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यूपी: शिवपाल यादव का मिशन-2022, मेरठ से आज चुनावी अभियान का करेंगे आगाज

शिवपाल यादव को मेरठ में रैली की अनुमति काफी जद्दोजहद के बाद मिली है. कोरोना संक्रमण और धारा 144 लागू होने के चलते जिला प्रशासन ने महज 100 लोगों के साथ ही रैली करने की अनुमित दी है. हालांकि, शिवपाल बड़ी रैली से अपने अभियान का आगाज करने वाले थे, लेकिन अब प्रशासन के सख्त रवैये के चलते सीमित लोगों की बीच ही रैली को संबोधित करना होगा. 

शिवपाल यादव शिवपाल यादव
aajtak.in
  • नई दिल्ली ,
  • 21 दिसंबर 2020,
  • अपडेटेड 10:16 AM IST
  • किसानों के समर्थन में शिवपाल यादव की मेरठ में रैली
  • 24 दिसंबर से शिवपाल यूपी में गांव-गांव करेंगे पदयात्रा
  • छोटी-छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन करने का प्लान

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में चाचा-भतीजे यानी शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के एक होने की उम्मीदें अब खत्म होती जा रही हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव के ऑफर को रिजेक्ट करने के बाद अब प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव सोमवार को पश्चिमी यूपी से अपने चुनाव अभियान का आगाज करने जा रहे हैं. कृषि कानूनों के विरोध और किसानों के समर्थन में शिवपाल मेरठ के सिवालखास के सिवाल हाईस्कूल मैदान में रैली को संबोधित करेंगे.

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शिवपाल यादव को मेरठ में रैली की अनुमति काफी जद्दोजहद के बाद मिली है. कोरोना संक्रमण और धारा 144 लागू होने के चलते जिला प्रशासन ने महज 100 लोगों के साथ ही रैली करने की अनुमित दी है. हालांकि, शिवपाल बड़ी रैली से अपने अभियान का आगाज करने वाले थे, लेकिन अब प्रशासन के सख्त रवैये के चलते सीमित लोगों की बीच ही रैली को संबोधित करना होगा. 

मिशन 2022 का आगाज

प्रगतिशील समाजवादी पार्टी यहीं से अपना मिशन-2022 का आगाज कर रही है. 23 दिसंबर को इटावा में पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन पर एक कार्यक्रम तय किया गया है. इसके बाद शिवपाल यादव 24 दिसंबर से यूपी के गांव-गांव की पदयात्रा पर निकलेंगे, जो प्रदेश भर में 6 महीने तक चलेगी. इसके लिए बाकायदा एक प्रचार रथ भी तैयार किया गया है, जिससे शिवपाल यादव यूपी भर में यात्रा करेंगे. 

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बता दें कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कुछ दिन पहले कहा था कि 2022 के विधानसभा चुनाव में छोटे दलों के साथ हाथ मिलाया जाएगा, लेकिन किसी भी बड़े दल से कोई गठबंधन नहीं होगा. इस दौरान उन्होंने अपने चाचा शिवपाल यादव की पार्टी से गठबंधन को लेकर कहा था कि उस पार्टी को भी एडजस्ट करेंगे. जसवंतनगर उनकी (शिवपाल) सीट है. समाजवादी पार्टी ने वह सीट उनके लिए छोड़ दी है और आने वाले समय में उनके लोग मिलें, सरकार बनाएं, हम उनके नेता को कैबिनेट मंत्री भी बना देंगे. इससे ज्यादा और क्या एडजस्टमेंट चाहिए? हालांकि, अखिलेश के इस ऑफर को शिवपाल यादव ने अस्वीकार कर दिया है और अपना अलग गठबंधन बनाने की बात कही है. 

शिवपाल का गठबंधन प्लान
उत्तर प्रदेश के पांच छोटे दलों ने बड़े दलों के साथ जाने के बजाय आपस में ही हाथ मिलाकर चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है. शिवपाल यादव ने साफ कहा है कि वो अपने चुनाव निशान पर ही चुनावी मैदान में उतरेंगे. उन्होंने सूबे के छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन करने की बात कही है. ऐसे में माना जा रहा है कि हाल ही में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व में बने भागीदारी संकल्प मोर्चा के साथ हाथ मिला सकते हैं. 

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हाल ही में शिवपाल यादव और ओम प्रकाश राजभर के बीच मुलाकात हुई है. इसके अलावा AIMIM के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने भी शिवपाल यादव के साथ गठबंधन करने के संकेत दिए हैं. वहीं, पिछले दिनों शिवपाल यादव भी ओवैसी की तारीफ कर चुके हैं. राजभर सूबे में छोटे दलों के साथ मिलकर एक राजनीतिक विकल्प तैयार करने में जुटे हैं. 

ओमप्रकाश राजभर की अगुवाई में बाबू सिंह कुशवाहा की जनाधिकार पार्टी, अनिल सिंह चौहान की जनता क्रांति पार्टी, बाबू राम पाल की राष्ट्र उदय पार्टी और प्रेमचंद्र प्रजापति की राष्ट्रीय उपेक्षित समाज पार्टी ने भागीदारी संकल्प मोर्चा के नाम से नया गठबंधन तैयार किया है. ऐसे में शिवपाल यादव और ओवैसी की पार्टी की भी इस गठबंधन में राजनीतिक एंट्री हो सकती है. 

शिवपाल और राजभर साथ आएंगे?
राजभर उत्तर प्रदेश में अति पिछड़ों की राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं तो ओवैसी ने बिहार चुनाव के बाद हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में भी इस बात को साबित किया है कि मुस्लिम मतदाता उनके साथ खड़े हैं. इससे पहले बिहार चुनाव में बने ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट में भी ओवैसी और राजभर साथ थे. 

यूपी में पिछड़ों की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है. इस आबादी में ताक़तवर माने जानी वाली पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट-गुर्जर और पूरे प्रदेश में फैली यादव-कुर्मी आबादी को छोड़ दें तो ओमप्रकाश राजभर पूर्वांचल के इलाक़े में बिंद, निषाद, मल्लाह, कश्यप, कुम्हार, राजभर, प्रजापति, मांझी, पाल, कुशवाहा आदि अति पिछड़ी जातियों के वोटों को अपने पाले में कर सकते हैं.

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राजभर कहते रहे हैं कि पिछड़ों के 27 प्रतिशत आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटा जाए. इसमें पिछड़ा, अति पिछड़ा और महापिछड़ा को आबादी के हिसाब से आरक्षण दिया जाए. इसी वजह से वह बीजेपी से लड़ते-झगड़ते रहे और बाद में अलग हो गए. राजभर का कहना है कि इन जातियों को पिछड़ों के आरक्षण का सही हक़ नहीं मिल पाया और ये हमेशा वंचित ही रहीं. ऐसे में यूपी की तमाम पिछड़ी जातियों को आपस मिलाकर चुनावी मैदान में उतरने की रणनीति है.

 

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