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मुलायम की राह पर लौटे अखिलेश, क्या गुर्जर समुदाय को फिर से साध पाएंगे?

23 मार्च को शहीद दिवस के अवसर पर अखिलेश ने मंगलवार को पश्चिम यूपी के मवाना कस्बे में क्रांतिकारी शहीद धनसिंह कोतवाल की मूर्ति का अनावरण कर गुर्जर समुदाय को साधने की कवायद की. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बीजेपी के साथ गया गुर्जर समुदाय सपा से साथ जुड़ पाएगा? 

अखिलेश यादव ने शहीद धनसिंह कोतवाल की मूर्ति का अनावरण किया अखिलेश यादव ने शहीद धनसिंह कोतवाल की मूर्ति का अनावरण किया
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 24 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 3:59 PM IST
  • पश्चिम यूपी की दो दर्जन सीटों पर गुर्जर समुदाय का प्रभाव
  • योगी सरकार में बीजेपी के पांच विधायक गुर्जर समुदाय से
  • अखिलेश ने किया धनसिंह कोतवाल की मूर्ति का अनावरण

शहीद दिवस के अवसर पर 23 मार्च को समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने पश्चिम यूपी के मवाना कस्बे में क्रांतिकारी शहीद धनसिंह कोतवाल की मूर्ति का अनावरण किया. इस मौके पर अखिलेश के साथ कई गुर्जर नेताओं ने मंच साझा किया. यूपी में अगले साल की शुरुआत में ही विधानसभा चुनाव होने हैं. पिछले चुनाव में गुर्जर समुदाय बीजेपी के साथ गया था. अखिलेश का ये कार्यक्रम गुर्जरों तक पहुंचने और उनकी नाराजगी दूर कर दोबारा समाजवादी पार्टी से उन्हें जोड़ने की कवायद का हिस्सा माना जा रहा है.

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कृषि कानूनों के खिलाफ पश्चिम यूपी में चल रहे किसान आंदोलन से जाट समुदाय पहले ही बीजेपी से नाराज चल रहा है और अब गुर्जर समुदाय पर भी विपक्ष ने नजर गढ़ा दी है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट और गुर्जर दोनों ही चुनावी राजनीति को सीधे प्रभावित करते हैं. जाटों की नाराजगी और गुर्जरों पर अखिलेश यादव के द्वारा डाले जा रहे डोरे बीजेपी की सियासी चिंता को बढ़ा सकते हैं, क्योंकि सपा के कार्यक्रम में अखिल भारतीय गुर्जर सभा के प्रदेशाध्यक्ष दिनेश गुर्जर सहित तमाम गुर्जर नेता मौजूदा थे. 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुर्जर समुदाय रहा है प्रभावशाली

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों के बाद जाट, गुर्जर और ठाकुर मतदाताओं की संख्या अधिक है. इस इलाके में ब्राह्मण, त्यागी और ठाकुर बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है. 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के बाद बीजेपी ने इनके साथ जाटों को भी जोड़ा और गुर्जर समुदाय का भी विश्वास जीता. यही कारण था कि ठाकुर, ब्राह्मण, त्यागी, वैश्य समाज के साथ जाट और गुर्जर आ जाने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने विपक्ष का 2014-2019 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में सफाया कर दिया था. 

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बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर पांच गुर्जर समुदाय के विधायक जीतकर आए थे. पांचों ही विधायक पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हैं. इनमें कद्दावर नेता अवतार सिंह भड़ाना, डॉ. सोमेंद्र तोमर, तेजपाल नागर, प्रदीप चौधरी और नंदकिशोर गुर्जर हैं, लेकिन अवतार भड़ाना अब बीजेपी का साथ छोड़ चुके हैं. वहीं, बीजेपी ने अशोक कटियार को एमएलसी बना रखा है, लेकिन दो साल तक यूपी की योगी सरकार में किसी भी गुर्जर को मंत्री नहीं बनाया गया था. इसे लेकर गुर्जर बिरादरी में नाराजगी सामने आई थी. 

दो दर्जन जिलों में निर्णायक भूमिका में है गुर्जर वोटर

पश्चिम यूपी में गुर्जर समुदाय के मतदाताओं की खासी संख्या है. गाजियाबाद, नोएडा, बिजनौर, संभल, मेरठ, सहारनपुर, कैराना जिले की करीब दो दर्जन सीटों पर गुर्जर समुदाय निर्णायक भूमिका में हैं, जहां 20 से 70 हजार के करीब इनका वोट है. एक दौर में गुर्जर समाज के सबसे बड़े और सर्वमान्य नेता बीजेपी के हुकुम सिंह हुआ करते थे. हुकुम सिंह की मृत्यु के बाद बने शून्य को भरने के लिए बीजेपी ने एमएलसी अशोक कटियार को आगे बढ़ाया और 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले योगी सरकार की कैबिनेट में जगह देकर उन्हें साधे रखा था, लेकिन अब 2022 के विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश बढ़ रही है तो गुर्जर समुदाय को अखिलेश यादव गले लगाने में जुट गए हैं. 

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मेरठ के मवाना में सपा की किसान पंचायत में अखिलेश यादव ने गुर्जर समुदाय से आने वाले शहीद धनसिंह कोतवाल की मूर्ति का अनावरण किया और गुर्जर नेता अतुल प्रधान सहित तमाम गुर्जर समुदाय के लोग भी उनके साथ दिखे. इसके राजनीतिक मायने साफ हैं कि सपा फिर से गुर्जरों को अपने साथ जोड़ने की जुगत में है. सपा ने एक समय नोएडा के व्यवसायी और गुर्जर नेता सुरेंद्र नागर को राज्यसभा सदस्य बनाया था, लेकिन वह भी पश्चिमी यूपी में गुर्जरों के सर्वमान्य नेता नहीं बन पाए और बाद में पार्टी छोड़कर बीजेपी में चले गए.  

मुलायम ने साधा था, अखिलेश के हाथ से फिसला समुदाय

मुलायम सिंह यादव के दौर में लंबे समय तक सपा की कमान यूपी में गुर्जर समुदाय से आने वाले रामशरण दास के हाथों में रही. रामशरण दास के निधन के बाद ही मुलायम सिंह ने सपा का प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव को बनाया था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश से रामसकल गुर्जर, नरेंद्र भाटी, वीरेंद्र सिंह जैसे सरीखे नेता को साथ रखा. इस तरह से मुलायम सिंह ने पश्चिम यूपी में मुस्लिम और गुर्जर समीकरण को अपने पक्ष में मजबूती से जोड़े रखा, लेकिन अखिलेश यादव इसे सपा के साथ सहेजकर नहीं रख सके. 

एमएलसी रहे गुर्जर नेता वीरेंद्र सिंह और उनके बेटे जिला पंचायत अध्यक्ष मनीष सिंह लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सपा छोड़कर बीजेपी में चले गए. हालांकि, अब पार्टी दोबारा से गुर्जर समुदाय को अपने साथ जोड़ने की कवायद कर रही है. इस कड़ी में अखिलेश ने अतुल प्रधान को गुर्जर समुदाय को पार्टी से जोड़ने के लिए लगाया है. ऐसे में सपा ने जिस तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुर्जरों को साधने की कवायद शुरू की है, वह बीजेपी के लिए आगामी विधानसभा चुनाव में चुनौती बन सकती है. 

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अखिलेश ने एक साथ साधे कई राजनीतिक समीकरण

अखिलेश यादव ने बीजेपी सरकार के खिलाफ ललकारने वाले शब्द ढूंढ-ढूंढकर बोलते रहे तो हस्तिनापुर के बहाने गीता को दुनिया की सबसे बड़ी पुस्तक बताया. स्वामी ओमवेश का नाम मंच पर बैठने वालों की सूची में नहीं था उन्हें अखिलेश ने देखकर मंच पर बुलाया और बोलने का मौका दिया. अखिलेश ने क्रांतिकारी धनसिंह कोतवाल का भी जिक्र किया तो शहीद भगत सिंह व उनके साथियों का भी. उसी बहाने नौजवान व किसानों को समझाते रहे. उन्होंने कहा कि भगत सिंह सोशलिस्ट क्रांतिकारी थे और सपा भी सोशलिस्ट है. ऐसे में इस बार समाजवादियों की मदद कीजिए.

 
उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई के समय जो एकजुटता थी उससे जोड़ते हुए कहा कि एकजुटता अब भी जरूरी है. धन सिंह भी किसान थे. अंग्रेजों के समय किसानों ने ही सबसे ज्यादा दर्द सहा है. इस समय भी बार्डर पर किसानों के बेटे बैठे हैं और किसान ही अर्थव्यवस्था बचा रहा है. किसान अब खुद को बचाने के लिए आंदोलन कर रहा है. उन्होंने इन सब बातों को घुमाकर चुनाव की बात की और कहा कि हस्तिनापुर को सरकार बनने पर बड़ा पैकेज दिया जाए. अतुल प्रधान समेत जितने भी अन्य प्रत्याशी चुनाव में आएंगे उन्हें जिताने की अपील की. धर्म की तरफ भी मोड़ा और कहा कि जिस तरह से सभी धर्म व जाति ने मिलकर आजादी की लड़ाई लड़ी थी। उसी तरह से इस बार सभी मिलकर सपा की सरकार बनाएं. 

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