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उत्तर प्रदेश के नए पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) सुलखान सिंह के हर तरफ चर्चे हैं. किसी विवाद के चलते नहीं बल्कि उनकी सादगी, कर्मठता और ईमानदारी की वजह से. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सुलखान सिंह को यूपी का डीजीपी बना कर एक साथ कई संदेश दिए हैं.
इससे जहां ईमानदारी से काम करने वाले अधिकारियों का मनोबल बढ़ा है वहीं रसूखदार नेताओं से जुगाड़ के दम पर अपने हित साधने वाले अफसरों में बेचैनी है. पुलिस फोर्स में सबसे सीनियर होने के बावजूद सुलखान सिंह का नाम खाकी वर्दी की टॉप पोस्ट के लिए आगे नहीं था, लेकिन योगी ने उनके नाम पर मुहर लगाकर सभी को चौंकाया. सेनापति के तौर पर यूपी पुलिस की कमान सुलखान सिंह के हाथ में आने के बाद भ्रष्ट अफसरों के चेहरे सबसे ज्यादा लटके हुए हैं.
आखिर क्या है सुलखान सिंह की खासियत? क्या है उनके आदर्श? जानिए सुलखान सिंह की कहानी उन्हीं की जुबानी. उनके बारे में वो 5 बातें जो आप शायद नहीं जानते होंगे.
1. ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी:
सुलखान सिंह अपनी ड्यूटी के 36 साल के कार्यकाल में जहां-जहां भी तैनात रहे, वहां सब जगह उनकी ईमानदारी की कसीदे पढ़े जाते हैं.
सुलखान सिंह : ईमानदारी किसी के रास्ते का रोड़ा नहीं है. जो बेईमान हैं परेशानी तो उन्हें उठानी पड़ती है. ईमानदार आदमी को कोई डिफेंस तैयार नहीं करना पड़ता. ये तो जो बेईमान है उनको इस तरह की तैयारी की जरूरत पड़ती है. इसलिए मैं हमेशा मानता हूं कि ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी!
2. साधारण परिवार, असाधारण व्यक्तित्व:
सुलखान सिंह की पारिवारिक पृष्ठभूमि बहुत साधारण है. बांदा में इनका 3 कमरे का कच्चा मकान है, जहां उनके बूढ़े माता पिता और भाई रहते हैं. सुलखान सिंह लखनऊ में एलडीए के 3 कमरे के फ्लैट में रहते है.
सुलखान सिंह : मैं हर चार महीने में बांदा जाता हूं. कभी-कभी माता-पिता भी यहां आते है, पर उनको लखनऊ की जगह बांदा में रहना ही ज्यादा रास आता है. यहां लखनऊ का घर किश्तों में लिया है जो अभी पूरी नहीं हुई हैं.
3. चुनौतियों के सामने अडिग:
सुलखान सिंह वाराणसी हो या इलाहाबाद या फिर उन्नाव, जहां भी रहे अपनी अलग छाप छोड़ने में सफल रहे. चाहे 1984 में वाराणसी का छात्र आंदोलन था या फिर समाजादी पार्टी सरकार के दौरान पनिशमेंट पोस्टिंग के तौर पर उन्नाव ट्रेनिंग
सेंटर में तैनाती. सुलखान सिंह का व्यक्तित्व हर चुनौती में और निखरा.
सुलखान सिंह : ये सच है की 2012 में मुझे जब उन्नाव ट्रेनिंग सेंटर ट्रांसफर किया गया तो मैं आहत हुआ था. वहां डीआइजी लेवल का अफसर नियुक्त होता है और मैं इसके लिए सीनियर था. मैंने विरोध भी किया पर मेरी सुनवाई नहीं हुई. इसके बावजूद तीन साल के कार्यकाल में ट्रेनिंग सेंटर में ऐसा काम किया कि भारत सरकार की तरफ से मुझे 'एक्सलेन्स इन ट्रेनिंग' का मेडल मिला.
4. बचपन की यादें और रामचरित मानस:
सुलखान सिंह चार भाई है और उनके पिता एक किसान हैं. उनके पास महज 2.3 बीघा जमीन है. सुलखान सिंह और उनके भाइयों की स्कूली शिक्षा बांदा में ही हुई.
सुलखान सिंह: हमारे परिवार में हमारी पीढ़ी फॉर्मल एजुकेशन में पहली है. हमारे पिताजी सिर्फ एक-दो साल ही स्कूल गए. उनका पूरा ज्ञान रामायण और महाभारत का है. उन्हीं से हमने रामचरितमानस का पूरा पाठ सीखा. हमारे माता पिता ने हमेशा प्रोत्साहन दिया. पिताजी थोड़ा रोक-टोक करते थे मगर उनको पूरा भरोसा था. भगवान की कृपा से सब कुछ ठीक हुआ.
5. सादा जीवन, उच्च विचार:
सुलखान सिंह की सादगी के चलते उनके बैचमेट उनको योगी कहते थे. बांदा में उन्हें सुबह उठकर योग करते अक्सर देखा जाता था.
सुलखान सिंह: मुख्यमंत्री संन्यासी व्यक्ति हैं और मेरी उनसे तुलना नहीं है. ये सही है मैं योग करता हूं और ट्रेनिंग के सिलेबस में भी योग को शामिल कराया. लेकिन सिर्फ योगासन करने से हम योगी नहीं हो जाते. हमें अपना व्यवहार सुधारना चाहिए, और अगर ऐसा होता है तो सब कुछ सही हो जाएगा.