
उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था और अपराधियों पर नकेल कसने के नाम पर इन दिनों बुलडोजर खूब तेजी से दौड़ रहा है. कभी यूपी पुलिस बलात्कार के आरोपी के घर पर बुलडोजर खड़ा कर रही है तो कहीं हत्या के आरोपियों के घर गिराए दे रही है. पुलिस वाहवाही भी बटोर रही, लेकिन वाहवाही बटोरने के चक्कर में बुलडोजर की कार्रवाई कानून की मर्यादाओं को लांघने लगी है. सवाल उठने लगे हैं कि आखिर यूपी पुलिस किस अधिकार के तहत किसी आरोपी का घर गिरा सकती है.
पहला मामला रामपुर के टांडा थाना क्षेत्र का है. जिसमें टांडा थाना क्षेत्र के लालपुर कला में पूर्व प्रधान और उसके भतीजे को गोली मार दी गई. इलाज के दौरान भतीजे वसीम की मौत हो गई. ग्राम प्रधान हारून गंभीर रूप से घायल हो गया. पुलिस ने घटना को अंजाम देने वाले आरोपियों की तलाश की तो आरोपी फरार हो गए. रामपुर पुलिस बुलडोजर लेकर आरोपियों के घर पहुंच गई और मकान को गिरा दिया गया.
दूसरा मामला सहारनपुर के चिलकाना थाना क्षेत्र का है, जहां गैंगरेप के दोनों आरोपियों (दो भाइयों) को सरेंडर करने के लिए पुलिस ने उनके घर की सीढ़ियां तोड़ दी. ये अलग बात है कि आरोपियों ने घर गिराए जाने के डर से सरेंडर कर दिया.
इससे पहले प्रतापगढ़ में पुलिस रेप के आरोपी के घर को बुलडोजर से घर गिराने की धमकी दे ही चुकी है. यूपी पुलिस धड़ल्ले से बुलडोजर का इस्तेमाल कर रही है. पुलिस के आला अफसर भी मानते हैं कि बुलडोजर का पुलिस के द्वारा गलत इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए जो भी अफसर गैर कानूनी ढंग से ऐसा करेंगे उनके खिलाफ कार्रवाई भी होगी.
कानून व्यवस्था के नाम पर बुलडोजर का इस्तेमाल कोई पहला मामला नहीं है. इससे पहले साल 2019 में लखनऊ से लेकर कानपुर, मेरठ, सहारनपुर समेत कई शहरों में हुए सीएए-एनआरसी के हिंसक प्रदर्शन में भी उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा आरोपियों से वसूली अभियान चलाया गया. जिला प्रशासन की तरफ से वसूली की नोटिस दी गई. लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो सरकार की पूरी कार्रवाई को ही गलत बताकर जुर्माना वसूली को रोकना पड़ा.
लखनऊ में इस हिंसक प्रदर्शन में सबसे ज्यादा वसूली का नोटिस दीपक कबीर को पहुंचा था. दीपक कबीर कहते हैं कि पुलिस प्रशासन ने उनके बड़े-बड़े पोस्टर लगाकर वसूली का शोर तो मचाया, लेकिन कोर्ट में पुलिस एक भी सुबूत नहीं दे पाई. जिसकी वजह से 22 दिन में ही सेशन कोर्ट से उनको जमानत मिली और कोर्ट ने उनकी वसूली पर रोक लगा दी थी.
दरअसल उत्तर प्रदेश सरकार ने सीएए-एनआरसी प्रदर्शन के दौरान हुई सरकारी संपत्ति के नुकसान के लिए प्रदर्शन में शामिल लोगों को नोटिस देकर वसूली शुरू की थी. वसूली के आदेश के खिलाफ तमाम संगठन हाई कोर्ट गए. हाई कोर्ट से मामला सुप्रीम कोर्ट गया और सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा उत्तर प्रदेश सरकार ने बिना कानून बनाए ही वसूली शुरू की है, लिहाजा जिन लोगों से वसूली की गई उनको पैसा वापस किया जाए और वसूली को रोक दिया जाए.
कानपुर के बाबू पुरवा इलाके के रहने वाले दिलशान भी उन लोगों में से एक हैं जिन जिनको वसूली का नोटिस आया और वसूली भी हुई. पेंटिंग का काम करने वाला दिलशान उस दिन नमाज पढ़कर निकल रहा था अचानक भीड़ सामने आ गई तो उसने खुद के बचाव में पत्थर उठा लिया. तभी किसी ने फोटो खींच ली और उसके घर सात हजार रुपए जुर्माने का नोटिस पहुंच गया. 8 महीने जेल में बिताने के दौरान ही उसके पिता की मौत हो गई और मां बीमार रहने लगी. जमानत कराने और जुर्माना भरने में परिवार अब कर्जदार हो गया है. आज कोर्ट के आदेश पर भले ही उसको जुर्माने की रकम वापस मिल जाए, लेकिन अब ना तो उसके पिता लौटकर आएंगे और ना ही जमानत कराने और जुर्माना अदा करने के लिए सूद पर ली गई रकम का ब्याज मिलेगा.
लखनऊ के दीपक कबीर और कानपुर का दिलशान तो एक उदाहरण भर है बताने के लिए कि CAA-NRC के हिंसक प्रदर्शन में वसूली का जो उत्तर प्रदेश सरकार ने शोर मचाया, चौराहे दर चौराहे पोस्टर लगवाए उसकी कानूनी वैधता पर भी सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किए और दिलशान जैसे मजदूर पेशा लोग अनाथ भी हुए और कर्जदार भी हो गए.
ऐसे में सवाल उठने लगा है कि कहीं वाहवाही लूटने के चक्कर में यूपी पुलिस बुलडोजर के इस्तेमाल में भी उत्तर प्रदेश सरकार की किरकिरी ना करा दे. हाई कोर्ट के अधिवक्ता प्रिंस लेनिन कहते हैं जब तक कोई अदालत से दोषी साबित नहीं हो जाता वह आरोपी रहता है और सजा देने का काम अदालत का है कानून का है, पुलिस का नहीं. किसी भी जमीन पर हुए निर्माण के ध्वस्तीकरण की कानूनी प्रक्रिया है. लेकिन पुलिस जिस तरह बुलडोजर का इस्तेमाल कर रही है यह इस्तेमाल अगर कहीं कोर्ट के दरवाजे तक पहुंच गया तो कोर्ट से दोबारा फटकार भी लग सकती है.