
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को देखते हुए राजनीतिक दल अपने-अपने सामाजिक समीकरण बनाने में जुट गए हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा अध्यक्ष मायावती ने भगवान परशुराम के जरिए ब्राह्मण समुदाय को साधने में जुटी हैं. वहीं, बीजेपी की नजर सूबे के अति पिछड़ा समुदाय पर है. ऐसे में सीएम योगी आदित्यनाथ ने जय प्रकाश निषाद को राज्यसभा भेजने का दांव चलकर विपक्ष के सारे समीकरण को बिगाड़ दिया है.
दरअसल, उत्तर प्रदेश में करीब 10 फीसदी ब्राह्मण मतदाता संख्या के आधार पर भले कम हों, लेकिन माना जाता कि राजनीतिक रूप से सत्ता बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. ऐसे में गैंगस्टर विकास दूबे के एनकाउंटर के बाद से सूबे में ब्राह्मण समुदाय को साधने की कवायद में राजनीतिक दल हैं. सपा से लेकर बसपा और कांग्रेस के तमाम नेता योगी सरकार पर ब्राह्मणों की उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं.
अखिलेश-मायावती परशुराम के सहारे ब्राह्मणों को साधने में जुटे
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ब्राह्मणों को साधने की कोशिश में हैं. समाजवादी पार्टी ने जयपुर में ब्राह्मणों के प्रतीक देवता भगवान परशुराम की मूर्ति बनवा डाली और ऐलान किया. वहीं, मौके की नजाकत को समझते हुए मायावती ने भी बसपा के सत्ता में आती है तो न सिर्फ भगवान परशुराम की मूर्ति लगाई जाएगी बल्कि अस्पताल, पार्क और बड़े-बड़े निर्माण को उनके नाम पर करने की घोषणा की है.
बीजेपी ने जय प्रकाश निषाद के जरिए खेला अति पिछड़ा कार्ड
ऐसे में सपा-बसपा ब्राह्मण समुदाय का भरोसा जीतने में लगे हैं तो बीजेपी ने अति पिछड़ा समुदाय को साधने की रणनीति बनाई पर काम शुरू कर दिया है. बीजेपी ने जय प्रकाश निषाद को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाकर सभी को चौंका दिया है. जयप्रकाश न सिर्फ उम्मीदवार अतिपिछड़ी जाति मल्लाह समुदाय से आते हैं बल्कि मूल रूप से भाजपा और संघ के बैकग्राउंड के भी नहीं हैं. उनका बसपा से पुराना रिश्ता रहा है और मायावती सरकार में मंत्री रहे हैं, लेकिन जयप्रकाश निषाद विधानसभा चुनाव हारने के बाद 2018 में बीजेपी की सदस्यता ले ली थी.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ पूर्वांचल से आते हैं. इसीलिए सीएम योगी ने ही उन्हें बीजेपी में एंट्री करायी थी. अब बीजेपी ने उन्हें सपा नेता और पूर्व मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के निधन से खाली हुई सीट पर अपना प्रत्याशी बनाया है. बीजेपी के आंकड़ों को देखते हुए जयप्रकाश की जीत समीकरण को देखते हुए तय मानी जा रही है और उनका कार्यकाल 4 जुलाई 2022 तक होगा.
पूर्वांचल में निषाद, केवट, मल्लाह, कश्यप ऐसी जातियों की तादाद काफी ज्यादा है. अयोध्या से लेकर गोरखपुर तक निषाद समुदाय का राजनीतिक रूप से दबदबा है. ऐसे में निषाद जाति से राज्यसभा भेजकर बीजेपी अपना समीकरण दुरुस्त करने की कवायद में जुटी है, क्योंकि बीजेपी इन्हीं अति पिछड़ा समुदाय के दम पर 2017 में 14 साल के सत्ता का वनवास को खत्म करने में कामयाब रही है.