
वाराणसी में बुनकरों ने बनारसी साड़ी पर राम मंदिर की प्रतिकृति उतारी है. रेशमी धागों से बनी इस साड़ी पर महीनों की कड़ी मेहनत के बाद राम मंदिर की छवि तैयार की गई है. बनारसी साड़ी पर राम मंदिर बुनकर के करघे पर बनाया गया है. बुनकर चाहते हैं कि इस वस्त्र को सीएम योगी आदित्यनाथ खुद भगवान रामलला को भेंट करें.
बुनकरों का कहना है कि राम मंदिर को बनाने के लिए दुर्लभ 'उचंत बिनकारी' का सहारा लिया गया है. आम बिनकारी में जहां करघे पर नक्शे के पत्तों के जरिये बिनाई होती है, लेकिन उचंत आर्ट या बिनकारी में बगैर नक्शे के पत्तों के बुनकर सीधे उसी तरह बिनकारी करता है जिस तरह से कोई पेंटर सामने तस्वीर रखकर पेंटिंग करता है.
राम मंदिर की अद्भुत साड़ी में राम मंदिर के शिखर से लेकर पिलर, खंभों और दीवारों तक को हुबहू रेशमी धागों से उकेरा गया है. इस दुर्लभ उचंत बिनकारी को करने वाले गोपाल पटेल बताते हैं कि इस कला में जकाट और नक्शे के पत्ते का उपयोग नहीं होता. सिर्फ सुइयों को उठा उठाकर हथकरघे पर बिनाई होती है.
बुनकरों ने कहा कि इसके लिए काफी एकाग्रता की जरूरत होती है. राम मंदिर की साड़ी बनाने के लिए ढाई से तीन महीने रोजाना लगभग 8 घंटों तक बिनाई करनी पड़ी. राम मंदिर की साड़ी को बनाने के लिए डिज़ाइन और कलर पर विशेष ध्यान दिया गया. इसके पहले भी गोपाल बनारस की तमाम पहचान को अपनी साड़ी पर उचंत आर्ट के जरिये उकेर चुके हैं और मेक इन इंडिया का एक दुपट्टा पीएम मोदी को पहले भेंट कर चुके हैं.
वे चाहते है कि बाजार में बिकने से पहले यह साड़ी अयोध्या में रामलला को अर्पित हो और उनकी इस कला को युवा सीखें ताकि यह कला आगे भी बरकरार रहे.
राम मंदिर साड़ी को तैयार करवाने वाले साड़ी कारोबारी सर्वेश की दिली इच्छा है कि यह साड़ी पहले खुद सीएम योगी के हाथों रामलला को अर्पित हो. इस साड़ी को बनाने की लागत लगभग 25 हजार रुपये आई है. लेकिन यह साड़ी बिकने के लिए बाजार में तभी आएगी जब अयोध्या में सीएम योगी के हाथों रामलला को अर्पित की जाएगी.