
उत्तर प्रदेश के उन्नाव रेप कांडे के दोषी कराए दिए जा चुके बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट आज यानी शुक्रवार को सजा सुनाया है. कुलदीप सिंह को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है और 25 लाख का जुर्माना लगाया है. इसके साथ ही सेंगर की विधायकी जानी तय है. ऐसे में एक सप्ताह में यूपी के ये दूसरे विधायक हैं जिन्हें अपनी विधायकी से हाथ धोना पड़ा है. इससे पहले उम्र छिपाने के चलते सपा नेता आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम की विधायकी को कोर्ट ने रद्द किया है.
2013 में सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधों पर दिया था फैसला
दरअसल दस जुलाई 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने लिली थामस बनाम भारत संघ मामले में एक बड़ा फैसला दिया था. कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई विधायक, सांसद या विधान परिषद सदस्य किसी भी अपराध में दोषी पाया जाता है और इसके चलते उसे कम से कम दो साल की सजा होती है. ऐसे में वो तुरंत अयोग्य हो जाएगा यानी जनप्रतिनिधि नहीं रहेगा. इस तरह से उसकी अपनी योग्यता खत्म हो जाएगी. इसी कानून के तहत कुलदीप सिंह सेंगर की विधायकी जानी तय है.
कुलदीप सिंह सेंगर की विधायक जानी तय
कुलदीप सिंह सेंगर उत्तर प्रदेश के उन्नाव की बांगरमऊ सीट से बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर 2017 में विधायक चुने गए हैं. दुष्कर्म मामले सेंगर को कोर्ट ने शुक्रवार को उम्रकैद की सजा सुनाया. ऐसे में सेंगर को अब विधायकी भी गंवानी पड़ सकती है.
पास्को में कितनी सजा
बीजेपी के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को उन्नाव रेप मामले में दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने आईपीसी की धारा 376 और पास्को अधिनियम की धारा 5 (सी) के तहत दोषी ठहराया है. पास्को अधिनियम अपने आपमें गंभीर एक्ट है, जिसमें सात साल की सजा से लेकर उम्रकैद भी हो सकती है. यही वजह रही कि उन्नाव रेप मामले में कुलदीप सिंह सेंगर को उम्रकैद की सजा सुनाई है और 25 लाख का जुर्माना लगाया गया है.
आजम खान के बेटे की विधायकी रद्द
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसी सप्ताह उत्तर प्रदेश में रामपुर से सांसद आजम खान बेटे अब्दुल्ला आजम खान की विधायकी को रद्द कर दिया है. हाई कोर्ट ने स्वार विधानसभा सीट से बसपा प्रत्याशी रहे नवाब काजिम अली खान की याचिका पर सुनवाई करते हुए अब्दुल्ला के चयन को रद्द कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि साल 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान जब अब्दुल्ला ने नामांकन पत्र दाखिल किया था तब वह 25 साल के नहीं थे. अपनी याचिका में काजिम अली ने कहा था कि अब्दुल्ला की वास्तविक जन्मतिथि 30 सितंबर 1990 की बजाय एक जनवरी 1993 है. उन्होंने इसके लिए अब्दुल्ला के शैक्षणिक प्रमाण पत्र, पासपोर्ट और वीजा पर अंकित जन्म तिथि एक जनवरी 1993 का हवाला दिया था.
हाई कोर्ट ने अब्दुल्ला की मां के सर्विस रिकॉर्ड समेत उनकी जन्मतिथि से संबंधित समस्त दस्तावेज की जांच की थी. उसने पाया था कि दस्तावेजों में अब्दुल्ला की जन्मतिथि एक जनवरी 1993 दर्ज है. इसी को आधार बनाते हुए हाई कोर्ट ने सोमवार को यह कहते हुए अब्दुल्ला की विधायकी को रद्द कर दिया थी कि साल 2017 में उनकी उम्र चुनाव लड़ने के लिए कम थी. वह 11 मार्च 2017 को उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में स्थित स्वार विधानसभा सीट से सपा के टिकट पर विधायक चुने गए थे. हालंकि अब्दुल्ला ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.