
27 अगस्त को 14 साल के सौरभ चौहान बीमार पड़ गए. अगले दिन उनकी मां गुड्डी देवी उन्हें मथुरा के एक निजी अस्पताल ले गईं. यहां के मोटे बिल ने उन्हें परेशान कर दिया. 30 अगस्त को सौरभ को आगरा के एक निजी अस्पताल में रेफर कर दिया गया.
एक ओर जहां सौरभ की मां अस्पताल में फंसी हुई थीं तो दूसरी ओर पिता भूरा सिंह भी बिस्तर पर थे. अस्पताल का बिल चुकाने के लिए उन्होंने अपने गहने रखने का फैसला लिया. गुड्डी इतना डर गई हैं कि उन्होंने अपना मंगलसूत्र तक गिरवी रखने के लिए दो बार सोचा. सौरभ के इलाज के लिए उन्हें और पैसों की जरूरत थी. इसलिए उन्होंने अपने रिश्तेदारों से 50 हजार रुपये उधार लिए.
31 अगस्त को सौरभ ने दम तोड़ दिया. गुड्डी और भूरा का बड़ा बेटा अब नहीं रहा. सौरभ अपने पीछे अपनी यादें और एक लाख रुपये का कर्ज छोड़ गया. परिवार को नहीं पता कि वो इस कर्ज को कैसे और कब चुकाएंगे. वो यूपी के मथुरा जिले के कोह गांव के रहने वाले हैं. इस गांव में गुड्डी और भूरा अकेले नहीं हैं जिन्होंने अपने चाहने वाले को खोया है.
मथुरा का कोह गांव पिछले दो महीने से डेंगू के साथ-साथ स्क्रब फायटस और लेप्टोस्पायरोसिस के प्रकोप से जूझ रहा है. अगस्त और सितंबर में इस गांव में 11 लोगों की जान जा चुकी है, जिनमें 10 बच्चे हैं. इस गांव के लोगों का कहना है कि उन्हें सरकारी स्वास्थ्य सुविधा पर भरोसा नहीं रहा और इसलिए वो अपने गहने और संपत्ति को गिरवी रख निजी अस्पतालों में इलाज कराने को मजबूर हैं.
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कोह गांव के रहने वाले हरिशंकर के परिवार के 15 लोग इस बीमारी के चपेट में आ गए. उनका 8 साल का बेटा टिंकू अब इस दुनिया में नहीं है. अस्पताल ले जाते समय उसकी मौत हो गई थी. उसके बाद पिता ने ज्यादा इंतजार नहीं किया और अपनी 13 साल की बेटी मोहिनी को निजी अस्पताल में भर्ती कराया. मोहिन 5 सितंबर को ठीक होकर अपने घर लौट आई है.
हरिशंकर ने आज तक से कहा, 'सरकारी अस्पताल में कोई सुनवाई नहीं था. इसलिए हमें आगरा के निजी अस्पतालों में भागना पड़ा.' उन्होंने दावा किया कि इलाज के लिए पैसे का इंतजाम करने के लिए उन्हें अपना घर गिरवी रखना पड़ा. उन्हें अब चिंता है कि वो इस कर्ज को कैसे चुकाएंगे? हरिशंकर का कहना है कि उनके परिवार में अब भी कई लोग हैं जो बीमार हैं.
कई बुजुर्गों ने बताया कि गांव के कई लोगों ने अपने बच्चों और उनकी माताओं को दूरदराज के गांवों में अपने रिश्तेदारों के यहां भेज दिया है. ये रहस्यमयी बीमारी अब सबको चपेट में ले रही है. लोग अब खुदको असहाय महसूस कर रहे हैं.
2 सितंबर का एक वीडियो भी सामने आया था, जिसमें कोह गांव के रहने वाले किशन सिंह मथुरा की सीएमओ रचना गुप्ता के पैरों में गिरते दिख रहे थे और अपने बच्चे की जान बचाने की गुहार लगा रहे थे. इसके बाद प्रशासन हरकत में आया. स्पेशल कमेटी बनाई गई और गांव में 24X7 मेडिकल कैम्प खोला गया.
मेडिकल कैम्प में पड़ताल
जब आज तक ने इन कैम्पों में जाकर देखा तो एक अलग ही सच्चाई सामने आई. इस कैम्प में एक टेबल था जिसमें दवाएं रखी हुई थीं. इस कैम्प में लाइट और खाट तक ग्रामीणों ने दी थी. लेकिन यहां कोई डॉक्टर नहीं था. इस बारे में जब ग्रामीणों और ग्राम प्रधान से बात की गई तो सबने एक सुर में कहा, 'हमें नहीं पता कि यहां कोई डॉक्टर आया है या नहीं. यहां जो भी आता है, जहां फार्मासिस्ट उसे दवा दे देते हैं और मरीजों की हालत खराब होने पर उसे सरकारी अस्पताल रेफर कर देते हैं.'
इस गांव के मुखिया हरेंद्र चौहान भी स्वास्थ्य सुविधाओं और प्रशासन के इंतजाम से खफा दिखे. जबकि वो सत्ताधारी पार्टी बीजेपी से जुड़े हुए हैं. हरेंद्र का कहना है कि मेडिकल टीम, स्थानीय विधायक और राज्य के एक मंत्री के दौरे से उनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ है. हरेंद्र के चचेरे भाई की भी बीमारी से मौत हो चुकी है.
हालांकि, सीएमओ रचना गुप्ता ने दावा किया कि कोड मेडिकल कैम्प में सबकुछ ठीक है. उनका दावा है कि तीन शिफ्ट में तीन डॉक्टर काम कर रहे हैं. उन्होंने ये भी दावा किया कि सरकारी अस्पताल में किसी की मौत नहीं हुई.
मथुरा के इस गांव के लोग अब नाराज हैं. सौरभ के चाचा सोनू सिंह समेत गांव के कई लोग प्रशासन से मुआवजे की मांग कर रहे हैं.