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यूपी शिया वक्फ बोर्ड चुनावः कल्बे जव्वाद बनाम वसीम रिजवी की जंग में नूर बानो बनीं ट्रंप कार्ड

इस बार वसीम रिजवी खुद के बजाय बीजेपी नेता सैय्यद फैजी को शिया वक्फ बोर्ड की कुर्सी पर बैठाना चाहते हैं जबकि मौलाना कल्बे जव्वाद अपने करीबी अली जैदी और पूर्व सांसद नूरबानो में से किसी एक को अध्यक्ष देखना चाहते हैं.

मौलाना कल्बे जव्वाद और वसीम रिजवी मौलाना कल्बे जव्वाद और वसीम रिजवी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 15 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 12:50 PM IST
  • शिया वक्फ बोर्ड की कुर्सी पर किसका होगा कब्जा
  • रिजवी ने अपने करीबी सैय्यद फैजी को उतारा
  • कल्बे जव्वाद अपने करीबी को जिताने में लगे

उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड (Uttar Pradesh Shia Central Waqf Board) के अध्यक्ष के चुनाव को लेकर सियासत गरमा गई है. मौलाना कल्बे जव्वाद लंबे समय के बाद अपने सियासी वर्चस्व को बनाए रखने की जद्दोजहद में हैं तो वसीम रिजवी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड पर अपनी बादशाहत को बरकरार रखने के लिए बेताब हैं.

इस बार वसीम रिजवी खुद के बजाय बीजेपी नेता सैय्यद फैजी को शिया वक्फ बोर्ड की कुर्सी पर बैठाना चाहते हैं जबकि मौलाना कल्बे जव्वाद अपने करीबी अली जैदी और पूर्व सांसद नूरबानो में से किसी एक को अध्यक्ष देखना चाहते हैं.

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शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन पद पर सोमवार को चुनाव होने हैं, लेकिन उससे पहले अदालत इस मामले पर सुनवाई कर रहा है. हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से अधिसूचना के बारे में जानकारी मांगी. इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि सोमवार को सरकार इस संबंध में चुनाव कराने पर अपना पक्ष रखेगा.

कोर्ट का फैसला क्यों जरूरी?

इलाहाबाद हाईकोर्ट अगर सोमवार को सरकार द्वारा मनोनीत सदस्य को अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने की इजाजत दे देता है तो कल्बे जव्वाद गुट से लखनऊ के अली जैदी चुनाव लड़ेंगे, क्योंकि वक्फ एक्ट 1995 में संसोधन 2014 सेक्शन 21 ए के तहत इलेक्टेड सदस्य ही चुनाव लड़ सकते हैं. 

अहम कड़ी बनीं नूर बानो

इसी आधार पर वसीम रिजवी ने हाईकोर्ट में अर्जी लगाई है, क्योंकि बोर्ड में अभी सिर्फ 3 सदस्य ही इलेक्टेड हैं. इसमें वसीम रिजवी, सैय्यद फैजी और पूर्व सांसद नूरबानो शामिल हैं. हाईकोर्ट 21ए के तहत चुनाव का फैसला देता है तो कल्बे जव्वाद गुट फिर कांग्रेस नेता पूर्व सांसद नूर बानो को चुनाव लड़ाएगा. इस तरह नूर बानो शिया वक्फ बोर्ड के चुनाव में अहम कड़ी बन गई हैं. 

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बता दें कि शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के 11 सदस्यों में से दो सांसद, दो विधायक, दो मुतवल्ली व दो बार काउंसिल सदस्यों के लिए चुनाव होता है. इसके अलावा तीन सदस्य को राज्य सरकार मनोनीत करती है. प्रदेश में सांसद, विधायक व बार काउंसिल सदस्यों में एक भी शिया मुस्लिम नहीं हैं.

विधानमंडल कोटे में भी दो विधान परिषद सदस्य शिया हैं, जिसमें मोहसिन रजा सरकार में मंत्री हैं जबकि दूसरे सदस्य बुक्कल नवाब ने सदस्य बनने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. ऐसे में सदस्यों के आठ पदों के चुनाव में केवल मुतवल्ली कोटे के दो पदों पर ही चुनाव हो सके थे. इनमें वसीम रिजवी और सैय्यद फैजी चुनाव जीते थे जबकि संसद कोटे से नूर बानो एकलौती सदस्य चुनकर आई हैं. 

कल्बे जव्वाद के करीबियों का दबदबा

योगी सरकार ने इलेक्टेड मेंबर न होने की स्थिति में तीन की जगह पांच सदस्य नामित किए हैं. शिया वक्फ बोर्ड के मनोनीत सदस्यों में अमरोहा के अधिवक्ता जरयाब जमाल रिजवी, सिद्धार्थनगर के अधिवक्ता शबाहत हुसैन, लखनऊ के अली जैदी, मौलाना रजा हुसैन व प्रयागराज जिला महिला अस्पताल की वरिष्ठ परामर्शी डा. नरूस हसन नकवी शामिल हैं. इन सभी को मौलाना कल्बे जव्वाद का करीबी माना जाता है, जिसके चलते अध्यक्ष पद पर उनका वर्चस्व होना लगभग तय है. 

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वसीम रिजवी बनाम कल्बे जव्वाद 

उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड पर काबिज होने को लेकर पिछले कई डेढ़ दशक से मौलाना कल्बे जव्वाद और वसीम रिजवी के बीच सियासी वर्चस्व की जंग जारी है. मायावती सरकार के दौरान शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन बने वसीम रिजवी को अखिलेश यादव की सरकार में हटवाने के लिए मौलाना कल्बे जव्वाद ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था, मगर आजम खान के चलते उनकी नहीं चली और वसीम रिजवी चुनाव जीतकर फिर चेयरमैन बन गए. योगी आदित्यनाथ की सरकार में भी वसीम रिजवी को हटाने के लिए मौलाना कल्बे जव्वाद ने काफी संघर्ष किया, पर रिजवी को हिला नहीं सके. 

बीजेपी ने दी कल्बे जव्वाद को तरजीह

हालांकि, 2022 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी ने वसीम रिजवी के मुकाबले कल्बे जव्वाद को अहमियत देने का फैसला किया. इसीलिए योगी सरकार ने मनोनीत सदस्यों में कल्बे जव्वाद के करीबियों को जगह मिली. ऐसे में वक्फ एक्ट के नियमों की अवहेलना करते हुए सरकार ने तीन की जगह पांच सदस्यों को नामित कर दिया. यूपी बार काउंसिल की जगह दिल्ली बार काउंसिल के सदस्य को वक्फ बोर्ड का मेंबर बना दिया. 

वसीम रिजवी ने इस बार खुद शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन का चुनाव लड़ने के बजाय सैय्यद फैजी को समर्थन करने का फैसला किया है. लेकिन, मनोनीत सदस्यों की संख्या पांच और कल्बे जव्वाद से उनकी नजदीकी होने के चलते वसीम रिजवी अपने वर्चस्व को बरकरार रखने के लिए कोर्ट तक पहुंच गए है, लेकिन सरकार ने चुनाव का ऐलान जारी कर दिया. ऐसे में अब रिजवी हाईकोर्ट तक पहुंच गए. 

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रिजवी ने कोर्ट में अपील दायर कर कहा है कि वक्फ एक्ट के सेक्शन 21 ए के तहत इलेक्टेड सदस्य को ही अध्यक्ष पद के चुनाव लड़ने की इजाजत है. इसी पर कोर्ट में सुनवाई हो रही है. हाईकोर्ट अगर चुनाव पर रोक नहीं लगाता है तो मौलाना कल्बे जव्वाद ने दोनों ही परिस्थिति को लेकर तैयारी कर रखी है.

मनोनीत सदस्य के चुनाव लड़ने की अनुमति मिलती है तो अली जैदी अध्यक्ष पद दावेदारी करेंगे और अगर इलेक्टेड मेंबर के चुनाव लड़ना का फैसला होता है तो नूर बानो प्रत्याशी होंगी. ऐसे में अब देखना है कि कल्बे जव्वाद के सियासी चक्रव्यूह को वसीम रिजवी तोड़ पाते हैं कि नहीं? 

राह में एक और रोड़ा

वहीं, शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चुनाव में सबसे दिलचस्प बात यह है कि अल्लामा जमीर नकवी अब कल्बे जव्वाद की राह में रोड़ा बन गए हैं. यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चुनाव मामले में शुरू से ही मौलाना कल्बे जवाद के साथ थे. जमीर नकवी खुद भी चेयरमैन बनने की रेस में थे, लेकिन सरकार द्वारा मनोनीत सदस्य में उनका नाम नहीं शामिल किया. ऐसे में अब वो कल्बे जव्वाद के खिलाफ खुलकर मैदान में उतर गए हैं. 

जमीर नकवी काफी समय से वक्फ बोर्ड मामले की पैरवी कर रहे हैं. उन्होंने वक्फ बोर्ड के चुनाव से सम्बंधित तमाम महत्वपूर्ण जानकारियों के अलावा गंभीर भ्रष्टाचार से सम्बन्धित दस्तावेज भी जुटा रखे हैं. इस मुद्दे पर वो इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं और सोमवार को इस मामले की सुनवाई भी होनी है.

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जमीर नकवी कहते हैं कि योगी सरकार नहीं चाहती है कि शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष का चुनाव हो सके. इसीलिए सरकार ने तीन की जगह पांच सदस्य को मनोनीत किया, जो इलेक्टेड सदस्यों से ज्यादा है. इसके अलावा जिन वकीलों को मनोनीत किया गया, उनका रजिस्ट्रेशन ही यूपी के बार काउंसिल में नहीं है. वसीम रिजवी और कल्बे जव्वाद दोनों ही बीजेपी के मोहरे हैं. 

 

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