो सरकार से इस्तीफा दें. नाराज शिवपाल ने इस्तीफे की धमकी भी दे दी. इसके बाद शिवपाल दिल्ली आकर मुलायम से मिले. रामगोपाल लखनऊ जाकर अखिलेश से संपर्क करेंगे.
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अखिलेश की छवि पर हो चुनाव
मुलायम जानते हैं कि यूपी संगठन में शिवपाल की अच्छी पकड़ है. इसलिए वो शिवपाल को साधने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं अखिलेश चाहते हैं कि सिर्फ उनके हिसाब से और उनकी छवि पर चुनाव हो. इसकी कोशिश में वो जुटे हैं.
अमर सिंह बोले- बच्चा जवान हो गया है
ये बात शिवपाल और आजम को मुलायम कैसे समझाएंगे, ये तो यादव परिवार जाने. लेकिन शायद अमर सिंह इसको समझ गए हैं. इसीलिए कभी शिवपाल के खैर-ख्वाह माने जाने वाले अमर ने रुख भांपते हुए 'आज तक' से कहा कि मैंने अखिलेश के खिलाफ कुछ दिन पहले जो रोष जताया, वो भी गलत था. हम सभी पुराने लोगों को ये मानना होगा कि अखिलेश हमारे सामने खेलने वाला बच्चा नहीं है, बल्कि यूपी के करोड़ों लोगों का मुख्य अभिभावक है. बच्चा जवान हो गया है. ये बात अखिलेश के शिवपाल चाचा और अमर अंकल को समझनी चाहिए. अमर सिंह ने तो यहां तक कहा कि मैं समाजवादी नहीं मुलायमवादी हूं, साथ ही मुलायमपुत्रवादी भी हूं.