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क्या UP में कोरोना से मौत के आंकड़े छिपा रही सरकार? लखनऊ-वाराणसी समेत कई जिलों की संख्या पर सवाल

उत्तर प्रदेश में कोरोना का कहर जारी है, लगातार नए केस आ रहे हैं और मौतों का होना जारी है. कोरोना के कहर के बीच यूपी सरकार द्वारा जारी आंकड़ों पर सवाल खड़े हो रहे हैं, प्रशासन द्वारा दिए गए आंकड़ों और मृतकों की संख्या में भारी अंतर देखने को मिल रहा है.

यूपी में नहीं थम रही हैं कोरोना संक्रमण की रफ्तार (प्रतीकात्मक तस्वीर-PTI) यूपी में नहीं थम रही हैं कोरोना संक्रमण की रफ्तार (प्रतीकात्मक तस्वीर-PTI)
शिवेंद्र श्रीवास्तव
  • लखनऊ,
  • 17 मई 2021,
  • अपडेटेड 1:16 PM IST
  • उत्तर प्रदेश के गांवों में भी कोरोना का कहर
  • विपक्ष आंकड़े छिपाने का लगा रहा आरोप
  • शहरों में नहीं थम रही हैं कोरोना से होेने वाली मौतें

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर से देश जूझ रहा है. भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भी कोरोना ने कहर मचाया है. अदालत से लेकर विपक्षी पार्टिंयां भी योगी सरकार पर हमलावर हैं. कोरोना से बिगड़ते हालात और हर मिनट पर दम तोड़ती सांसों की गिनती पर भी सवाल उठने लगे हैं.

विपक्ष का आरोप है कि सरकार मौत के आंकड़े छिपा रही है. लखनऊ हो या वाराणसी, सरकार द्वारा जारी आंकड़े और मृत्यु प्रमाण पत्र के नंबरों में बड़ा अंतर है.

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यूपी सरकार हर रोज नए कोरोना केस, कोविड संक्रमण से ठीक होने वाले लोगों की संख्या और मरने वाले मरीजों के आंकड़े जारी करती है. ये आंकड़े यूपी के हर जिले से रोज सामने आते हैं. यूपी की राजधानी लखनऊ समेत हर बड़े शहरों में दिन रात चिताओं से उठता धुआं बताता है कि शहर में बेतहाशा मौतें हो रही हैं, लेकिन सरकारी आंकड़ों में ये मौतें बेहद कम संख्या में हो रही हैं.

क्या कहते हैं लखनऊ के आंकड़े?
लखनऊ में मार्च और अप्रैल के महीने में रिकॉर्ड मौतें हुईं लेकिन सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यूपी की राजधानी में महज 540 मौतें हुईं. मतलब साफ है कि हर दिन केवल 18 मौतें. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ये मौतें कोविड से हुई हैं. जब आज तक ने मार्च 2021 में नगर निगम के 6 जोन का आंकड़ा निकाला तो पता चला कि नगर निगम ने लखनऊ में मार्च के महीने में कुल 2,422 मौतें रजिस्टर कीं.

अगर ये मान भी लें कि इन मौतों में कोरोना के अलावा अन्य बीमारियों से मरनेवालों की भी संख्या शामिल हैं तो भी सरकारी मौतों के आंकड़े से पांच गुना ज्यादा मौतें नगर निगम के रिकॉर्ड में दर्ज की गईं. इसी तरह लखनऊ में अप्रैल के महीने में सरकार के मुताबिक कुल 672 मौतें हुई हैं. वहीं नगर निगम के सारे जोन्स को मिलाकर 2,327 मौतें हुई हैं. ये अंतर लगभग तीन गुना से ज्यादा है. 

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वाराणसी का भी हाल-बेहाल
लखनऊ से अलग वाराणसी में मार्च के महीने में सरकार ने कहा कि कोविड से केवल तीन मौतें दर्ज की गईं. वहीं नगर निगम ने 739 मौतों के प्रमाण पत्र जारी किए. अप्रैल महीने में भी सरकार के 176 कोविड मौतों के आंकड़ों से उलट बनारस नगर निगम ने 887 मौतों के प्रमाणपत्र जारी किए. मई के महीने में 16 मई तक ही 1265 मौतें रजिस्टर की गई हैं.

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देवरिया में आंकड़ों पर संदेह
उत्तर प्रदेश के देवरिया जैसे जिले में भी अप्रैल के महीने में सरकार ने कहा कि कोविड से 162 मौतें हुई हैं. जबकि प्रमाणपत्रों के मुताबिक ये आंकड़ा 653 मौतों का था. मई के महीने में 9 तारीख तक ही 300 मृत्यु प्रमाणपत्र जारी किए जा चुके थे.

सरकारी आंकड़ों और जमीनी हकीकत में अंतर
आज तक की पड़ताल के मुताबिक, यूपी के हर जिले में कोविड से हुई मौतों के सरकारी आंकड़े और दस्तावेजों के आधार पर दर्ज मौत के आंकड़ों में बड़ा फर्क नजर आया है. इस बारे में विपक्ष का मानना है कि सरकार नाकामी छिपाने के लिये आंकड़ों की बाजीगरी कर रही है.

क्या है अधिकारियों का पक्ष?
इन आरोपों पर सरकार की तरफ से कैमरे पर बोलने को कोई तैयार नहीं है पर जिम्मेदार अधिकारियों का कहना है कि ऐसा इसलिये भी हो रहा है कि लोग एक साथ मृत्यु प्रमाणपत्र के लिये पहुंच रहे हैं. ये आंकड़े अलग-अलग महीनों के भी हो सकते हैं.

साथ ही अधिकारियों का ये भी मानना है कि ये आंकड़े केवल कोविड से मरने वालों के ही नहीं हैं बल्कि इनमें अन्य बीमारियों और दुर्घटनाओं से भी मरनेवालों की संख्या शामिल है. मौत की वजह चाहे जो भी, जिस बड़ी तादाद में मरने वालों की संख्या में अंतर दिख रहा है, उससे साफ पता चलता है कि आंकड़ों को लेकर प्रशासन और सरकार की मंशा साफ नहीं है. 

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