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योगी सरकार से ज्यादा अखिलेश-मायावती राज में जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध चुने गए थे

यूपी की 75 जिलों में से 22 जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध निर्वाचित घोषित किए गए हैं. इनमें से 21 जिला पंचायत पर बीजेपी और इटावा में सपा निर्विरोध जीत दर्ज की है. हालांकि, योगी सरकार में निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्षों का आंकड़ा अखिलेश यादव की सरकार से काफी कम है जबकि मायावती सरकार से दो सीटें ज्यादा है, लेकिन बसपा सरकार के दौरान जिले भी कम थे

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कुमार अभिषेक/कुबूल अहमद
  • लखनऊ/नई दिल्ली ,
  • 30 जून 2021,
  • अपडेटेड 12:21 PM IST
  • यूपी 75 में से 22 जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध जीते
  • सपा सरकार में 36 जिला पंचायत निर्विरोध हुए थे
  • मायावती के राज में 20 जिला पंचायत निर्विरोध जीती थी

उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में बड़ी तादाद में अपने जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध बनवा चुकी बीजेपी की नजर अब उन जिलों पर है जहां 3 जुलाई को वोटिंग होनी है. यूपी की 75 जिलों में से 22 जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध निर्वाचित घोषित किए गए हैं. इनमें से 21 जिला पंचायत पर बीजेपी और इटावा में सपा निर्विरोध जीत दर्ज की है. हालांकि, योगी सरकार में निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्षों का आंकड़ा अखिलेश यादव की सरकार से काफी कम है जबकि मायावती सरकार से दो सीटें ज्यादा है, लेकिन बसपा सरकार के दौरान जिले भी कम थे. इसके बावजूद सूबे की योगी सरकार पर सपा से लेकर बीएसपी तक हमलावर हैं. 

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यूपी की जिला पंचायत अध्यक्ष पद के नामांकन के दिन  यानि 26 जून को ही बीजेपी के 17 प्रत्याशियों का निर्विरोध जीत तय हो गई थी. वहीं, मंगलवार को नाम वापसी के दिन चार जिलों में विपक्षी दल के नेताओं ने अपना नामांकन पत्र वापस ले लिया है, जिसके बाद 22 जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध निर्वाचित घोषित किए गए, जिनमें 21 बीजेपी और एक सपा का है. ऐसे में बाकी 53 जिलों के लिए 3 जुलाई को मतदान और मतगणना होगी. अखिलेश यादव से लेकर मायावती तक जिला पंचायत चुनाव में बीजेपी पर धांधली और सत्ता का दुरुपयोग करने का आरोप लगा रहे हैं.

योगी सरकार में 22 जिला पंचायत निर्विरोध
यूपी में 22 जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध चुने गए हैं. इनमें बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर बुलंदशहर से डॉ. अंतुल तेवतिया, मुरादाबाद से डॉ. शेफाली सिंह, मेरठ से गौरव चौधरी, गाजियाबाद से ममता त्यागी, बलरामपुर से आरती तिवारी, गौतमबुद्ध नगर से अमित चौधरी, मऊ से मनोज राय, गोरखपुर से साधना सिंह, चित्रकूट से अशोक जाटव, झांसी से पवन कुमार गौतम, बांदा से सुनील पटेल, गोंडा से घनश्याम मिश्र, श्रावस्ती से दद्दन मिश्रा, आगरा से मंजू भदौरिया, ललितपुर से कैलाश निरंजन, पीलीभीत से डॉ. दलजीत कौर, सहारनपुर से मांगेराम, अमरोहा से ललित तंवर, वाराणसी से पूनम मौर्या शाहजहांपुर से  ममता यादव और बहराइच से मंजू सिंह निर्विरोध निर्वाचित हुई हैं. वहीं, सपा से इटावा में अभिषेक यादव उर्फ अंशुल यादव जीते हैं.  

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अखिलेश सरकार में निर्विरोध का खेल
योगी सरकार से पहले जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव 2016 में हुआ था, उस समय सूबे की सत्ता पर अखिलेश यादव के अगुवाई वाली सपा की सरकार थी. यूपी के 75 जिलों में से 38 जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध चुने गए हैं. हालांकि, नोएडा में चुनाव नहीं हुआ था.  इस तरह से बीजेपी सरकार की तुलना में सपा सरकार में दोगुना जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध चुने गए थे. 37 में से 36 जिले में सपा के कैंडिडेट निर्विरोध जीत दर्ज किए थे जबकि सहारनपुर में बसपा के प्रत्याशी ने कब्जा जमाया था.

सपा के 36 सदस्य निर्विरोध जीते थे
सपा सरकार में निर्विरोध जिला पंचायतों की लिस्ट में फैजाबाद, फिरोजाबाद, गोंडा, कानपुर देहात, भदोही, संतकबीर नगर, जालौन, बस्ती, अमरोहा, इटावा, बाराबंकी, श्रावस्ती, एटा, महोबा, देवरिया, कानपुर नगर, बलिया, गाजीपुर, सिद्धार्थ नगर, सहारनपुर, अमेठी, ललितपुर, मऊ, चित्रकूट, बदायूं, हरदोई, बागपत, हमीरपुर, झांसी, मैनपुरी, बहराइच, गाजियाबाद, संभल, आजमगढ़, लखनऊ, लखीमपुर खीरी और बुलंदशहर शामिल थे. सपा सत्ता में रहते हुए यूपी के 75 जिलों में से 63 जिलों में अपने जिला पंचायत अध्यक्ष जिताने में सफल रही थी. वहीं, बीजेपी ने इस बार 65 प्लस का टारेगट रखा है. 


मायावती सरकार में 20 जीते थे निर्विरोध
उत्तर प्रदेश की सत्ता में मायावती साल 2007 से 2012 तक विराजमान रही है. मायावती सरकार के दौरान 2010 में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव हुए थे, जिनमें कुल 72 जिलों में से 20 जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध जीत दर्ज किए थे. निर्विरोध जीत दर्ज करने वाले ज्यादातर बसपा के समर्थक थे. बसपा सरकार के दौरान मेरठ, नोएडा, बुलंदशहर, बिजनौर, अमरोहा, रामपुर, गाजियाबाद, कासगंज, महोबा, हमीरपुर, बांदा, कौशांबी, उन्नाव, लखनऊ, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, श्रावस्ती, बलरामपुर, चंदौली और वाराणसी में निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गए थे. इतना ही नहीं बसपा ने 2010 के जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में करीब 50 जिलों में अपना कब्जा जमाया था. 

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सत्ताधारी दल को मिलता चुनावी फायदा

हालांकि, उत्तर प्रदेश की सत्ता में जो भी पार्टी रहती है, उसके समर्थकों का जिला पंचायत अध्यक्ष बनना आसान होता है. यह सियासी खेल जब से सूबे में जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव हो रहा है तब से हो रहा है. साल 1995 में सपा और बसपा के गठबंधन भी जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव के चलते ही टूटा था. इस बात का बसपा प्रमुख मायावती ने दो दिन पहले अपनी प्रेस कॉफ्रेंस में जिक्र भी किया था. 

सपा से लेकर बसपा तक मौजूदा योगी सरकार पर जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में बीजेपी के जीत हासिल करने के लिए साम-दाम-दंड-भेद अपनाने का आरोप लगा रहे हैं. हालांकि, तीनों ही सरकारों में सत्ताधारी पार्टियों ने अपने समर्थकों को निर्विरोध चुनाव जीताने के लिए हरसंभव कोशिश किए है. इस बार के चुनाव में धांधली का आरोप लगाने वाली सपा की जब सरकार थी तब तो सबसे ज्यादा सीटों पर निर्विरोध निर्वाचन हुआ था. 

 

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