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शवों को गंगा में प्रवाहित करना कितना जायज? क्या कहते हैं धर्माचार्य और कर्मकांड के ज्ञाता

प्रोफेसर द्विवेदी ने बताया कि जहां तक सामूहिक दाह संस्कार की पद्धति है तो इसके लिए भी सामूहिक दाह संस्कार करने का विधान भी है. दफनाने या गंगा में प्रवाहित करने का विधान नहीं है. जो ऐसा कर रहे हैं वे अपने पितरों और पुराण ग्रंथों को और हिंदू संस्कृति के सभ्यता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं.

प्रयागराज में गंगा नदी के किनारे बड़ी संख्या में शवों को रेत में दफनाया गया (पीटीआई) प्रयागराज में गंगा नदी के किनारे बड़ी संख्या में शवों को रेत में दफनाया गया (पीटीआई)
रोशन जायसवाल
  • वाराणसी,
  • 20 मई 2021,
  • अपडेटेड 8:31 PM IST
  • गंगा नदी में लोग बड़ी संख्या में लाशों को बहा दे रहे
  • कई जगह गंगा किनारे ही बालू में दफन कर रहे लोग
  • हिंदू धर्म में यह अनुचित और पद्धति निषेधः प्रो. द्विवेदी

उत्तर प्रदेश और बिहार के अलग-अलग हिस्सों से इन दिनों गंगा में तैरती लाशों और शवों को फिर से मिलने पर गंगा किनारे ही बालू में दफन कर देने की तस्वीरें और खबरें चारों ओर से आ रही हैं, लेकिन क्या इस तरह से गंगा में शवों को प्रवाहित करने या फिर गंगा किनारे बालू में दफन करना कितना उचित है? इस पर क्या कहते हैं धर्माचार्य, सनातन धर्म और कर्मकांड पद्धति के ज्ञाता ये जान लेना भी जरूरी है. 

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इस बारे में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के अध्यापक प्रोफेसर रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि वैश्विक महामारी के दौर में रेतों में शवों को दफनाने और गंगा में प्रवाहित करना हिंदू धर्म में बिल्कुल ही अनुचित है. इस तरह की पद्धति निषेध है. हमारे यहां अंत्येष्टि संस्कार पद्धति और गरुड़ पुराण जैसे ग्रंथों में भी बताया गया है कि जब मनुष्य के शरीर से प्राण निकल जाए तो उसका किस विधि से अंतिम संस्कार करना चाहिए.

पूरे परिवार को पाप लगेगाः प्रोफेसर द्विवेदी

उन्होंने आगे कहा कि उसका पिंडदान होता है. फिर शवयात्रा निकालकर चार लोग कंधे पर रखकर ले जाते हैं और फिर अंत्येष्टि क्रिया के बाद अन्य क्रम करके अग्नि दी जाती है और फिर अस्थि का गंगा में विसर्जन होता है. लेकिन शव को गंगा में विसर्जन करने और दफनाने का उल्लेख कहीं नहीं है. ऐसा जो कोई भी कर रहा है. उसके पूरे परिवार को इसका पाप लगेगा. ऐसा नहीं करना चाहिए.

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प्रोफेसर द्विवेदी ने बताया कि जहां तक सामूहिक दाह संस्कार की पद्धति है तो इसके लिए भी सामूहिक रूप से दाह संस्कार करने का विधान भी है. दफनाने या गंगा में प्रवाहित करने का विधान नहीं है. जो ऐसा कर रहे हैं वे अपने पितरों और पुराण ग्रंथों को और हिंदू संस्कृति के सभ्यता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. इसका पाप सीधे उनके परिजन को लगेगा.

शवों को जलाना अत्यंत आवश्यकः पंडित पवन त्रिपाठी

तो वहीं ज्योतिषाचार्य और धर्मचार्य पंडित पवन त्रिपाठी ने भी बताया कि नदियों में शवों को प्रवाहित करना और नदी किनारे गाड़ देने की परंपरा भी धर्म विरूद्ध है. कुछ जगहों पर छूट है, जैसे बच्चों, महात्माओं और सर्पदंश के शवों को जल प्रवाहित करने का विधान है. लेकिन सामान्य अवस्था में शव को जलाने का विधान धर्म-शास्त्रों में बताया गया है.

पंडित त्रिपाठी कहते हैं कि महामारी के इस दौर में शवों को जलाना तो अत्यंत आवश्यक है, ताकि संक्रमण न फैले. जब ऐसे शव बहुत आ रहे हैं तो परिजन उन्हें जलाएं. उनको प्रवाहित न करें और गाड़े नहीं. ऐसा करने वाले परिजनों और परिवार वालों को पाप लगेगा. शव को जलाना ही शास्त्रसंवत है. गरुण पुराण में वृहद वर्णन किया गया है. महाभारत काल में भारी संख्या में शव आते थे, लेकिन उस वक्त भी शवों को जलाया जाता था. ऐसा न करने पर पाप का अधिकारी वही होगा, जिसके घर का शव होगा.

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