
उत्तर प्रदेश में जिला पंचायत अध्यक्ष (Zila Panchayat Adhyaksh) के चुनाव में बीजेपी ने बाजी मार ली है. 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने सूबे के 75 से 67 जिला पंचायत अध्यक्ष सीटें जीतकर संदेश देने की पूरी कोशिश की है. सपा को अपने परंपरागत वोट यादव पर ही दांव खेलना मंहगा पड़ा है.
वहीं, बीजेपी से भले ही सबसे ज्यादा ठाकुर जीतकर आए हों, पर अगड़ों के साथ ओबीसी और दलित समाज के बीच जातीय संतुलन बनाने में कामयाब रही है. जिला पंचायत जैसी सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले पर बीजेपी 2022 का चुनावी मैदान में उतरती है तो सपा के सत्ता में वापसी तो दूर अपने कोर वोट बैंक को बचाए रखना मुश्किल होगा?
बीजेपी ने साधा जातीय समीकरण
यूपी जिला पंचायत में बीजेपी ने 66 जिला पंचायत सीटें जीती है, जिनमें सबसे ज्यादा 25 सवर्ण समुदाय से जीतकर आए हैं. इनमें 15 ठाकुर और 6 ब्राह्मण, दो भूमिहार और दो वैश्य समाज से जीते हैं. वहीं, ओबीसी समुदाय से 6 कुर्मी, 8 जाट, 4 यादव, 3 गुर्जर, 2 लोध जीते हैं. इसके अलावा चौरसिया, लोहार कश्यप, मौर्य और शाक्य समाज से एक-एक जिला पंचायत अध्यक्ष चुनकर आए हैं. इसके अलावा 15 दलित समाज से बीजेपी के टिकट पर जिला पंचायत अध्यक्ष बने हैं, जिनमें सबसे ज्यादा पासी-धोबी और कोरी समाज से जीतकर आए हैं. वहीं, सपा से सभी पांचों जिला पंचायत अध्यक्ष यादव समुदाय से ही जीते हैं.
बीजेपी के कुर्मी जिला पंचायत अध्यक्ष
पूर्वांचल में पिछड़ों में कुर्मी भी यादवों की तरह काफी ताकतवर है, जिस पर सभी पार्टियों की नजर रहती है. बीजेपी अपनी ओर खींचने के लिए प्रदेश अध्यक्ष के साथ क्षेत्रीय अध्यक्ष का भी चेहरा आगे करती रही है. सिद्धार्थनगर, महराजगंज और बस्ती में पार्टी ने मजबूत कुर्मी नेतृत्व को आगे किया है. यूपी में 8 कुर्मी जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गए हैं, जिनमें से 6 बीजेपी और इसके सहयोगी अपना दल (एस) ने जीती है. वहीं, एक कुर्मी समुदाय के कैंडिडेट ने राजा भैया की पार्टी से प्रतापगढ़ से जीत दर्ज की है.
महराजगंज, बस्ती, बरेली, बांदा में बीजेपी के कुर्मी सांसद होने के बावजूद जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर भी इसी वर्ग को बैठाने के पीछे मकसद इस बड़े वोट बैंक को पार्टी के साथ मजबूती से बनाए रखना है. इसके अलावा अंबेडकर नगर और ललितपुर में कुर्मी समुदाय को बीजेपी से जीत दर्ज की है जबकि अपना दल से सोनभद्र में कुर्मी जिला पंचायत अध्यक्ष बना है.
अतिपिछड़े और यादव को दिया संदेश
ऐसे ही पिछड़ों में संख्या और सियासी महत्व के नजरिए से बीजेपी अति पिछड़े समुदाय से आने वाली तमाम जातियों को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाकर राजनीतिक रूप से बड़ा संदेश देने की कवायद की है. वाराणसी में पूनम मौर्य, कन्नौज में प्रिया शाक्य, कासगंज से रत्नेश कश्यप और चंदौली से दीनानाथ (शर्मा) ने जीत दर्ज की है. वहीं, बीजेपी के टिकट पर चार जिला पंचायत अध्यक्ष यादव समुदाय से भी चुनकर आए हैं, जो फार्रुखाबाद, संभल, बदायूं और शाहजहांपुर से जीते हैं. इस तरह से बीजेपी ने सपा के कोर वोट बैंक को भी साधने का बड़ा दांव चला है.
पश्चिम यूपी में बीजेपी का जाट और गुर्जर दांव
पश्चिम यूपी में किसान आंदोलन के चलते जाटों की बीजेपी के प्रति नाराजगी की बात कही जा रही थी. लेकिन बीजेपी ने जिस तरह से आठ जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने में कामयाब रही है, उसके जरिए बड़ा सियासी संदेश दिया है. बीजेपी के टिकट पर मथुरा, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मेरठ, बुलंदशहर और नोएडा में जाट समुदाय के जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गए हैं.
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इसके अलावा पीलीभीत में सिख जाट ने जीत दर्ज की है. बीजेपी ने जाट के साथ-साथ गुर्जर समुदाय का समीकरण बनाने में कामयाब रही है. हापुड़, अमरोहा और शामली में गुर्जर जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं. पश्चिम यूपी में जाट और गुर्जर दोनों ही काफी अहम वोटर हैं.
बीजेपी का कोर वोटबैंक ठाकुर-ब्राह्मण-वैश्य
बीजेपी का कोर वोटबैंक ठाकुर, ब्राह्मण और वैश्य प्रमुख माना जाता है. जिला पंचायत चुनाव में बीजपी के टिकट पर 25 अगड़ी जातीय के अध्यक्ष चुनकर आए हैं. हालांकि, सबसे ज्यादा 16 ठाकुर जीते हैं, जिनमें 15 बीजेपी से और एक निर्दलीय है. सुल्तानपुर, फिरोजबाद, आगरा, अलीगढ़, प्रयागराज, मैनपुरी, कानपुर देहात, फतेहपुर, गाजीपुर, गोरखपुर, उन्नाव, मुरादाबाद, सिद्धार्थनगर, बहराइच और अयोध्या में बीजेपी के टिकट पर जिला पंचायत अध्यक्ष ठाकुर चुने गए हैं. इसके अलावा जौनपुर में धन्नजंय सिंह की पत्नि ने निर्दलीय जीत दर्ज की है.
यूपी में ब्राह्मण समुदाय की बीजेपी के प्रति नाराजगी की बात कही जा रही थी, लेकिन श्रावस्ती, गोंडा, देवरिया, बलरामपुर, हाथरस और भदोही से ब्राह्मण समुदाय के प्रत्याशी ने बीजेपी के टिकट पर जिला पंचायत अध्यक्ष बने हैं. वहीं, अमेठी और कुशीनगर में वैश्य समुदाय के जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं जबकि भूमिहार समुदाय से मऊ और गाजियाबाद में जिला पंचायत अध्यक्ष बने हैं. हालांकि, ठाकुरों की तुलना में ब्राह्मण और वैश्य समाज का प्रतिनिधित्व कम है, लेकिन भाजपा ने अपने परंपरागत वोट बैंक को पूर्वांचल से लेकर पश्चिम यूपी और अवध के क्षेत्र में सहेजने की कोशिश की है.
गैर-जाटव दलित समाज पर बीजेपी भरोसा
उत्तर प्रदेश के जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में कुल 16 दलित जीतकर आए हैं, जिनमें 15 बीजेपी से जीते हैं. बीजेपी ने जिला पंचायत के जरिए 2022 के चुनाव का राजनीतिक समीकरण साधने क दांव चला है. सेंट्रल यूपी में बीजेपी ने दलितों में पासी समुदाय पर दांव खेला और लखीमपुर खीरी, बाराबंकी और लखनऊ का जिला पंचायत अध्यक्ष बनाया. इसके बाद बीजेपी ने रायबरेली, हरदोई और मिर्जापुर में धोबी समाज के जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने में कामयाब रही है.
बुंदेलखंड में कोरी और जाटव समाज ने जिताया है. महोबा और जालौन में कोरी समाज के जिला पंचायत अध्यक्ष बीजेपी के टिकट पर निर्वाचित हुए हैं तो औराया में दोहरे को मौका मिला है. इसके अलावा चित्रकूट में जाटव समाज का जिला पंचायत अध्यक्ष बीजेपी से जीते हैं जबकि कानपुर, झांसी, सीतापुर में हरिजन जातीय के जिला पंचायत अध्यक्ष बीजेपी से बने हैं. वहीं, कौशांबी में खटिक समुदाय का जिला पंचायत अध्यक्ष बना है. इसके अलावा बागपत से आरएलडी के टिकट पर जाटव समाज के जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं.
जिला पंचायत में सपा को यादव प्रेम मंहगा पड़ा
वहीं, सपा ने गोरखपुर क्षेत्र की 10 सीटों में 9 पर यादव प्रत्याशी उतारा है जबकि यूपी की कुल 75 सीटों में से तीन दर्जन के करीब यादव कंडिडेट उतारे थे, जिनमें महज पांच ही जीत सके. सपा में यादव छोड़कर कोई दूसरे समाज का कोई प्रत्याशी नहीं जीत सका. एटा, इटावा, बलिया, आजमगढ़ और संतकबीर नगर में सपा को जीत मिली है और इन पांचों सीटों पर यादव समाज ही जिला पंचायत अध्यक्ष बने हैं. हालांकि, सपा ने ओबीसी की दूसरी जातियों को यादव की तुलना में कम प्रत्याशी बनाए थे. इतना ही नहीं मुस्लिम से सिर्फ तीन ही प्रत्याशी सपा ने उतारा था जबकि यह यादव की तुलना में मुस्लिम दो गुना वोट है.
बीजेपी सर्वसमाज को साधने में कामयाब रही
वहीं, बीजेपी से भले ही सबसे ज्यादा ठाकुर जिला पंचायत चुनाव जीतकर आए हों, लेकिन दलित और पिछड़ों से लेकर ब्राह्मण और वैश्य समाज सहित हर वर्ग जिताकर अपने 2022 के सियासी समीकरण को मजबूत करने का दांव चला है. इतना ही नहीं यूपी में जिस तरह से बीजेपी ने चार यादव समाज को जिता है, उससे सपा के लिए भी राजनीतिक चुनौती खड़ी हो गई है. ऐसे ही अगर 2022 के चुनाव में बीजेपी ने यादव समाज पर दांव खेला तो अखिलेश की सत्ता में वापसी के अरमानों पर पानी फिर सकता है.