
उत्तर प्रदेश में भले ही अभी विधानसभा चुनाव होने में करीब सवा साल का समय बचा हो, लेकिन राजनीतिक पार्टियां सियासी समीकरण बनाने में जुटी हैं. एमएलसी चुनाव के जरिए बीजेपी ने जातीय समीकरण साधने के लिए दलित, पिछड़े वर्ग के साथ-साथ ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय और भूमिहार को भी प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है, लेकिन पार्टी अपने कोर वोटबैंक कायस्थ समुदाय को एडजस्ट नहीं कर सकी. पहले बीजेपी संगठन में जगह नहीं मिली और अब एमएलसी चुनाव में किसी भी कायस्थ समुदाय से किसी को प्रत्याशी नहीं बनाया गया है. इसके चलते सपा बीजेपी को कायस्थ विरोधी करार देने में जुट गई है.
बीजेपी ने साधा जातीय समीकरण
बीजेपी ने एमएलसी चुनाव में क्षत्रिय समुदाय से आने वाले झांसी के कुंवर मानवेंद्र सिंह को जगह दी है जबकि भूमिहार समुदाय से अरविंद कुमार शर्मा और अश्विनी त्यागी को प्रत्याशी बनाया गया है. ओबीसी समुदाय से बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और धर्मवीर प्रजापति को एमएलसी प्रत्याशी बनाया गया है.
ऐसे ही ब्राह्मण समुदाय से डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा और गोविंद नारायण शुक्ल को उच्च सदन भेज रही है जबकि दलित समुदाय से सुरेंद्र चौधरी और लक्ष्मण आचार्य को प्रत्याशी बनाया है. इसके अलावा वैश्य समुदाय से प्रदेश उपाध्यक्ष सलिल विश्नोई को भी प्रत्याशी बनाकर अपने परंपरागत वोटबैंक को साधने की कवायद की है.
कायस्थ समुदाय को नहीं मिला मौका
वाराणसी में सपा एमएलसी आशुतोष सिन्हा की जीत के बाद माना जा रहा था कि बीजेपी से एमएलसी चुनाव में कायस्थ समाज से किसी को प्रतिनिधित्व मिल सकता है. लेकिन ये सिर्फ कयास ही रहा और बीजेपी ने किसी भी कायस्थ को प्रत्याशी नहीं बनाया. बीजेपी के परंपरागत वोटर माने जाने वाले कायस्थ समुदाय को पहले संगठन में और अब एमएलसी चुनाव में जगह न देने पर विपक्ष को मौका मिल गया है.
विपक्ष ने बीजेपी पर कायस्थ का वोट लेकर उसे सियासत में किनारे करने की राजनीति करने का आरोप लगाया है. सपा एमएलसी आशुतोष सिन्हा ने कहा कि बीजेपी ने कायस्थ समुदाय का सिर्फ इस्तेमाल किया है. न तो उन्हें संगठन में कोई जगह दी गई है और न ही राज्य में किसी को राज्यसभा और विधान परिषद भेजा गया है. उन्होंने कहा कि कायस्थ समाज ने एक तरफा बीजेपी को वोट किया था, लेकिन उन्हें बीजेपी सत्ता और संगठन में भागीदारी देने के बजाय लगातार साइड लाइन कर रही है. वहीं, समाजवादी पार्टी ने एमएलसी चुनाव में हमारे जैसे एक छोटे से कार्यकर्ता को सिर्फ विधान परिषद का टिकट ही नहीं दिया बल्कि मजबूती के साथ चुनाव भी लड़ाया जिताया है.
कायस्थ हितैशी होने की दावेदारी
लोकसभा से लेकर मेयर और विधान परिषद के चुनाव में बीजेपी ने किसी कायस्थ को टिकट दिया जबकि सपा ने लोकसभा में एक टिकट दिया था और झांसी से मेयर का प्रत्याशी दिया था. इसके अलावा एक को विधान परिषद भेजा है. बीजेपी ने 2017 में पांच कायस्थ को टिकट दिए थे जबकि सपा ने तीन टिकट दिए थे. बीजेपी ने कायस्थ समुदाय के सिद्धार्थनाथ सिंह को योगी कैबिनेट में जगह दी है. इसके बावजूद आशुतोष सिन्हा का कहना है कि बीजेपी ने सिर्फ कायस्थों को ठगा है. उनका तर्क है कि सूबे में तीन-चार के जीते कायस्थ समुदाय को उनके आबादी के लिहाज से प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया. इतना ही नहीं उनका आरोप है कि सिद्धार्थनाथ सिंह का कद बीजेपी ने घटाया है.
बीजेपी में कायस्थ का सम्मान
वहीं, बीजेपी के मीडिया पैनलिस्ट नवीन श्रीवास्तव कहते हैं कि यूपी में तीन चुनाव हारने के बाद विपक्षी दल हताश और निराश हैं, ऐसे में वो ओछी राजनीति कर रहे हैं. बीजेपी राष्ट्रीय पार्टी है और उसकी राष्ट्रवादी सोच होने के कारण कायस्थ समाज की स्वाभाविक पसंद है. बीजेपी ने हमेशा कायस्थों का सम्मान करने का काम किया है.
सूबे में चार विधायक और एक मंत्री कायस्थ समुदाय से हैं. इसके अलावा तीन जिला अध्यक्ष और तीन प्रवक्ता भी कायस्थ समुदाय से हैं. केंद्रीय संगठन और सरकार में कायस्थ समुदाय की अच्छी खासी भागीदारी है. बीजेपी नेतृत्व ने त्रिपुरा में कायस्थ विप्लब देव को मुख्यमंत्री, झारखंड में दीपक प्रकाश को प्रदेश अध्यक्ष, रविशंकर प्रसाद को केंद्रीय मंत्री बनाया है.
यूपी में कायस्थ राजनीति
दरअसल, यूपी में करीब 3 फीसदी कायस्थ वोटर हैं, जो मौजूदा समय में बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है.गोरखपुर, वाराणसी, बनारस, बरेली और इलाहाबाद सहित तमाम यूपी के बड़ों शहरों में कायस्थ समुदाय का अच्छा खासा वोट है, जो किसी भी राजनीतिक दल का शहरी सीट पर खेल बनाने और बिगाड़ने की माद्दा रखते हैं. एक दौर में कायस्थ कांग्रेस के साथ हुआ करता था, लेकिन वह राम मंदिर आंदोलन के दौर से बीजेपी के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ है.
बीजेपी ने पिछले साल सितंबर में यूपी में अपने संगठन की कार्यकारिणी का ऐलान किया था, जिसमें पार्टी ने सूबे के संगठन में 16 उपाध्यक्ष,16 प्रदेश मंत्री और 5 महामंत्री बनाए हैं, लेकिन एक भी कायस्थ समुदाय के शख्स को संगठन में शामिल नहीं किया गया है और न ही कोई दायित्व सौंपा गया है. हालांकि, बाद में क्षेत्रीय अध्यक्ष के पद पर बीजेपी ने काशी प्रांत से एक कायस्थ को जरूर शामिल किया है.
बीजेपी संगठन में जगह नहीं दिए जाने से कायस्थ समाज के द्वारा लखनऊ में पोस्टर लगाए गए थे. इसमें लिखा था- 'कायस्थों अब तो जाग जाओ, या फिर हमेशा के लिए सो जाओ.' वहीं आगे व्यंग मारते हुए यह भी लिखा गया है, 'नवगठित भाजपा कार्यकारिणी में किसी भी कायस्थ को जगह न देने के लिए राष्ट्रीय और प्रदेश नेतृत्व का आभार.' एक दूसरे पोस्टर पर लिखा हुआ है, 'बीजेपी को धन्यवाद पार्टी के बंधुआ वोटर कायस्थ समाज को कोई स्थान न देने के लिए.' हालांकि, इन पोस्टरों को बीजेपी ने सपा की चाल बताई थी. वहीं, अब एमएलसी चुनाव में कायस्थों को जगह न देने को लेकर सपा बीजेपी पर कायस्थ को ठगने का आरोप लगा रही है. ऐसे में बीजेपी ने कायस्थों का साधने के लिए कोई कदम नहीं उठाया तो यह पार्टी के लिए महंगा भी पड़ सकता है.