
कोरोना संकट के बीच देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में उस समय बवाल खड़ा हो गया जब 16 सरकारी डॉक्टरों ने सामूहिक इस्तीफा सौंप दिया. इस्तीफे की वजह बताते हुए कहा गया कि प्रशासन का उनकी तरफ तानाशाह रवैया था और बात करने का ठंग भी उचित नहीं था. इन इस्तीफों की वजह से सरकार की तो किरकिरी हुई ही थी, बड़ा विवाद भी खड़ा होता दिख गया. लेकिन अब इस मामले को ठंडा कर दिया गया है. जानकारी मिली है कि सभी ने अपना त्यागपत्र वापस ले लिया है.
डॉक्टरों के सामूहिक इस्तीफे हुए वापस
जिलाधिकारी रविंद्र कुमार और सीएमओ डॉ आशुतोष कुमार के साथ सभी डाक्टरों की बैठक हुई जिसमे चिकित्साधिकारियों के साथ हो रही परेशानियों का समाधान करते हुए उनके साथ सद्भाव पूर्ण रवैया अपनाने के निर्देश दिए गए. आश्वासन मिलने के बाद ही नाराज डॉक्टरों ने सर्वसम्मति से अपना सामूहिक त्यागपत्र वापस लेने का फैसला लिया. अभी के लिए तो इस मामले को शांत कर दिया गया है,लेकिन डॉक्टरों द्वारा जिन मुद्दों पर नाराजगी जाहिर की गई थी, वो कई तरह के सवाल खड़े कर गई. डॉक्टरों ने बताया था कि उनसे सही तरीके से बात की नहीं की जाती है, उन्हें अपमानित महसूस करवाया जाता है.
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क्यों नाराज थे डॉक्टर?
इस्तीफा देने वाले डॉक्टरों का कहना था कि कोरोना के बीच वे पूरी निष्ठा के साथ अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं, इसके बावजूद प्रशासनिक अधिकारियो ने दंडात्मक आदेश जारी करते हुए तानाशाही रवैया अपनाया है, यही नहीं विभागीय उच्चाधिकारियों द्वारा असहयोग की भूमिका बनाई गई है. उनकी तरफ से जिला प्रशासन पर भी सवाल उठाए गए थे. इंडिया टुडे से बात करते हुए पीएचसी गंजमुरादाबाद के प्रभारी डॉ. संजीव कुमार ने कहा कि जिस तरह से व्यवहार किया जा रहा है, उससे हम परेशान हैं, RT-PCR टेस्ट हो या फिर कोविड वैक्सीनेशन या कोई प्रोग्राम, तत्काल टारगेट दिया जाता है, इसके बाद जिला प्रशासन की ओर से अभद्र व्यवहार किया जाता है.
सामूहिक रूप से इस्तीफा देने वालों में डॉ. मनोज, डॉ. विजय कुमार, डॉ. बृजेश कुमार, डॉ. अरुण कुमार, डॉ. संजीव कुमार, डॉ. शरद वैश्य, डॉ. पंकज पांडे और अन्य सीएचसी प्रभारी शामिल थे. लेकिन अब सभी का इस्तीफा वापस ले लिया गया है और एक बड़े विवाद को बातचीत के जरिए हल किया गया है.