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तीन तलाक पर मोदी सरकार का बिल AIMPLB को नामंजूर, बताया क्रिमिनल एक्ट

ट्रिपल तलाक पर लाए जा रहे बिल को बोर्ड ने महिला विरोधी बताया है. साथ ही तीन साल की सजा देने वाले प्रस्तावित मसौदे को क्रिमिनल एक्ट करार दिया है.

तीन तलाक के बिल पर चर्चा तीन तलाक के बिल पर चर्चा
कुमार अभिषेक
  • लखनऊ,
  • 24 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 7:54 PM IST

एक बार में तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवैध मानने के बाद अब केंद्र की मोदी सरकार इस मसले पर कानून लाने जा रही है. इस संबंध में मौजूदा संसद सत्र में बिल पेश किया जाएगा. लेकिन इससे पहले ही ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस बिल पर चर्चा करते हुए इसे महिला विरोधी बताया है.

रविवार को लखनऊ में इस संबंध में पर्सनल लॉ बोर्ड की वर्किंग कमेटी की बैठक हुई. इस बैठक में तीन तलाक पर प्रस्तावित बिल को लेकर चर्चा की गई. कई घंटों चली बैठक के बाद बोर्ड ने इस बिल को खारिज करने का निर्णय लिया.

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इतना ही नहीं ट्रिपल तलाक पर लाए जा रहे इस बिल को बोर्ड ने महिला विरोधी बताया है. साथ ही तीन साल की सजा देने वाले प्रस्तावित मसौदे को क्रिमिनल एक्ट करार दिया है. बोर्ड की मीटिंग में तीन तलाक पर कानून को महिलाओं की आजादी में दखल कहा गया है.

इस आपात बैठक में शामिल होने के लिए बोर्ड की वर्किंग कमेटी के सभी 51 सदस्यों के बुलाया गया था. बैठक में शिरकत करने बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना राबे हसन नदवी, बोर्ड के महासचिव मौलना सईद वली रहमानी के अलावा सेक्रेटरी मौलना खालिद सैफुल्लाह रहमानी, ख़लीलुल रहमान सज्जाद नौमानी, मौलाना फजलुर रहीम, मौलाना सलमान हुसैनी नदवी भी पहुंचे थे. 

26 दिसंबर को पेश होगा बिल

क्रिसमस की छुट्टी के बाद मंगलवार को संसद में तीन तलाक बिल पेश करेगी.

सूत्रों के मुताबिक पर्सनल लॉ बोर्ड राजनीतिक दलों से भी इसका विरोध करने की अपील कर सकता है.

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ऐसा है प्रस्तावित बिल

- एक साथ तीन बार तलाक (बोलकर, लिखकर या ईमेल, एसएमएस और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से) कहना गैरकानूनी होगा.

- ऐसा करने वाले पति को तीन साल के कारावास की सजा हो सकती है. यह गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध माना जाएगा.

- यह कानून सिर्फ 'तलाक ए बिद्दत' यानी एक साथ तीन बार तलाक बोलने पर लागू होगा.

- तलाक की पीड़िता अपने और नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांगने के लिए मजिस्ट्रेट से अपील कर सकेगी.

- पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट से नाबालिग बच्चों के संरक्षण का भी अनुरोध कर सकती है. मजिस्ट्रेट इस मुद्दे पर अंतिम फैसला करेंगे.

- यह प्रस्तावित कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू होगा है.

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