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UP में मदरसे के सर्वे के बाद अब वक्फ की संपत्तियों की होगी जांच, जानिए क्या है वजह

उत्तर प्रदेश में अब वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की जांच भी की जाएगी. सरकार ने 1989 के वक्त के वक़्फ़ के एक शासनादेश को रद्द किया. सरकार का कहना है कि 33 साल पहले एक गलत अध्यादेश जारी हुआ था और अब सरकार उस गलती को सुधारने जा रही है. अब 1989 के बाद वक्त में शामिल हुई संपत्तियों की जांच कराई जाएगी और सभी पुरानी गलतियां सुधारी जाएगी.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (फाइल फोटो) मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (फाइल फोटो)
कुमार अभिषेक
  • लखनऊ,
  • 21 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 12:45 PM IST

उत्तर प्रदेश में मदरसे के सर्वे के साथ ही वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की जांच भी की जाएगी. दरअसल, मंगलवार को योगी सरकार ने 1989 के वक्त के वक़्फ़ के एक शासनादेश को रद्द किया. सरकार का दावा है कि 33 साल पहले एक गलत अध्यादेश जारी हुआ था और अब सरकार उस गलती को सुधारने जा रही है. अब 1989 के बाद वक्त में शामिल हुई संपत्तियों की जांच कराई जाएगी और सभी पुरानी गलतियां सुधारी जाएगी.

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दरअसल, 1989 में एक गलत आदेश के आधार पर ऊंची या टीलेदार जमीने, बंजर भूमि, उसर भूमि को वक़्फ़ की संपत्ति के तौर पर स्वतः दर्ज करने का आदेश जारी हुआ था, जिसका दुरुपयोग जमकर हो रहा था. बहुत सारी जमीनें जो कि कृषि योग्य थी या बंजर और उसर थी, इसी आदेश के हवाले से उसे वक़्फ़ मानकर वक़्फ़ के तहत दर्ज कर दिया जाता था.

उत्तर प्रदेश के सभी डीएम और कमिश्नर से कहा गया है कि 7 अप्रैल 1989 से अभी तक जितने भी संपत्तियां वक्त में दर्ज कराई गई है, इनके दस्तावेजों की नए सिरे से जांच हो और जमीनों का स्टेटस दर्ज किया जाए. सरकार का कहना है कि कब्रिस्तान, मस्जिद और ईदगाह जमीनों का सही-सही आकलन हो, उनका सीमांकन किया जाए क्योंकि 1989 के इस अध्यादेश को आधार बनाकर बहुत सारी ऐसी संपत्तियां जो राजस्व अभिलेखों में बंजर, भीटा उसर थी, उसे भी अभिलेखों में वक़्फ़ के तौर पर दर्ज करवा दिया गया है.

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शासन का ये भी मानना है कि है कि मुस्लिम वक़्फ़ अधिनियम 1960 के तहत किसी भी वक़्फ़ संपत्ति का स्वतः पंजीकरण नहीं हो सकता. ना ही वक़्फ़ बोर्ड किसी संपत्ति को स्वतः वक़्फ़ में दर्ज करवा सकता है, जबकि 1989 के आदेश में बिना आवेदन के ही  कई संपत्तियों को वक्त में दर्ज करने की बात सामने आई है, जो सही नहीं है इसलिए इस शासनादेश को रद्द किया गया है.

दरअसल यह अध्यादेश राजस्व कानूनों के खिलाफ भी था ग्राम सभा और नगर निकायों में मौजूद बंजर उसर और टीलेदार जमीने वक्त वक्त पर सार्वजनिक और जनहित कामों में इस्तेमाल किए जाते रहे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि संपत्तियों के स्वरूप में बदलाव कर दिया जाए, दरअसल सरकार को कई शिकायतें मिली कि जो राजस्व की जमीने सरकार में दर्ज होनी चाहिए, उसे सिर्फ परंपरा के आधार पर वक़्फ़ में डाल दिया गया है और 1989 के उसी आदेश का हवाला दिया गया है.

कई ऐसी जमीनी गांव नगरीय इलाकों में हैं, जहां धार्मिक कार्य होते हैं, मसलन कहीं सार्वजनिक नमाज पढ़ ली जाती है, कहीं पूजा का आयोजन होता है और कहीं उर्स आदि लगता है, कहीं कोई उत्सव होता है, यह बंजर और टीलेदार जमीनों पर गांव और नगर इलाके में होते हैं. ऐसी जमीनों को स्वतः ही वक़्फ़ मानकर उन्हें वक़्फ़ संपत्तियों में दर्ज करा दिया जाता था और यह सब कुछ 1989 के उसी सरकारी आदेश के तहत हो रहा था जिसके बाद कई शिकायतें आई हैं.

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सरकार ने उन्हीं शिकायतों को आधार बनाकर उस आदेश को रद्द कर दिया. इसी आदेश की आड़ में कहीं-कहीं कृषि योग्य जमीनों को भी स्वता ही वक़्फ़ में दर्ज कर लिया गया. अब ऐसी सभी जमीने एक बार फिर से राजस्व की जमीनों होगी सरकार इन जमीनों का सर्वे कराएगी जबकि कब्रिस्तान ईदगाह जैसी जमीनों का सीमांकन किया जाएग, क्योंकि इसमें से कई ऐसी जमीन है जो राजस्व की हैं उन्हें वक़्फ़ में शामिल कर दिया गया है.

 

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