
भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भले ही मुस्लिम उम्मीदवारों को न उतारा हो, लेकिन नगर निकाय चुनाव में मुस्लिमों को टिकट देकर सबको चौंका दिया है. प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लेकर नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कई मुस्लिम उम्मीदवारों को बीजेपी ने टिकट दिया है.
कहा जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ इस मामले में मोदी का गुजरात मॉडल अपना रहे हैं और उन्होंने अपने इस दांव से धर्मनिरेपक्षता का दम भरने वाले दलों कांग्रेस, सपा और बसपा का खेल बिगाड़ दिया है.
नरेंद्र मोदी जब गुजरात की सत्ता पर काबिज हुए तो 2007 के नगर निकाय चुनाव में बीजेपी ने सैकड़ों मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जिनमें से 200 से ज्यादा पार्षद जीतने में सफल रहे. इसके अलावा 2012 के नगर निकाय चुनाव में भी बीजेपी के टिकट पर करीब 200 पार्षद जीतने में सफल रहे थे. इनमें से कई को बीजेपी ने चेयरमैन भी बनाया.
गुजरात के इस मॉडल को अब यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपना रहे हैं. यूपी के जिन जिलों में मुस्लिमों की आबादी 30 फीसदी से ऊपर है, वहां बीजेपी ने इस नगर निकाय चुनाव में मुस्लिम चेहरों पर भी दांव लगाया है.
बीजेपी ने उन्नाव की कुरमठ नगर पंचायत में अब्बुल गफूर खान, मेरठ की शाहजहांपुर नगर पंचायत से आयशा खान और बिजनौर की सरसपुर नगर पंचायत से निशा परवीन को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया है. कासगंज की भरगैन नगर पंचायत से नजमा बेगम अध्यक्ष का चुनाव लड़ेंगी.
बीजेपी प्रवक्ता चंद्रमोहन का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर सांप्रदायिकता का आरोप लगाने वालों को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए. हमारी सरकार सबका साथ और सबका विकास का मंत्र लेकर चल रही है, जिसमें कोई तबका पीछे नहीं छूटेगा.
बीजेपी ने तीन तलाक जैसे मुद्दे को उठाकर हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में मुस्लिम महिलाओं के वोट बटोरे थे. उसने नगर निकाय चुनाव में मुस्लिम महिलाओं पर ही ज्यादा दांव लगाया है. रायबरेली जिले की ऊंचाहार नगर पंचायत के वार्ड नंबर दो की बीजेपी उम्मीदवार शाहीन बानो कहती हैं कि बीजेपी ने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देकर सराहनीय कदम उठाया है. इससे मुस्लिम समाज और भी तेजी से बीजेपी के साथ जुड़ेगा.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मो. सज्जाद कहते हैं- बीजेपी यूपी के नगर निकाय चुनाव में मुस्लिमों को टिकट देने के पीछे बहुउद्देश्यी कारण है. बीजेपी जनाधार और लोकप्रियता को लेकर संकट के दौर से गुजर रही है, क्योंकि सरकार ने अपने किए हुए वादे में अभी तक असफल रही है. ऐसे में पार्टी अपने को नए रुप से स्थापित करने के लिए विस्तार करना चाहती होगी, इसीलिए मुस्लिमों को टिकट दिया गया है. सभी पार्टियां जिताऊ उम्मीदवार को देखकर टिकट देती हैं. यूपी के नगर निकाय चुनाव में बीजेपी को मुस्लिम उम्मीदवार जिताऊ नजर आ रहे होंगे, इसी वजह से टिकट दिया है. इसके पीछे ये भी उद्देश्य है कि पार्टी में सर्व समाज की भागेदारी है.
सज्जाद कहते हैं कि पश्चिमी यूपी की कई ऐसे नगर निकाय सीटे हैं, जहां सिर्फ मुस्लिम ही जीत सकता है. ऐसे में बीजेपी का उद्देश्य अपनी उपस्थिति दर्ज करना भी हो सकता है. इसके अलावा पश्चिम में मुस्लिमों के पास चुनाव लड़ने के लिए सक्षम है. बीजेपी ने गुजरात में भी पिछले कुछ चुनाव से नगर निकाय में मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे और वो जीते भी लेकिन जुहापुरा आज अपनी बेबसी पर रोता है. ऐसे में यूपी में मुस्लिम बीजेपी से जीतकर क्या बदलेंगे.
पूर्व सांसद इलियास आजमी कहते हैं कि नगर निकाय चुनाव में टिकट देने से कोई अर्थ नहीं है. ये सिर्फ दिखावा और खानपूर्ती है. दरअसल बीजेपी को जहां टिकट देना चाहिए वहां वो मुस्लिमों को टिकट नहीं देती है, जहां वो जीतकर जाए और देश प्रदेश की नीति बनानें में अपनी भागेदारी दिखाएं. उन्होंने कहा कि नगर निकाय चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवार अपने दम पर जीतने की कूवत रखते हैं. पिछले चुनाव में करीब 300 मुस्लिम नगर निकाय में जीतने में सफल रहे हैं. ऐसे में बीजेपी ने उन्हें टिकट देकर अपनी कोई ऐहसान नहीं किया है.